Agra, Uttar Pradesh, India। जन्माष्टमी। भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव। इसके साथ ही राधास्वामी मत के अनुयायियों के लिए भी जन्माष्टमी खास है। इसका कारण यह है कि जन्माष्टमी के दिन राधास्वामी मत के संस्थापक स्वामी जी महाराज का अवतरण हुआ था। उन्होंने वसंत पंचमी के दिन राधास्वामी मत आम लोगों के उद्धार के लिए प्रकट किया। वह भी राधास्वामी मत के द्वितीय गुरु हजूर महाराज के आग्रह पर। उसी गुरु पंरपरा के वाहक दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर, पूर्व कुलपति आगरा विश्वविद्यालय) हैं। राधास्वामी मत का आदि केन्द्र हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा है। यहीं पर दादाजी महाराज विराजते हैं। आइए जानते हैं स्वामी जी महाराज के बारे में कुछ रोचक तथ्य-
स्वामी जी महाराज (मूल नाम Shivdayal Singh) का जन्म 24 अगस्त, 1818 को Janmashtami के दिन हुआ था।
स्वामी जी महाराज का जन्म आगरा के सर्वाधिक बदनाम मोहल्ला कश्मीरी बाजार की पन्नी गली में हुआ। यहीं से उन्होंने दुनिया को प्रेम का संदेश दिया।
उन्हें हिन्दी, अरबी, फारसी, संस्कृत, उर्दू का ज्ञान था।
पांच वर्ष की आयु में ही सुरत-शब्द- योग (Surat Shabd Yog) की साधना कर ली थी। इसके बाद वे स्वामी जी महाराज के नाम से प्रसिद्ध हुए।
स्वामी जी महाराज के बचपन का नाम शिवदयाल था। फिर उन्हें सेठ शिवदयाल कहा जाने लगा। राधास्वामी मत प्रकट करने के साथ वे दुनिया में स्वामी जी महाराज के नाम से विख्यात हुए।
पन्नी गली में आज भी वह पवित्र स्थान है, जहां Soami Ji Maharaj साधना किया करते थे।
सन 1861 में वसंत पंचमी के दिन राधास्वामी मत की स्थापना की।
दुनियाभर में उन्हीं के शिष्य राधास्वामी मत को चला रहे हैं।
पन्नी गली में Janmashtami और Basant Panchami पर भारी भीड़ उमड़ती है। ऐसा कहा जाता है कि राधास्वामी मत के अनुयायियों की आगरा यात्रा तभी सफल होती है, जब वे यहां आते हैं।

स्वामी जी महाराज का निधन 15 जून, 1878 को हुआ।
स्वामी जी महाराज की पवित्र समाध स्वामी बाग Soami Bagh आगरा में है। यह एक भव्य भवन है, जिसे दयालबाग मंदिर Dayalbagh temple के नाम से जाना जाता है।
Radha Soami faith के द्वितीय Acharya Rai Saligram Bahadur ‘Hazur Maharaj’ थे। वे स्वामी जी महाराज की सेवा में रहा करते थे। उन्होंने अपना साधना स्थल Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra को बनाया।
राधास्वामी मत के वर्तमान Acharya Dadaji Maharaj Prof aga, Prasad mathur (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं। वे हजूर महाराज के वंशज हैं। इसी कारण हजूरी भवन में आध्यात्मिकता की झंकार है।
परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज के पिता राय दिलवाली सिंह लेन-देन का व्यवसाय करते थे। परिवार के सभी सदस्य अत्यन्त धार्मिक एवं निष्ठावान भक्त थे। शैशव से ही गहन धार्मिकता उनका स्वभाव एवं वृत्ति थी। छह वर्ष की अल्पायु में उन्होंने योगाभ्यास शुरू कर दिया। इनका अधिकांश समय अभ्यास में व्यतीत होता था। वह स्वयं को एक छोटे कमरे में कई दिनों के लिए बन्द कर लेते और उन्हें नित्य कर्म की भी आवश्यकता अनुभव न होती थी। शीघ्र ही परम संत के रूप में उनकी ख्याति चहुँओर फैलने लगी।
स्वामीजी जीवों को आदेश देते हैं कि वक्त का सतगुरु ढूँढो और जब वह सौभाग्य से मिल जाए तो तन, मन और धन से उनकी सच्ची सेवा करो। वह पुनः कहते हैं कि ऐसे लोग, जो मोक्ष के इच्छुक हैं, सतगुरु के चरणों में एकनिष्ठ भक्ति और प्रेम धारण करें। केवल सतगुरु ही जीवों के अन्तर में पवित्र नाम उद्भासित कर सकते हैं, जिससे वे चौरासी लाख योनियों के चक्र से मुक्त हो जाएँ।
स्वामीजी महाराज ने भक्त के लिए Satsang में सम्मिलित होने की आदर्श गुरु भक्ति की विधि भी वर्णित की है। वह कहते हैं कि सतसंग से भक्त के हृदय में प्रेम और भक्ति उपजेगी तथा मन निर्मल हो जाएगा। वह सतसंग को, संत सतगुरु अथवा साधु गुरु के संग और मालिक की वन्दना के लिए एकत्रित संगत के सन्दर्भ में परिभाषित करते हैं। सतसंग में भक्तजन तथा अन्य सभी संत सतगुरु के प्रवचन को सुनते हैं, जिससे उन्हें ‘वक्त गुरु’ की परख पहचान हो सकती है जिनसे वह अपनी समस्या का समाधान तथा भ्रम का निवारण कर सकते हैं तथा लौकिक एवं अलौकिक आचरण के लिए उचित निर्देश भी प्राप्त कर सकते हैं। नियमित सतसंग से प्रेमी-भक्त को सफल आन्तरिक अभ्यास करने का लाभ प्राप्त होगा।
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