Dadaji maharaj agra

Radha Soami गुरु दादाजी महाराज ने अजमेर और आगरा को लेकर कही ये बात

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा राधास्वामी मत (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं, जो आगरा विश्वविद्यालय )  Agra University)के दो बार कुलपति रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan) में हर वक्त राधास्वामी नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 26 अक्टूबर, 1999 को दादाजी महाराज कोटरा, पुष्कर रोड, अजमेर (राजस्थान) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- मैं उस बात को बताना चाहता हूं जिसकी कोई सीमा नहीं है। वह है- प्रेम, आपसी प्रेम।

अपनी विरासत और संस्कृति से अलग-थलग क्यों

आज घरों में देखिए आपको पुराने जमाने का लोक संगीत सुनने को नहीं मिलेगा। जब से मैं यहां आया हूं तब से मेरे कान में कोई स्वर नहीं सुनाई दिया। मैं मीरा के देश भी होकर आ गया और महाराणा प्रताप की भूमि को भी देख आया, मुझे तो संगीत लहरी में न सावन की मल्हार,  न विरहिणी का विरह और न तृप्ति का आनंद सुनाई दिया जो राजस्थान के गली-कूंचों में गुंजित होता था। मैं जानना चाहता हूं कि आपने स्वयं की अपनी विरासत और संस्कृति से अलग-थलग क्यों कर लिया है।

प्रेम की कोई सीमा नहीं

कोई भी चीज जो पाश्चात्य सभ्यता देश पर है, उसका भरोसा मत कीजिए। इन सबकी एक सीमा है और सीमा के परे यह कुछ नहीं दे सकते लेकिन मैं उस बात को बताना चाहता हूं जिसकी कोई सीमा नहीं है। वह है- प्रेम, आपसी प्रेम। आज आप भौतिकवाद के कारण इस प्रेम को नहीं देखते। यह घर, परिवार, खानदान और पास-पड़ोस में नहीं मिलता, कोई किसी के दुख-दर्द का संगी-साथी नहीं दिखाई पड़ता।

अजमेर और आगरा शहर

यह तो अजमेर और आगरा ऐसे शहर हैं, जहां लोगों में मेल-जोल मिल जाता है। बम्बई और दिल्ली में जाकर देखिए, कोई एक दूसरे के दुख-दर्द को समझने वाला नहीं। सब इतने स्वार्थी और भौतिकवादी हो गए हैं कि उनको यह ख्याल नहीं रहा कि जैसी आत्मा आपके अंदर है, वैसी ही दूसरे में भी है। एक तकलीफ जो दूसरे पर पड़ती है, वह उन पर भी पड़ सकती है।

अमेरिका पर उधार का ज्ञान

जितने आधुनिक देशों में चले जाएंगे तो वहां यह और अधिक बढ़ता जाएगा। आधुनिक देशों में भी उन्होंने एक अमेरिका को चुन लिया है। जब तक वह अमेरिका नहीं जाएंगे, तब तक वह आधुनिक नहीं, उनका ज्ञान पूर्ण नहीं और उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियां पूर्ण नहीं। अगर देखा जाए तो पूरे अमेरिका को जो ज्ञान है, वह तो उधार का ज्ञान यानी परदेसी ज्ञान है, चाहे वह द्वितीय महायुद्ध के जमाने में जर्मनी से लिया गया हो और चाहे हमारे नवयुवकों ने विलक्षण प्रयोग करके दिया हो, जिसका केन्द्र बिन्दु भारतवर्ष है। (क्रमशः)

(अमृत बचन राधास्वामी तीसरा भाग, आध्यात्मिक परिभ्रमण विशेषांक से साभार)