पैरेंट्स की ओवर कंट्रोलिंग बच्चों के विकास को करती है प्रभावित, आईक्यू लेवल तक पर पड़ता है असर – Up18 News

पैरेंट्स की ओवर कंट्रोलिंग बच्चों के विकास को करती है प्रभावित, आईक्यू लेवल तक पर पड़ता है असर

HEALTH

 

बच्चों पर अधिक नियंत्रण रखने से उनके व्यवहार से लेकर आईक्यू लेवल तक पर बुरा असर पड़ता है। अगर आप भी अपने बच्चे पर ज़रूरत से ज़्यादा अंकुश लगाते हैं, तो जल्दी ही आपको अपने व्यवहार में बदलाव लाने की आवश्यकता है। माता-पिता बच्चों को यदि अति नियंत्रित करते हैं तो बच्चों में भविष्य में कई प्रकार की मनोवैज्ञानिक समस्याओं का खतरा बना रहता है। ओवर कंट्रोलिंग बच्चों के विकास को प्रभावित करती है। कुछ बच्चों में आईक्यू लेवल कम हो जाता है तो कुछ के आत्मविश्वास में कमी आ जाती है। कुछ उदाहरणों के ज़रिए इसे समझते हैं।

सवालों के जवाब ढूंढने दें

मान लीजिए कि आपके बच्चे से घर आए मेहमान ने सवाल किया। ऐसे में माता-पिता बच्चे के बोलने से पहले ही सवाल का जवाब दे देते हैं। इससे बच्चे के मानसिक विकास पर असर पड़ता है। वह सवालों के जवाब देने से घबराने लगता है और भविष्य में अपना आत्मविश्वास खो बैठता है। उसे माता-पिता के द्वारा सवालों के जवाब देने की आदत जो हो जाती है। इसलिए बच्चे से पूछे जाने वाले सवालों के जवाब ख़ुद देने की कोशिश न करें, बल्कि बच्चे को ही देने दें। शुरुआत में हो सकता है वो थोड़ा हिचकिचाए, जवाब ढूंढने में थोड़ा समय ले या आपसे अपेक्षा रखे कि आप जवाब दें। लेकिन आपको उसकी मदद नहीं करनी है। आपकी थोड़ी-सी भी मदद उसके भविष्य के लिए मुश्किल ही पैदा करेगी।

बचपन न खोने दें

कुछ अभिभावक बच्चों को अपने हिसाब से नियंत्रित करते हैं। उदाहरण के लिए, बच्चा 100 में से 99 अंक लाए इसकेे लिए माता-पिता उसके पीछे पड़ जाते हैं। फिर चाहे कोचिंग लगानी पड़े या एक्स्ट्रा क्लास लगानी पड़े। वे बच्चे पर नंबर लाने का दबाव बनाए रखते हैं। इससे बच्चे के मानसिक स्वास्थ्य पर काफ़ी असर पड़ता है। यहां अभिभावकों को ये समझने की ज़रूरत है कि नंबर के पीछे भागने में बच्चा बचपन की कई ऐसी चीज़ें खो देगा जो उसके विकास के लिए ज़रूरी हैं। जैसे दोस्तों के साथ खेलना, नए प्रयोग करना, घूमना-फिरना आदि। पढ़ाई ज़रूरी है लेकिन उसे इतना हावी भी न होने दें कि वो बच्चे का बचपन ही छीन ले।

घर घुस्सू न बनाएं

कई अभिभावक बच्चों को बाहर खेलने नहीं जाने देते। उन्हें लगता है कि बाहर खेलने या दोस्तों से मिलने-जुलने से बच्चे का पढ़ाई से ध्यान हटेगा या फिर वो बिगड़ जाएगा। माता-पिता के इस तरह के व्यवहार के कारण बच्चे घर घुस्सू बन जाते हैं। बच्चे को खेलने दें, हां आप उसकी गतिविधियों पर नज़र रखें और उसके हिसाब से ही खेल निर्धारित करें। मान लीजिए आपका बच्चा भागदौड़ में अच्छा है, बहुत फुर्तीला है तो उसे क्रिकेट या फुटबॉल खिलाएं। इसी तरह उसे दौड़, बैडमिंटन, टेनिस सहित स्थानीय खेलों के लिए प्रेरित करें। बच्चों को सिर्फ़ घर में रखेंगे तो वे बाहरी लोगों से मिलने-जुलने में या सामाजिक कार्यक्रमों में शामिल होने से कतराने लगेंगे। उनका यही व्यवहार भविष्य में भी बना रहेगा।

पूछताछ की भी सीमा हो

कुछ माता-पिता तो अपने बच्चे को इस कारण स्वतंत्रता नहीं देते, क्योंकि वे डरते हैं कि इससे बच्चे बिगड़ जाएंगे। बच्चों पर भरोसा करें, उन्हें हर समय शक की निगाहों से न देखें। कहीं भी बाहर जाने या घर आने में देर हो जाने पर जबरन पूछताछ न करें। बच्चों पर भरोसा जताएं तभी बच्चे भी आप पर भरोसा करेंगे और आपसे कुछ छिपाएंगे नहीं। हमेशा शक करने या पूछताछ करने से बच्चे बातें छुपाने के आदि हो जाते हैं। उन्हें लगता है कि वो सच भी बोलेंगे तो भी घरवाले उनकी बात पर यक़ीन नहीं करेंगे। फिर वे झूठ बोलकर माता-पिता की पूछताछ से बचने लगते हैं। इसलिए जो सवाल वाजिब हैं या ज़रूरी है वो ज़रूर पूछें, लेकिन एक दायरे में, ताकि उन्हें ये न लगे कि शक किया जा रहा है।

अधिक नियंत्रण से क्या समस्याएं आती हैं, जानिए

हर समय बच्चे को कंट्रोल करने के कारण उसका आत्मविश्वास कम होने लगता है और भय विकसित होता है।

अधिक नियंत्रण में रहने के कारण बच्चा आगे चलकर आक्रामक या विद्रोही प्रवृत्ति का हो सकता है।

बच्चा आपकी मारपीट या डांट से बचने के लिए झूठ बोलने और बातंे छिपाने जैसी आदतें अपनाने लगता है।

माता-पिता द्वारा हमेशा मदद करने या साथ रहने के कारण बच्चा आत्मनिर्भर बनने के बजाय निर्भर बना रहता है। हर कार्य के पहले वो साथ ढूंढता है या अकेले कार्य करने में घबराता है।

बच्चा माता-पिता से जो सीखता है वही अपनी जीवनशैली में भी अपनाता है। और ख़ुद जब बड़े होकर पैरेंट्स बनने की बारी आती है तब वह वही सब दुहराता है।

अभिभावकों के लिए सुझाव

बच्चों से हर चीज़ में सर्वश्रेष्ठ होने की उम्मीद न करें। वे अभी सीखने के लेवल पर हैं तो अभी उन्हें सीखने और समझने का मौक़ा दें।

बच्चों से खुलकर बातचीत करें। उनसे दोस्ताना व्यवहार रखें जिससे वे आपसे हर बात बिना झिझके साझा कर सकें।

बच्चों के साथ बैठकर बातचीत करें और किसी भी समस्या का समाधान एक साथ मिलकर करें। इससे बच्चों को भी सीखने को मिलेगा और वे किसी भी समस्या के आने पर उसका समाधान कैसे करना है ये भी जान पाएंगे।

उनके दोस्तों को लेकर ताने न मारें या तुलना न करें। ऐसा करने से बच्चे दोस्ती करने से दूर भागते हैं। उनके दोस्तों को घर बुलाएं और साथ समय बिताने दें। इससे वे आप पर भरोसा करेंगे और आपका रिश्ता भी मज़बूत होगा।

Dr. Bhanu Pratap Singh