राजनीतिक रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर ने बिहार में चल रहे सियासी फेरबदल पर अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि 10 सालों में छठी बार नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं लेकिन बिहार की स्थिति में कोई सुधार नहीं है, स्थिति बदहाल बनी हुई है.
प्रशांत किशोर जनता दल (यू) के साथ रहे हैं और नीतीश कुमार के काफ़ी क़रीबी भी माने जाते थे. इस साल उन्हें कांग्रेस में शामिल होने का भी ऑफ़र मिला था, जिसे उन्होंने कुछ मतभेद के कारण ठुकरा दिया था.
एक न्यूज़ चैनल के साथ बात करते हुए उन्होंने कहा- साल 2015 में नीतीश कुमार ने जो गठबंधन किया था उसका परिपेक्ष्य अलग था. उस समय नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर चुनाव लड़ा था. इस बार चुनाव तो एनडीए और महागठबंधन के बीच में हुआ था और जनता ने एनडीए गठबंधन को जीत दिलाई थी लेकिन अब बीच में नीतीश कुमार गठबंधन बदल रहे हैं. इसमें चुनावी राजनीति से ज़्यादा प्रशासनिक चीज़ों का ध्यान रखा गया है.
तेजस्वी यादव के पुराने बयानों का जिक्र करते हुए प्रशांत किशोर ने कहा, “अभी तक आरजेडी विपक्ष में रहकर शराबबंदी की आलोचना कर रही थी, तो अब देखना होगा कि सरकार में वो क्या करते हैं. तेजस्वी यादव ने बताया कि वो सरकार में आएँगे तो 10 लाख लोगों को नौकरी मिलेगी. अब वो सरकार में हैं.”
घट रही है नीतीश की लोकप्रियता
प्रशांत किशोर ने कहा कि समय के साथ साथ नीतीश कुमार की लोकप्रियता घट रही है. उन्होंने कहा, “जेडीयू यहाँ (बिहार) 115 विधायकों की पार्टी होती थी. 2015 आते आते 72 विधायकों की पार्टी बन गई. अब 43 विधायकों की पार्टी है. ऐसा नहीं है कि गिरावट नहीं आ रही है. जो विश्वसनीयता की बात हो रही है. उसका असर दिख रहा है. ये अलग बात है कि वो किसी तरह सरकार में आ पा रहे हैं. जनता नीतीश कुमार को उस तरह से वोट नहीं कर रही है.”
क्या पीएम बनने के लिए आरजेडी से हाथ मिलाया
कुछ दिन पहले पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने बयान दिया था कि नीतीश कुमार सात जन्म भी प्रधानमंत्री नहीं बन सकते हैं.
इस बयान के बाद जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा ने नीतीश कुमार को पीएम पद का सबसे योग्य उम्मीदवार बताया था. अब प्रशांत किशोर ने भी इसे लेकर अपनी प्रतिक्रिया दी है.
प्रशांत किशोर ने कहा- “नीतीश कुमार ऐसे व्यक्ति नहीं है कि वो प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब लेकर ऐसा कर रहे हैं, ये बिहार पर केंद्रित प्रयोजन है. बिहार में जब से वो बीजेपी के साथ गए थे, जो कंफर्ट बीजेपी और नीतीश में होता था वो 2017 से अब तक नहीं दिखा. ऐसा लग रहा था कि किसी तरह से साथ में हैं. एक सीमा है कि अगर किसी चीज़ से आप कंफर्टेबल नहीं हैं तो उसे कितनी दिन तक ढोया जा सकता है. अब वे उससे निकल गए हैं. मुझे नहीं लगता है कि नीतीश कुमार ने कोई राष्ट्रीय रणनीति बनाकर बिहार में ये क़दम उठाया होगा.”
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