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होली पर महाकवि गोपालदास नीरज फाउंडेशन ट्रस्ट और पापा ने आगरा में कराया अखिल भारतीय कवि सम्मेलन

साहित्य

होली पर अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में आगरा के सुकुमार कवि भी छाए

घुँघराले बाल की बात कहकर डॉ. पार्थ बघेल ने वाह-वाह करने को मजबूर किया

असीम ने अपने पिता शशांक के अंदाज में मुक्तक सुनाकर अचंभे में डाला

दीपक सिंह सरीन ने आजादी के अमृतकाल में भी सिसक रही हिन्दी का दर्द बताया

डॉ. भानु प्रताप सिंह

आगरा। जब हम कवि सम्मेलन की रिपोर्टिंग करते हैं तो ‘अपने लोगों’ को भूल जाते हैं। अपने लोगों से मेरा मतलब है जो अपने शहर के लोगों से हैं।  ‘घर की बूढ़ी मां जैसी हिन्दी’ नहीं हैं अपने लोग। कवि सम्मेलन की रिपोर्टिंग करते समय उन्हें न भूलिए। यह ठीक है कि ‘घर का जोगी जोगना और आन गांव का सिद्ध’ होता है पर अपने शहर के कवि भी किसी के कम नहीं हैं। सोम ठाकुर, रामेन्द्र मोहन त्रिपाठी, डॉ. राजकुमार रंजन, डॉ. राजेन्द्र मिलन, अशोक अश्रु आदि पुरानी पीढ़ी के कवि हैं। उनके बाद की पीढ़ी में रमेश मुस्कान और पवन आगरी स्थापित हो चुके हैं। इनके बाद डॉ. अनुज त्यागी, डॉ. रुचि चतुर्वेदी आदि कवि स्थापित होने जा रहे हैं। कसमिन ईशान अग्रवाल मंच पर पढ़ रहे हैं। अच्छा है इन सबने रोजगार का साधन कविता को बनाया है। मुझे खुशी इसलिए है कि अब ये लोग नौकरी की लाइन में नहीं हैं। चलिए कविता ने नौकरी मांगने वालों की लाइन तो छोटी की। इसी कड़ी में दो कवियों का पार्दुभाव हुआ है। मैं बात कर रहा हूँ डॉ. पार्थ बघेल और असीम प्रभाकर की। दोनों को कविता विरासत में मिली हैं। ‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’, इस बात को सिद्ध कर दिया है दोनों सुकुमारों ने। महाकवि गोपालदास नीरज फाउंडेशन ट्रस्ट एवं प्रोग्रेसिव एसोसिएशन ऑफ पेरेंट्स अवेयरनेस (टीम पापा) के संयुक्त तत्वाधान में बल्देव धर्मशाला, बल्केश्वर, आगरा में हुए हास्य हुड़दंग अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में दोनों ने अपनी प्रतिभा का नवीन परिचय दिया।

 

सबसे पहले बात करूंगा आगरा के डॉ. पार्थ बघेल की। वे डॉक्टरी कर रहे हैं। उनकी कविताओं में डॉक्टरी झलक रही है। उन्होंने आते ही मंच पर जब कहा- कविता और घुँघराले बाल मुझे विरासत में मिले हैं। समझने वाले समझ गए कि वे केन्द्रीय मंत्रीव प्रो. एसपी सिंह बघेल के पुत्र हैं। बाद में प्रो. बघेल ने कहा भी- मुझे इस बात का गर्व नहीं है कि वह कविता लिखता है, गर्व इस बात पर है कि उसे कविता की समझ है। नवांकुर पार्थ ने नई पीढ़ी के बारे में कहा- हम अनलकी हैं जो न ठीक से हिन्दी जानते हैं और न ही अंग्रेजी।

डॉ. पार्थ बघेल ने सुनाया-

जुबां तक रह जाते हैं जो कुछ ऐसे अल्फाजों सी है हिन्दी।

बाहर साथ ले जाने से कतराते हैं जिसे घर की वो बूढ़ी मां जैसी है हिन्दी।।

 

माफ कर देना उनको मुस्कराकर जरा

जिनको तुम्हारी मायूसी समझ नहीं आती है,

आखिर साहिल पर आकर टूटने का दर्द

सिर्फ सागर की लहरें ही महसूस कर पाती हैं।

 

बरसती बारिश की ये बूंदें,

मुसल्लस मुझसे कहती जाती हैं।

तुझमें भी एक खुशबू है,

सुकूं से मिट्टी में मिलाकर तो देख।

 

न बुद्धि खता को याद करेगी,

न बुद्धू गलतियां दोहराएगा।

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अब मैं आता हूँ आगरा के असीम प्रभाकर पर। वे जाने-माने कवि शशांक प्रभाकर- ऋचा पंडित के पुत्र हैं। मंच पर आए तो लगा कि शशांक की उम्र कम हो गई है। वही लम्बे बाल और कुर्ता। वह बालों को झटककर, कभी अम्बर की ओर देखकर तो कभी रत्नगर्भा की ओर हाथ करके कविता सुनाना। कभी तार सप्तक तो कभी मध्यम स्वर में।

उन्होंने सुनाया-

अच्छा करेगा काम तो जन्नत में जाएगा

होगा बुरा जो शख्स अदालत में जाएगा

झूठ बोलने का सलीका जिसे आ जाए

तय है कि वह इंसान सियासत में जाएगा

सबकुछ शशांक प्रभाकर की तरह। हालांकि यह मुक्तक शशांक का लिखा हुआ है लेकिन असीम ने उसी स्टाइल में सुनाया जो बड़ी बात है।

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आगरा के ईशान मंच पर कविताएं पढ़ रहे हैं। सूरज तिवारी से वे अपनी मार्केटिंग कराते हैं। इसका उन्हें खूब लाभ मिल रहा है। उन्हें कई बार सुन चुका हूँ। उनकी कविताओं में देशभक्ति है। भगत सिंह, विवेकानंद और ऋषि सुनक वाली कविताएं हर बार सुनी हैं। ये कविताएं उनकी पहचान बनी हैं। मेरा कहना है कि उन्हें कुछ नया लिखना चाहिए और सुनाना चाहिए।

 

आगरा के गीतकार दीपक सिंह सरीन ने कहा कि गीत के माध्यम से वैचारिक संदेशों को जीवित रखा जा सकता है। आजादी के अमृतकाल में भी हिन्दी राजभाषा है, राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई है। दुनिया के हर देश की राष्ट्र भाषा है लेकिन भारत ऐसा इकतौला राष्ट्र है, जिसकी कोई राष्ट्र भाषा नहीं है। दक्षिण भारत में हिन्दी का भारी विरोध होता है। हिन्दी के इस दर्द को गीत के माध्यम से उकेरा। उन्होंने कहा-

आओ पढ़ाएं हिन्दी

गद्य में अपनी बात कहो या लिख डालो दोहे पर दोहे,

धर्म लिखो उपदेश लिखो या लिख डाले जो भी मन सोहे।

कोई इसमें प्रेम मिलाता कोई विरह को दिखलाता है

भारत मां पर अपने लहू से सीमा पर कोई मर जाता है।

प्रेमचंद का गबन पढ़ो तुम पढ़ डालो महादेवी  वर्मा,

अनामिका लिख डाला निराला दिनकर जैसे देश पुकारा।

यह गीत सुनकर मुझसे रहा नहीं गया। मैंने श्रोता होने के बाद भी खड़े होकर कहा- भारत हिन्दी का प्राण है। केन्द्रीय कानून राज्य मंत्री से आग्रह किया कि हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए कानून बनाएं।

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आगरा के पवन आगरी ने सबको गुदगुदाया। कुछ चुटकुले सुनाए। फिर उन्होंने हाथरस के देशी घी पर अपनी पुरानी हास्य रचना सुनाई-

हमारे घर में तो जैसे ही रोटियां पककर तैयार हो जाती हैं

हमारी श्रीमती जी रोटियां हाथरस की दिशा में

दिखाकर तीन-चार बार हिलाती हैं

सच मानो उस रोटी से हाथरस के शुद्ध देशी घी की सुगंध आती है।

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आगरा के डॉ. केशव शर्मा ने बृज भाषा में छंद सुनाए। उनकी प्रसिद्ध कविता है सोन चिरैया। उन्हें समय कम मिला इसलिए सोन चिरैया के दो छंद ही सुना सके। बृज भाषा में कविता पढ़ने के बाद भी उन्हें वह दाद नहीं मिली, जिसके वे हकदार हैं। आगरा की ज्योति कक्कड़ ने बेटियों पर कविता सुनाकर अपने मनोभाव प्रकट किए। वे श्रोताओं पर कोई छाप नहीं छोड़ सकीं।

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किशनी से आए बलराम श्रीवास्तव ने सुनाया

जन्म का जन्मते ही मरण हो गया

सत्य का झूठ के संग वरण हो गया

अब कुचलने लगा प्यार को आदमी

प्यार के अर्थ का अपहरण हो गया।

 

कभी आगरा की तहसील रहे टूंडला से आए लटूरी लट्ठ ने विवाह के दौरान देशी घी की सुगंध पर हास्य कविता सुनाकर सबको लोटपोट कर दिया। उन्होंने फूफा पर केन्द्रित कविता सुनाकर जबरदस्त ठहाके लगवाए। उन्होंने संचालन भी किया। दो पंक्तियां मुझे याद रह गई हैं-

योगीराज में आजम खां की हालत बुरी नहीं होती

हाथ जोड़कर अमित शाह से कहते अगर वे फूफा जी।

प्रेम संदेशा हाथ ले, आंगन खड़ा बसंत,

शकुंतला है बाग में, ठेके पर दुष्यंत।

 

राजस्थान से आए सुरेंद्र यादवेंद्र ने इन पंक्तियों को सनाकर तालियां बटोरीं-

एक बंदे ने अकल के अंधे ने,  इंटरनेट पर पर पटाई लड़की..

 

इलाहाबाद से शैलेश गौतम ने ये पंक्तियां सुनकर बृज की धरती को नमन किया-

खूबसूरत बहुत कल भी था आज है

मीठे पंछी का दिल पर सुनो राज है

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दौसा से आए हुए डॉक्टर सौरभ कांत ने कहा-

राष्ट्र बड़ा सारे ही धर्मो को छोड़कर

आओ करें प्रणाम सभी हाथ जोड़कर

इतना तो मान रखना मेरे प्रभु मेरा

अंतिम सफर पर निकलूं तिरंगे को ओढ़ कर।

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कार्यक्रम के आयोजक सुविख्यात कवि शशांक “नीरज” के मुक्तक तो दिल में उतर जाते हैं। उनका कविता पढ़ने का अंदाज सबसे निराला है। उन्होंने गोपाल दास नीरज के तरन्नुम में भी काव्यपाठ किया। ये अंदाज देखिए

फकीरी ऐसी खोना पाना छोड़ दिया

हमने शाहों के रस्ते पर आना-जाना छोड़ दिया

जिस दिन से कुटिया के दीपों को अर्घ्य चढ़ाया है

उस दिन से सूरज ने मुझसे आँख मिलाना छोड़ दिया

 

काशीपुर से शरीफ भारती ने सबको गुदगुदाया। रुड़की से पधारे अफजल मंगलोरी ने अंत में गजल सुनाकर मंत्रमुग्ध किया।

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केन्द्रीय विधि एवं न्याय राज्यमंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल ने आज से 30 साल पूर्व लिखी गईं कविताएं सुनाईं। विषैली शराब पीकर मरने के बाद सुहागरात पर हुई विधवा की करुण गाथा ने झकझोर दिया। उन्होंने कहा कि वे यहां हिन्दी के लिए आए हैं। आग्रह किया कि पॉलिटिशयन को निशाना न बनाएं। उनकी इस बात के लिए सराहना की गई कि वे शुरू से अंत तक कवि सम्मेलन में रहे और सदारत की। आमतौर पर राजनेता कार्यक्रमों का दीप प्रज्ज्वलित कर खिसक लेते हैं। प्रो. बघेल के साहित्यप्रेम को जमकर सराहा गया।

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कवियों ने रामकुमार शर्मा (राम भाई), अशोक चौबे, डॉ. भानु प्रताप सिंह का नाम मंच से पुकारा। बल्केश्वर के पियक्कड़ प्रसिद्ध हैं। इस बात की चर्चा रस लेकर की गई। किसी ने तो बोतल लाने की बात भी कही। प्रसिद्ध कवि शशांक प्रभाकर ने तो स्वयं को मंच से ही बल्केश्वर बेवड़ा संघ का अध्यक्ष घोषित कर दिया। इस तरह की बात होली के हुड़दंग में ही कही जा सकती है। तभी तो कहा गया है- बुरा न मानो होली है। डॉ. कुंदनिका शर्मा और डॉ. वत्सला प्रभाकर का धन्यवाद है कि उन्होंने होली की रात्रि में शानदार आयोजन कर साहित्य के रसिक श्रोताओं को मानसिक खुराक दी।

 

उद्घाटन

कार्यक्रम की शुरुआत प्रो. एसपी सिंह बघेल (केंद्रीय राज्यमंत्री, भारत सरकार) ने दीप प्रज्ज्वलित करके की। उन्होंने कार्यक्रम की अध्यक्षता भी की। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में पुरुषोत्तम खंडेलवाल (विधायक), अनिल अग्रवाल (लोकप्रिया वाले), विमल गुप्ता (पार्षद) तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में मनीष अग्रवाल, सत्यम अग्रवाल, राजेश चावला, प्रदीप गुप्ता व बॉबी जौनई उपस्थित रहे। कार्यक्रम की शुरुआत में सभी सम्मानित अतिथियों का स्वागत डॉ. कुंदनिका शर्मा एवं शशांक प्रभाकर ने किया।

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समापन

जब कार्यक्रम समापन की ओर था, तब मंच पर डॉ. रंजना बंसल और डॉ. डीवी शर्मा पधारे। कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम संयोजक डॉ. कुंदनिका शर्मा तथा सह संयोजक डॉ. वत्सला प्रभाकर ने आभार व्यक्त किया। मंच पर मंत्री के साथ फोटोग्राफी भी खूब हुई। कार्यक्रम में पधारे हुए सभी कवियों को प्रोग्रेसिव एसोसिएशन और पेरेंट्स अवेयरनेस (पापा) के राष्ट्रीय संयोजक दीपक सिंह सरीन ने प्रमाणपत्र प्रदान किए।  जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि कार्यक्रम में आनंद राय, विनोद माहेश्वरी, हरीश ललवानी, विवेक रायजादा, अनिल शर्मा, अजय सिंह, राजदीप ग्रोवर, डॉक्टर वेदांत रॉय, हरजिंदर सिंह आदि मौजूद रहे। कार्यक्रम में मौजूद लोगों को सरस्वती नगर में भोजन का इंतजाम किया गया था। मैं भी आमंत्रित था लेकिन श्रीमती जी के लगातार फोन आ रहे थे। इस कारण मैं चुपचाप घर की ओर खिसक लिया। मौसम में सहनीय शीतलता प्रवाहित हो रही थी। इसलिए स्कूटी हौले-हौले चलाते हुए आया। रात्रि के 12 बजकर 45 मिनट हो गए।

पीकर आने वालों की ज्यादा जय

हां, एक बात तो रह ही गई, कार्यक्रम की सफलता पर डॉ. वत्सला प्रभाकर और डॉ. कुंदनिका शर्मा फूली नहीं समा रही थीं। ऐसा हो भी क्यों नहीं, कुछ लोगों ने परंपरागत रूप से बल्केश्वर पार्क में कार्यक्रम नहीं होने दिया और इसके बाद भी सुधी श्रोता बड़ी संख्या में पधारे। सभी कविगणों की जय। सभी आयोजकों की जय। सभी सुघड़ श्रोताओं की जय। पीकर आने वालों की ज्यादा जय क्योंकि उन्हीं के कारण कार्यक्रम में अंत तक जीवंतता बनी रही।

Dr. Bhanu Pratap Singh