अंतरराष्ट्रीय ताजरंग महोत्सव आगरा

साहित्यसंगीतकलाविहीन नहीं हैं आगरा वाले, 8वें अंतरराष्ट्रीय ताजरंग महोत्सव में यह सिद्ध भी करना है

लेख

डॉ. भानु प्रताप सिंह

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एक मंच। कई सारे देश। कई सारे प्रदेश। संस्कृति का वंदन। आंध्र प्रदेश का कुचिपुड़ी। ओडिशा का गोतपुआ। राजस्थान का घूमर। तमिलनाडु का भरतनाट्यम। उत्तर प्रदेश का कथक। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, झारखंड, बिहार की सांस्कृतिक झलक। नेपाल का मारुनी। इंडोनेशिया का रोरो एंटेंग और जोको सेगर। क्या-क्या लिखूं। मन करता है देखते रहे। वीडियो बनाते रहे। सोशल मीडिया पर डालते रहो। दर्शक बढ़ाते रहे।

बस देखते रहो

मैं बात कर रहा हूँ आगरा में चल रहे 8वें अंतरराष्ट्रीय ताजरंग महोत्सव की। 22 सितम्बर से शुरू हुआ है। 24 सितम्बर, 2023 को अंतिम दिन है। महोत्सव के साथ जुड़ाव हुआ तो पता चला कि यहां तो पूरे भारत की संस्कृति के दर्शन एक ही मंच पर हो रहे हैं। आगरा विश्वविद्यालय के पालीवाल पार्क परिसर के जुबली हॉल में प्रवेश कर जाओ तो लगता है बैठे रहो। पूरा भारत तो नहीं लेकिन देश के प्रमुख राज्यों और तीन देशों की संस्कृति को आत्मसात करने का अवसर है 8वां अंतरराष्ट्रीय ताजरंग महोत्सव।

 

डॉ. हरीश रौतेला और प्रो. आशु रानी के आगमन के मायने

महोत्सव में कुछ देर के लिए आएंगे तो दो घंटे रुककर जाएंगे। ऐसे-ऐसे कलाकार आए हैं कि उनका कला देखते रहो। आँखें फाड़कर। तभी तो आगरा विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. आशु रानी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बृज प्रांत प्रचारक डॉ. हरीश रौतेला कुछ समय के लिए आए थे, लेकिन दो घंटे रुककर गए। इसके मायने हैं। ये ऐसी हस्तियां हैं, जिनके पास समय ही नहीं है।

नाट्य कला

महोत्सव में केवल नृत्य नहीं है। यहां गायन और नाट्य भी है। उत्तर प्रदेश और नेपाल के कलाकार नाट्य प्रस्तुति कर चुके हैं। दूसरे दिन नेपाली भाषा में नाटक हुआ। भाषा नेपाली थी, जो कम समझ में आ रही थी लेकिन भाव अंदर तक गए। सभी बाल कलाकार। कहीं नहीं अटके। कहीं नहीं भटके। बहुत ही शानदार। प्रथम दिवस का पंछी नाटक भी मन को छू गया। लघु मध्यमवर्गीय परिवार की व्यथा-कथा ने सबको रुला दिया।

अलका सिंह

यह आयोजन नटरांजलि थिएटर आर्ट्स की निदेशक अलका सिंह करा रही हैं। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय का सहयोग है। अलका सिंह के बारे में जितना लिखा जाए कम है। वे जिद की पक्की हैं। ठान लिया तो ठान लिया। फिर करना है। एक फिल्मी गाना उन पर सटीक बैठता है- अब चाहे मां रूठे या बाबा यारा मैंने तो हां कर दी। हाथ में कुछ नहीं है लेकिन 8वां अंतरराष्ट्रीय ताजरंग महोत्सव करा रही हैं शान के साथ। सेलिब्रिटी भी बुला रही हैं। कुछ लोगों ने सहयोग का वादा किया लेकिन अंतिम समय पर धोखा दे गए। फिर भी अलका सिंह को विचलित नहीं कर पाए।

पर्चे के पीछे और पर्दे के आगे

पर्दे के पीछे हैं बड़े समाजसेवी विजय किशोर बंसल। वे कभी मंच पर नहीं आते। जो करना है चुपचाप करते हैं। करने का ढिंढोरा भी नहीं पीटते हैं। वे संस्था के प्रमुख संरक्षक के रूप में भी हैं। प्रमुख मार्गदर्शक के रूप में डॉ. आनंद टाइटलर की भूमिका उल्लेखनीय है। वे पूरा समय दे रहे हैं। जनसंदेश टाइम्स के संपादक और शिक्षाविद नितेश शर्मा का सहयोग है। रोहित कत्याल और टोनी फास्टर व्यस्थाएं बना रहे हैं।

ज्ञान की बात

हमारे यहां कहा गया है-

साहित्यसंगीतकलाविहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः ।

तृणं न खादन्नपि जीवमानस्तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥

ऐसा मनुष्य जिसे साहित्य, संगीत और कला में कोई रुचि नहीं है, वह मनुष्य सींग और पूंछ न होते हुए भी पशु के समान है। वह पशु के समान तो है, लेकिन वह घास नहीं खाता यह पशुओं के लिए बहुत ही सौभाग्य की बात है | क्योंकि यदि वह घास खाता तो पशुओं को खाने के लिए चारा की दिक्कत हो जाती।

8वें अंतरराष्ट्रीय ताजरंग महोत्सव के आयोजन में आगरा वालों को यह सिद्ध करना है के वे साहित्य संगीतकलाविहीन नहीं है। मेरा तो साफ तौर पर मानना है कि आगरा वाले साहित्य संगीत कला विहीन नहीं हैं।

और अंत में…

मुझे लगता है जो कलासाधक 8वें अंतरराष्ट्रीय ताजरंग महोत्सव में नहीं पहुंच पा रहा है तो उसका भाग्य ही खराब है। आज का दिन भाग्य को ठीक करने का दिन है।

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Dr. Bhanu Pratap Singh