arun dang hotel grand agra

आगरा छावनी के बारे में रोचक और सार्थक जानकारी देने के लिए अरुण डंग जी का धन्यवाद

लेख

Agra Cantonment Before and After Britishers पुस्तक संदर्भ ग्रंथ की तरह है

मॉल रोड, फूल सैयद, लाल कुर्ती, ब्रिगेडियर उस्मान के बारे में नई जानकारी

कायदे के व्यक्ति को देखकर बातचीत में यही कहा जाएगा कि ‘आप कैण्ट से हैं’

Dr Bhanu Pratap Singh

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Agra, Uttar Pradesh, India. श्री अरुण डंग से मेरी जान-पहचान तब हुई जब मैं अमर उजाला आगरा में रिपोर्टर था। मैं नौसिखिया था। मुझे पर्यटन बीट दे दी गई। पर्यटन के बारे में मेरा ज्ञान शून्य था। उन दिनों टूरिज्म गिल्ड ऑफ आगरा खासा सक्रिय था। अरुण डंग इसके अध्यक्ष हुआ करते थे। तब मोबाइल नहीं थे। डॉट फोन हुआ करते थे।

पर्यटन बीट का रिपोर्टर होने के कारण मैंने श्री अरुण डंग के पास जाना शुरू किया। मैं चाय पीता नहीं था, तो सूप पिलाया करते थे। जो समय तय होता था, उस समय वे होटल ग्रांड में तैयार बैठे मिलते थे। अत्यंत विनम्रता के साथ बात करते थे और आज भी करते हैं। आगरा के पर्यटन विकास पर मूल विचार रखते हैं। प्रशासन से तालमेल करके अनेक कार्य कराए। धीरे-धीरे यह मेल मिलाप अटूट बंधन में बँध गया। वर्ष 2008 से मैं सक्रिय रिपोर्टर नहीं हूँ लेकिन श्री अरुण डंग से संपर्क कायम है। श्री अरुण डंग आज भी मिलते हैं तो वही गर्मजोशी के साथ।

मैंने अमर उजाला के लिए पर्यटन से संबंधित कई स्टोरी श्री अरुण डंग की मदद से कीं। अकबर के नवरत्नों के बारे में उन्होंने पूरी जानकारी दी थी। टूरिज्म गिल्ड ऑफ आगरा के खिलाफ भी समाचार छापे। मिलने पर वे समाचार का जिक्र करके मंद-मंद मुस्कराते अवश्य थे। गिल्ड के खिलाफ प्रकाशित समाचारों को श्री अरुण डंग ने कभी भी अन्यथा नहीं लिया और संबंधों में कभी दरार नहीं आने दी। उन्होंने शिल्पग्राम में 40 दिन तक एक महोत्सव किया था। पर्यटकों को रात्रि में रोकने का यह प्रथम प्रयास था। ताज महोत्सव में एक कार्यक्रम बियॉन्ड ताजमहल होता है, यह भी श्री अरुण डंग का मूल विचार है। उन्होंने आगरा के धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से एक लघु फिल्म का भी निर्माण किया।

मुझे बहुत बाद में पता चला कि वे अच्छे लेखक हैं। उनकी कई पुस्तकें प्रकाशित हैं। एक बार मैं उनकी पुस्तक मांगने पहुंच गया। उन्होंने इनकार नहीं किया। ढूँढकर पुस्तक लेकर आए। जितने अच्छे लेखक हैं, उतने अच्छे वक्ता भी हैं। बोलते हैं तो लोगों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों के लिए होटल ग्रांड के दरवाजे हमेशा खुले रहते हैं। इन कार्यक्रमों में वे स्वयं बढ़-चढ़कर भाग लेते हैं।

मोबाइल कई साल पहले आ गए थे लेकिन श्री अरुण डंग इससे दूर ही रहते थे। फिर उन्हें इसकी आवश्यकता लगी और मोबाइल रखने लगे। सबसे बाद में मोबाइल रखने वाले पहले व्यक्ति होंगे। वॉट्सअप भी चालू कर लिया। इस कारण संपर्क आसान हो गया। उन्होंने एक दिन वॉट्सअप किया कि अपना पूरा पता भेजिए। मैंने भेज दिया। तीन दिन बाद पीले रंग का लिफाफा मिला। खोला तो उसमें किताब थी। शीर्षक है- आगरा छावनी अंग्रेजों से पूर्व और पश्चात। लेखक हैं- श्री अरुण डंग।

मैंने आज यह पुस्तक पूरी पढ़ ली है। 54 पेज पढ़ने में अधिक समय भी नहीं लगता है। मेरी पढ़ने की गति भी ठीकठाक है। यह पुस्तक आगरा ही नहीं देशभर की छावनियों की जानकारी का संग्रह है। उन्होंने पुस्तक के प्रारंभ में ही बड़ी होशियारी के साथ अपने बारे में रुचिकर ढंग से जानकारी कुछ इस तरह से दी है-

“गुरुवार का दिन था, माह नवम्बर की तारीख थी सत्रह और साल उन्नीस सौ उन्चास। मैंने आगरा के सैनिक अस्पताल में माँ की कोख से निकल बाहरी जगत में अपनी आँखें रात आठ बजे खोली थीं। फिर जब पहली भोर हुई तो वह भोर आगरा छावनी की थी। इस बात को सात दशकों से ज्यादा का समय हो गया। मेरी शक्ल, कद, काठी, आवाज़ और संगी-साथी बदलते गए। मेरे आगे जस की तस खड़ी रही तो बस-आगरा छावनी ।”

“मेरी पैदाइश से पूर्व अंग्रेजी राज्य को गए दो साल से कुछ ऊपर का समय हो गया था। पर माहौल में उनके होने का अहसास कायम था। अंग्रेजियत सिर पर सवार रहती थी। अंग्रेजी दाँ देसी सरकार पर तंज़ कसते थे-‘इन्होंने क्या हकूमत करनी है, हकूमत तो अंग्रेज कर गया।’ इस तंज़ को पसन्द न करने वालों की भी एक तादाद थी। वो फ़ब्ती कसते ‘अंग्रेज़ चले गए औलाद छोड़ गए।’ “

“फ़ौज के अफसरों पर अंग्रेजियत हावी थी। उनके तौर तरीके, खान-पान से लेकर परिधानों में डबल प्लेटेट पैन्ट, कमीजें या तो टाई के साथ या मफलर या बो धारे हुईं, सिर पर हैट, मूँछें, पॉलिश से चमचमाती चौड़ी बैल्ट और जूते-रात को क्लब, कार्ड रूम में ब्रिज, इन्डोर में बिलियर्ड, आउटडोर में टेनिस, बाल रूम में डांस, व्हिस्की, सोडा, रम। सैर सपाटे में आलशेशिअन नस्ल के कुत्ते ।”

“इंगलिश पत्रिकाएँ और पुस्तकें पढ़ना ही उनका शौक था। सदर बाज़ार में दो ही बुक शॉप र्थी और दोनों मुख्यत: इंग्लिश की किताबें ही रखती थीं। एक मॉडर्न बुक डिपो, जो आज भी है और दूसरी इंग्लिश बुक डिपो, जो सदर के आरम्भिक छोर पर, जहाँ आज यस बैंक है, थी।”

आगरा छावनी अंग्रेजों से पूर्व और पश्चात पुस्तक में आगरा का संक्षिप्त इतिहास भी है। इसमें ऐसे तथ्य दिए गए हैं जो हर किसी की हैरत में डाल सकते हैं। आगरा में ही जन्मे और आगरा के मोक्षधाम पर अंतिम विश्राम करने वाले भी इन तथ्यों के बारे में नहीं जानते होंगे। स्वयं को परम विद्वान समझने वाले पत्रकार भी इन तथ्यों से अनभिज्ञ ही होंगे। यहां मैं पुस्तक के कुछ तथ्य प्रस्तुत कर रहा हूँ-

1803 में मराठों के हाथों से अंग्रेजों ने जनरल लेक के नेतृत्व में आगरा छीन लिया। किले में 25 लाख नकद, 162 बंदूकें और पीतल की बड़ी तोप मिली, जिसे सम्राट जॉर्ज को भेंट कर दिया।

1805 में आगरा कैंटोन्मेंट स्थापित हुआ।

शहजादी मंडी, नौलक्खा, सदर बाजार, नामनेर, प्रतापपुरा, नौ महल, जामा मस्जिद, नूरगंज, बालूगंज, सुल्तानपुरा, काछीपुरा मोहल्लों, स्टेडियम, आगरा क्लब, पहले चार होटल, पहला सिनेमाघर, पारसी समुदाय, स्वामी विवेकानंद को शिकागो धर्म सम्मेलन में भेजने में फ्री मेसन की भूमिका के रोचक इतिहास की जानकारी है।

महात्मा गांधी को आगरा कैंट के तीसरे दर्जे के विश्राम स्थल में हिरासत में रखा गया था। तब उनका साक्षात्कार महादेव नारायण टंडन ने लिया था। यह उनकी पांचवीं आगरा यात्रा थी लेकिन आगरा गजेटियर में चार यात्राओं का उल्लेख है।

छावनी के लोगों ने सबसे पहले कारें खरीदना शुरू कीं।

देश का पहला तार आगरा छावनी से 24 मार्च, 1853 को निकला।

जिनके नाम पर फूल सैयद की मजार है, वे फूल सैयद कौन थे?

माल रोड पर विवाहित यूरोपियन मूल के लोग ही चल सकते थे। माल रोड का वास्तविक शब्द रूप है- Married Accommodation and living lines.

शाहरुख खान का प्रथम टीवी सीरियल फौजी का फिल्मांकन आयुक्त भवन के पास आर्मी ट्रेनिंग सेंटर में हुआ था।

भारतीय सेना के गौरव ब्रिगेडियर उस्मान के बारे में जानकारी।

1950-53 में हुए दक्षिण-उत्तर कोरिया युद्ध की स्मृति में बना कोरियाई वार मेमोरियल। कोरिया के भारत में नियुक्त राजदूत यहां आकर पुष्प अर्पित करते हैं।

लाल कुर्ती के बारे में अलग से अध्याय है, जो लेखक के ज्ञान और अध्ययनशीलता का द्योतक है।

श्री अरुण डंग कहते हैं- भविष्य में कोई भी रूपरेखा बने, परन्तु यह बात तय है और रहेगी, भले ही अपना वजूद खो जाए, छावनी का अपना अन्दाज़ और मिजाज़ कायम रहेगा। यहाँ के लोगों की शख्सियत में पुरानी होने पर भी अलग छाप दिखाई देती रहेगी। कायदे के व्यक्ति को देखकर बातचीत में यही कहा जाएगा कि ‘आप कैण्ट से हैं।’

पुस्तक का नामः आगरा छावनी अंग्रेजों से पूर्व और पश्चात

लेखकः अरुण डंग

प्रकाशकः राष्ट्र भाषा ऑफसेट प्रेस, आगरा

मूल्यः 250 रुपये।

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Dr. Bhanu Pratap Singh