पुण्‍यतिथि: तबले की थाप से अलग मुकाम स्थापित किया किशन महाराज ने

पुण्‍यतिथि: तबले की थाप से अलग मुकाम स्थापित किया किशन महाराज ने

साहित्य


अल्हड़ और बिंदास अंदाज किशन महाराज एक ऐसा नाम है जो कि जुबान पर आते ही मन श्रद्धा और सम्मान से भर उठता है। उन्होंने तबले की थाप से संगीत की दुनिया में अलग ही मुकाम स्थापित किया था। संगीत के क्षेत्र में एक अलग पहचान बनाने वाले संगीत सम्राट का जिंदगी जीने का अंदाज भी कुछ अलग ही था। किशन महाराज की आज पुण्‍यतिथि है। 03 सितंबर 1923 को जन्‍मे किशन महाराज की मृत्‍यु 04 मई 2008 को हुई।

पं. राजन-साजन मिश्र ने सुनाया संस्मरण

एक बार थ्री लीजेंड्स आफ इंडिया कंसर्ट सीरीज के तहत अहमदाबाद में कार्यक्रम था। मामा जी, पं. बिरजू महाराज और हम दोनों भाइयों को प्रस्तुति देनी थी। सभागार इस तरह खचाखच भरा कि वहां के तत्कालीन गवर्नर के लिए अलग प्लास्टिक की कुर्सी लगानी पड़ी। इस बीच ग्रीन रूम में तबले को साधने में उसकी बध्धी टूट गई। हम नर्वस हो गए कि अब क्या होगा। शिष्य आसपास से कोई तबला ढूंढने के लिए भागे लेकिन, मामाजी जी के चेहरे पर कोई परेशानी के भाव नहीं, बड़ी तल्लीनता के साथ तबले की गिट्टी निकाली। बध्धी खोली , तबले को पैर में फंसाया और खींच कर बांध दिया। बोले-अब चमड़ा फट जाएगा लेकिन, बध्धी नहीं टूटेगी। गजब का विल पावर देख हम दंग रह गए। ऐसे ही एक बार मैं (राजन मिश्रा) हारमोनियम बजा रहा था। एक स्टापर निकल गया।

बनारसी अंदाज में जिया जीवन

उन्होंने अपना जीवन अल्हड़ और बिंदास तरीके से बनारसी अंदाज में जिया। इसके साथ ही संगीत से उनका नाता दिन पर दिन गहरा होता चला गया । एक तरफ संगीत की महारथ तो दूसरी तरफ जिंदगी जीने का मस्त अंदाज ये दो ऐसी खास वजहें है जिनके चलते वो वो हमेशा लोगों के दिलों में राज करते रहेंगे ।

वाराणसी के संगीतज्ञ परिवार में उनका जन्म हुआ था। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी को पैदा होने के चलते उनके परिवार वालों ने उनका नाम किशन रख दिया था । संगीत की शिक्षा उन्हे उनके पिता से प्राप्त हुई । जिसके बाद पंडित कंठे महाराज ने उन्हे संगीत की शिक्षा प्रदान की थी ।

तबले की थाप के बाद उनका संगीत का सफर कुछ यूं शुरू हुआ

तबले की थाप के बाद उनका संगीत का सफर कुछ यूं शुरू हुआ कि तमाम धुरंधरों के साथ उन्होने संगत दी थी, इनमें पंडित भीमसेन जोशी, पंडित ओंकार ठाकुर, पंडित रविशंकर, उस्ताद फैय्याजखान, अलीखान, उस्ताद बड़े गुलाम उस्ताद अली , अकबर खान वसंत राय, महान कलाकार शामिल रहे । इतना ही नहीं नृत्य की दुनिया के महान हस्तियां शंभु महाराज, नटराज गोपी कृष्ण और बिरजू महाराज के कार्यक्रमों में भी उन्होंने शिरकत की और तबले पर संगत दी ।

अगर पुरस्कारों की बात करें तो किशन महाराज को साल 2002 में पद्मविभूषण से पुरस्कार से नवाजा गया था । उन्हें साल 1973 में पद्मश्री पुरस्कार मिला , साल 1984 में संगीत नाटक सम्मान, साल 1986 में उस्ताद इनायत अली खान पुरस्कार दिया गया , इसके अलावा उन्हे दीनानाथ मंगेश्कर पुरस्कार उत्तरप्रदेश रत्न, उत्तरप्रदेश गौरव भोजपुरी रत्न, ताल विलास सम्मान के साथ ही भगीरथ सम्मान और लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड भी दिया गया था ।

किशन महाराज वैसे तो मस्त और अल्हड़ स्वभाव के इंसान थे, लेकिन जब उनका पारा चढ़ता था संभालना मुश्किल हो जाता था। ये घटना है वाराणसी में टाइटेनिक फिल्म के प्रीमियर शो के समय की, शहर के सभी प्रतिष्ठित लोगों को इस कार्यक्रम में बुलाया गया था । किशन महाराज को भी यहां आमंत्रित किया गया था। उन्हे बालकनी में सबसे पीछे एक बढ़िया सीट पर बैठाया गया था । लेकिन वो इस बात पर भड़क गये कि उन्हे सबसे पीछे क्यों बैठाया गया है, वो शो छोड़ कर जाने लगे । बड़ी मुश्किल से प्रशासन के अधिकारियों ने उन्हे मनाया और उन्हे सिनेमा हाल की सबसे आगे वाली सीट बैठाया गया । सिनेमाहाल की आगे वाली सीट पर बैठ कर ही किशन महाराज ने पूरे तीन घंटे तक फिल्म देखी , लेकिन उनकी इस जिद के चलते वाराणसी के डीएम और कमिश्नर को भी उनके साथ बैठ कर फिलम देखनी पड़ी थी ।

Art/Literature Desk: Legend News

Dr. Bhanu Pratap Singh