mejor dhaynchand khel ratna

नाम में क्या रखा है, गुलाब को किसी और नाम से पुकारें तो भी वह खूबसूरत महक देगा

NATIONAL POLITICS PRESS RELEASE

टोक्यो ओलंपिक में छोटेछोटे देशों ने 30 -35 मेडल लेकर अपने देश का नाम विश्व पटल चमकाया। भारत जैसे विश्व गुरु देश को मेडल के टोटे पड़ गए। सिर्फ एक स्वर्णपदक मिला। आज अगर नारी शक्ति नहीं होती तो एक दूसरे को बधाई से भी महरूम हो गए होते| किसी ने सच कहा है हौसला अफजाई मिलती है तो एक दिव्यांग हिमालय जैसे पर्वत की चोटी पर भी झंडा फहरा देता है। जब एक खिलाड़ी भारत से बाहर जाकर खेलता है तो वह किसी राज्य या किसी धर्म का खिलाड़ी नहीं कहलाता है। वह भारत का प्रतिनिधित्व करने वाला भारतीय कहलाता है। खिलाड़ियों को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि उसे कौन स्पॉन्सर कर रहा है या उसे किस नाम से पुरस्कार दिया जा रहा है। यह बात दीगर है कि ओलम्पिक में भारत को मेडल उम्मीद से कम मिले पर लगभग 125 खिलाड़ियों का प्रदर्शन स्तर किसी मेडल से कम नहीं है|

मेजर ध्यानचंद की स्टिक से बॉल मैग्नेट की तरह चिपकी रहती थी। हॉकी में भारत को 3 स्वर्ण पदक दिलाने वाले, अपने खेल जीवन में 1000 गोल दागने वाले, देश का नाम विश्व में चमकाने वासले, जो भारत के लिए खेले, भारत के लिए जिये उन्हें भारतीयों की माँग के बाद भी भारत रत्न नहीं दिया जा रहा है| इस बात को पाँच दशक हो गए। मेजर ध्यानचंद हर भारतीय के दिल में न सिर्फ जीवित है, बल्कि वे हर भारतीय व खिलाड़ियों को मरणोपरांत गर्व का अनुभव भी कराते रहे हैं।

जब देश में भाजपा की सरकार सत्ता पर काबिज हुई तो देश के नागरिकों में उम्मीदों का सागर बहा पर हर उम्मीद पूरी हो यह तो ज़रूरी नहीं है। फिर भी राजनीति में खेल होना तो लगभग ज़रूरी है| आज भारतवर्ष में एक खेल पुरस्कार का नाम बदलकर स्व. मेजर ध्यान चंद खेल पुरस्कार रख दिया, जिसे देश की भावना बताया जा रहा है, जो समझ से परे है। प्रश्न उठना स्वाभाविक है क्या इससे खिलाड़ी या खेल को कोई लाभ होगा? इन सबके पीछे देखने में यही लगता है अब राजनीति में खेल नहीं, खेल में राजनीति घुस रही है| इस संबंध में एक ही उदाहरण पर्याप्त है कि सिर्फ पैसे के लिए खेलने वालों को भारत रत्न मिल गया लेकिन देश के लिए खेलने वाले स्व. मेजर ध्यानचंद को नहीं मिला। अगर सरकार मेजर ध्यानचंद को ‘भारत रत्न’ से सम्मानित करती है तो पूरा देश इस्तकबाल करेगा क्योंकि यह देश के नागरिकों की भावनाओं का सम्मान होगा|           

केन्द्र सरकार द्वारा देश के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गाँधी खेल रत्न का नाम बदल कर स्व. मेजर ध्यानचंद के नाम से खेल रत्न कर दिया गया। क्या आपको लगता है उससे खेल जगत को कोई लाभ होने वाला है? क्या नाम परिवर्तन परम्परा उचित है, क्या जनमानस की भावना का ध्यान नहीं रखना चाहिए?  अगर हम इतिहास के पन्ने पलट कर देखें तो रेलवे स्टेशन और विश्वविद्यालय के नाम अमूमन या तो शहर के नाम से होते थे या फिर उस महान व्यक्ति के नाम पर जिनका योगदान होता था| आज किसी भी संस्था का नाम राजनीतिक व्यक्तियों के नाम पर होने लगा है चाहे वह खेल जगत से जुड़ा हो या विश्वविद्यालय से| नाम बदलने से किसी भी शहर को लाभ नहीं मिला है तो खेल जगत को कैसे मिल जाएगा? इसलिए आज की महती आवशयकता है नाम परिवर्तन की जो परम्परा चल पड़ी है उसे सही दिशा देने की| सरकार नाम परिवर्तन की नीति बनाए और उसे लागू करे। अपने नाटकों, कविताओं और सॉनेट (धुन के साथ गायी जाने वाली कविता) से साहित्य जगत पर राज करने वाले शेक्सपियर का कथन है- नाम में क्या रखा है, गर गुलाब को हम किसी और नाम से भी पुकारें तो वो ऐसी ही खूबसूरत महक देगा। इसलिए खेल रत्न किसी के भी नाम से हो, खिलाड़ी को कोई अंतर नहीं पड़ता है।

rajiv gupta
rajiv gupta

राजीव गुप्ता ‘जनस्नेही’

लोकस्वर, आगरा