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जैन मुनि डॉ. मणिभद्र ने कहा- सुखी रहना है तो कम से कम संचय करें

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Agra, Uttar Pradesh, India. जैन मुनि डॉ.मणिभद्र महाराज ने प्रवचनों की श्रंखला में शुक्रवार को अपरिग्रह संदेश  पर विस्तृत चर्चा की और कहा कि भोगने में नहीं,  त्यागने में सुख है। जितना संचय करोगे, उतना मन पर बोझ बढ़ेगा और वही दुख का कारण बनेगा। जितना कम संचय करोगे, उतना ही जीवन में सुख मिलेगा।

 

राजामंडी के जैन भवन, स्थानक में महाराजश्री के प्रवचनों की श्रंखला चल रही है। शुक्रवार को उन्होंने कहा कि जितना अधिक संचय करते हैं, उतनी अधिक परतंत्रता बढ़ती जाती है, वही दुख का प्रमुख कारण बनती है। मन बहुत चंचल है, वह कभी संतुष्ट नहीं होता। घर खाली है तो सोफा सैट,  तिजोरी खाली है तो स्वर्ण आभूषणों से भरने में मनुष्य लगा रहता है। संपति का विशाल साम्राज्य खड़ा करने पर भी वह संतुष्ट नहीं होता। यदि जीवन में वास्तविक सुख चाहते हो तो अपनी इच्छाओं को सीमित करो, संतोष को धारण करो।

 

उन्होंने कहा कि सोना-चांदी, हमसे नहीं जुड़ा बल्कि हमारा उससे जुड़ाव है। यदि वह चोरी हो तो हम को ही दुख होता है,  सोना-चांदी को नहीं। खेद की बात तो यह है कि मनुष्य मृत्यु के समीप पहुंचने के बाद भी इससे मोह नहीं छोड़ता। उसी में आसक्ति रहती है। परिणाम यह होता है कि हम इस जीवन में दुखी रहते है, दूसरे जन्म में भी धन से चिपके जीव-जंतु बनते हैं। कोई भी व्यक्ति अपनी धन, संपति को अपने साथ स्वर्ग नहीं ले जा सकता। ले भी गया तो उसका उपयोग नहीं होगा, क्योंकि वहां यह करेंसी चलती ही नहीं है। इसलिए इस संपति को पुण्य में बदलो, यह पुण्य ही इस जीवन में सुख देगा और दूसरे जन्म में साथ जाएगा।

 

जैन मुनि ने कहा कि हम प्रवचनों में कितने भी मोक्ष प्राप्ति की बातें कर लें, लेकिन सुनने में सबको अच्छी लगेंगी, बैकुंठ जाना कोई नहीं चाहता। उसके लिए साधु बनना होगा। साधुत्व के लिए मोह, ममता सब त्यागनी पड़ेगी, वह कोई नहीं छोड़ पाता। उसके लिए भाव चाहिए, दृढ़ संकल्प करना होगा।

 

इससे पूर्व जैन मुनि पुनीत महाराज ने कह़ा कि इच्छाएं तो आकाश के समान अनंत हैं। जीवन सीमित है। इसलिए संतोष को धारण करना ही परम सुखदायक है। शरीर की भूख तो मिट सकती है, लेकिन तृष्णा पर नियंत्रण करना मुश्किल है।

 

आनंद ऋषि महाराज के जन्मदिन पर उनका स्मरण किया। जैन मुनि डॉ.मणिभद्र ने कहा कि आनंद ऋषि महाराज ने 84 वर्ष की अवस्था में भी फारसी सीखी थी। उनका मानना था कि व्यक्ति को हमेशा छात्र बन कर कुछ न कुछ सीखते रहना चाहिए। उनका कहना था कि शरीर को तपाने से ही आत्मा का शुद्धिकरण होता है। जैन मुनि ने कहा कि 2 अगस्त को स्वामी फूलचंद जी महाराज की दीक्षा जयंती मनाई जाएगी।

 

इस चातुर्मास पर्व में श्रुति दुग्गर की सातवें दिन की तपस्या जारी रही।आयंबिल की तपस्या संगीता सकलेचा, शशि सोनी,राजीव  चपलावत, आदेश बुरड़ एवम नवकार मंत्र के जाप का लाभ आशू चड्डा परिवार मेरठ ने लिया।आज की धर्म सभा में अंतर राष्ट्रीय मानव मिलन संस्था सोनीपत की अध्यक्ष कुसुम जैन की विशेष उपस्थिति रही।राजेश सकलेचा ने कार्यक्रम का संचालन किया इस दौरान सहित अनेक धर्म प्रेमी उपस्थित थे।

 

Dr. Bhanu Pratap Singh