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इस्तीफा जेब में रखकर चलने वाले कुलपति प्रो. केएस राना की निजी जिन्दगी पर सबसे बड़ा इंटरव्यू VIDEO

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL साक्षात्कार

खास बातें

नरेन्द्र मोदी सबसे अच्छे नेता क्योंकि परिवारवाद की राजनीति पर ब्रेक लगाए

फिल्म स्टार अमिताभ बच्चन निजी जिन्दगी में किसी के प्रति वफादार नहीं

सेल्फमेड प्रोफेसर कृष्ण शेखर राना ने कुमायूं विश्वविद्यालय का किया कायापलट

संदेशः निष्पक्षता, ईमानदारी और निष्ठा के साथ काम करते रहें सफलता मिलेगी

Agra, Uttar Pradesh, India. देश-विदेश के जाने-माने शिक्षाविद, पर्यावरणविद, विभिन्न विषयों के ज्ञाता, अनेक पुस्तकों के लेखक प्रोफेसर केएस राना राजनीति के भी चतुर खिलाड़ी भी हैं। तीन प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने वाले प्रो. राना पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के तो एनसाइक्लोपीडिया हैं। इस समय वे चौथे विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। कुमायूं विश्वविद्यालय, नैनीताल के कुलपति के रूप में उन्होंने ऐसे काम कर दिए कि उत्तराखंड राज्य में लोकप्रियता का चरम छू लिया। सही को सही तो कोई भी कह सकता है लेकिन प्रोफेसर राना गलत को गलत कहने का जिगरा रखते हैं, वह इसलिए कि इस्तीफा जेब में रखकर चलते हैं। सब लोग अमिताभ बच्चन को सदी का महानायक कहते हैं लेकिन प्रो. राना की नजर में वह अहसान फरामोश है। उनकी पैनी दृष्टि में इस समय देश में सबसे अच्छे नेता नरेन्द्र मोदी हैं, क्योंकि उन्होंने परिवारवाद की राजनीति को पूरी तरह रोक दिया है। ‘सेल्फ मेड’ प्रोफेसर केएस राना का संदेश है कि जीवन में निष्पक्षता, ईमानदारी और निष्ठा से काम करें। पिछले दिनों आगरा आए प्रो. राना ने Live Story Time से अपने निजी जीवन के बारे में लम्बी बातचीत की। हम यहां पूरी बातचीत यथावत प्रस्तुत कर रहे हैं-

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आपके जीवन का लक्ष्य क्या था?

प्रो. केएस रानाः शिक्षाविद बनना पहला उद्देश्य था और जनता के साथ जुड़कर कैसे काम करते हैं, यह साथ में जुड़ा हुआ था।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः लेकिन आपने पॉलिटिक्स में भी काम किया?

प्रो. केएस रानाः जब विश्वविद्यलया में प्रोफेसर बन गया तो देखा कि जनता के साथ जुड़कर काम किया जाए। परिवार की राजनीतिक विरासत थी। पिताजी स्वतंत्रता सेनानी रहे। उस जमाने में दो बार ब्लॉक प्रमुख रहे। एक भाई (विजय सिंह राणा) काफी समय तक विधायक रहे। राजनीति से जुड़ना मजबूरी थी। राजनीति में उनके लिए काम करना, क्षेत्र में जाना, इन चीजों से खुद को विलग नहीं कर सकते थे।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आपने छात्र राजनीति भी की है?
प्रो. केएस रानाः 1977 में मुझे छात्र परिषद का अध्यक्ष नामित किया गया। सुनील विकल महामंत्री थे। प्रतूल भार्गव कोषाध्यक्ष थे। छात्रों को राजनीति का पाठ भी पढ़ाया। छात्रसंघ चुनाव में चुनाव अधिकारी और छात्र यूनियन का पैट्रन बना। इस कारण छात्र राजनीति से निकट संपर्क रहा और छात्रों के बीच मैं लोकप्रिय भी खूब रहा।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः भोजन में सबसे ज्यादा क्या पसंद है?

प्रो. केएस रानाः शाकाहारी हूँ। मेरे किचिन के लोग जो बना देते हैं वही खा लेता हूँ। दो सब्जी, एक दाल। दही मुझे प्रिय है। बाकी मैं बहुत अधिक च्वॉइस नहीं रखता हूँ।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः भोजन मां के हाथ का अच्छा लगता है या पत्नी के हाथ का?

प्रो. केएस रानाः दुर्भाग्य से सातवीं दर्जा से मैं गांव से शहर चला आय़ा। आठवीं-दसवीं के बाद समझ आती है और तब मां के हाथ का खाना नसीब नहीं हुआ।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः कभी पत्नी को अपने हाथ से खाना खिलाया है?

प्रो. केएस रानाः शी इज नो मोर।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः क्या पत्नी ने भी अपने हाथ से खाना खिलाया है कभी?

प्रो. केएस रानाः एक-दो बार स्थिति आई है। वैसे मेरी जिन्दगी कभी यहां कभी वहां रही, तो ऐसा हो नहीं पाया।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः क्या आप भीषण सर्दी में भी रोजाना स्नान करते हैं?

प्रो. केएस रानाः मुझे जितना याद है, ऐसा दिन नहीं गया जब नहीं नहाया हूँ। मैंने खाना बिना नहाए कभी नहीं खाया। नाश्ता पहले कर सकता हूँ। चाहे एक से दो डिग्री बुखार हो, फिर भी नहाता हूँ। ये मेरी आदत में शुमार है।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः घूमने के लिए सबसे ज्यादा कौन सा स्थान अच्छा लगता है?

प्रो. केएस रानाः भारत में केरल और कर्नाटक अच्छी जगह हैं। कश्मीर तो सीजनल है। यही उत्तराखंड की स्थिति है, लेकिन उत्तराखंड से मुझे अधिक लगाव हो गया है। मोनार्ड यूनिवर्सिटी, गाजियाबाद में कुलपति रहा तो आगरा कॉलेज से इस्तीफा कर गया। केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय में मुझे एक्सपर्ट एडवाइजर बनाया गया। फिर वाइस चेयरमैन और चेयरमैन भी रहा। फिर नालंद (पटना, बिहार) यूनिवर्सिटी का कुलपति रहा। मेरी आदत में है कुछ नया करने की। वहां नकल होती थी। मैंने छापा मारा तो राज्यपाल ने बहुत सराहा। एक सप्ताह अभियान चलाया। पूरे बिहार में संदेश चला गया। मैं आगरा यूनिवर्सिटी के उड़नदस्ता का लम्बे समय तक प्रभारी रहा और यहां भी यही काम करता था। कुमायूं यूनिवर्सिटी का कुलपति बना तो उत्तराखंड में मुझे यह महसूस हुआ कि लोगों में अपनापन है। वहां का व्यक्ति सहज और सरल है। वहां के छात्र खेल और फौज में जाना चाहते है। खेल में भाग लेने वाले बच्चे पढ़ने में कमजोर होते हैं। मैंने दो फीसदी कोटा खेल के छात्रों के लिए तय कर दिया। छात्रों में विश्वास बन गया कि कुलपति छात्रों के साथ हैं। 1978 से लेकर मार्कशीट और डिग्री नहीं थी। मैंने यह काम डेढ़ माह में कर दिया। देश-विदेश में बैठे छात्रों को घर बैठे डिग्री मिली तो मेरे पास फोन आए कि यह तो कमाल कर दिया।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः अध्ययन, अध्यापन, लेखन, राजनीति आदि आपकी हॉबीज हमें ज्ञात हैं। इसके अलावा क्या हॉबीज हैं?

प्रो. केएस रानाः पढ़ने लिखने में इतना समय खप जाता है कि खास हॉबीज बचती नहीं हैं।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः पसंदीदा गाना कौन सा है?

प्रो. केएस रानाः गाने में मेरी रुचि नहीं है लेकिन पुराने गानों में तर्क और सार होता था, उनको सुनना अच्छा लगता है। आजकल के गाने आते हैं तो मैं टीवी बंद कर देता हूँ।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः क्या बाथरूम में कभी गाना नहीं गुनगुनाया?

प्रो. केएस रानाः ऐसा कुछ नहीं है।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आपकी नजर में सबसे अच्छा अभिनेता कौन सा है?

प्रो. केएस रानाः आज के समय में अक्षय कुमार कमिटेड टाइप का है। डायलॉग में अमिताभ बच्चन अच्छा है। जहां तक मेरी जानकारी में है, अमिताभ बच्चन निजी जिन्दगी में किसी के प्रति वफादार नहीं है। राजनीतिक रूप से जुड़ा हो, उनसे नहीं और जिन लोगों से बुरे समय में मदद ली, उन लोगों के प्रति भी साधुवाद के दो शब्द नहीं कहे। अमर सिंह का नाम राजनीति में विलेन के रूप में है। जब अमिताभ बच्चन वसंत बिहार, दिल्ली में रहते थे, तब अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव ने अमिताभ बच्चन की दिल खोलकर मदद की। अमिताभ प्रोग्राम में सैफई तो गया लेकिन अमर सिंह के प्रति साधुवाद के शब्द नहीं कहे। इसे लेकर अमर सिंह नाराज भी रहते थे। आगरा से चुनाव लड़ने से पूर्व अमर सिंह मेरे पास आए थे। मैंने उनसे कहा था कि क्यों गलतफहमी पाल रहे हो। तुम्हें लग रहा है कि चुनाव जीत लोगे? आगरा में तो ठाकुरों का नेता राजा भदावर अरिदमन सिंह हैं। वो चुनाव लड़ रहे हैं, उनके खिलाफ वोट कहां से मिल जाएंगे। तुम देश के ठाकुरों के नेता हो सकते हो, आगरा के नहीं हो। मेरे पास पौन घंटा रुके। फिर उन्होंने दिल्ली जाकर अजित सिंह को बात बताई और कहा कि मुझे मत फँसाओ। दूसरे दिन मेरे पास अजित सिंह का फोन आया और कहा कि चुनाव लड़वाओ। मैंने कहा कि मैं यह पाप नहीं कर सकता हूँ, मुझे मालूम है कि जमानत नहीं बचेगी, बेचारे की क्यों बेइज्जती करा रहे हो। (चुनाव बाद यही हुआ)

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आपकी नजर में सबसे अच्छी अभिनेत्री कौन सी है?

प्रो. केएस रानाः हीरोइन-फीरोइन में मेरी रुचि नहीं है।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः या बताना नहीं चाहते हैं?
प्रो. केएस रानाः मैं जानता ही नहीं हूँ। नाचने गाने वालों की संस्कृति अलग होती है, उसमें मैं कभी रहा नहीं हूँ।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आपकी दृष्टि में इस समय देश में सबसे अच्छा नेता कौन सा है?

प्रो. केएस रानाः मेरी नजर में तो भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से अच्छा कोई नहीं लगता है। जवाहरलाल नेहरू ने कांग्रेस अध्यक्ष पद टेकओवर किया। नेहरू जी ने जब कांग्रेस अध्यक्ष के लिए इंदिरा गांधी का नाम प्रस्तावित किया तो उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और केन्द्रीय गृहमंत्री रहे पंडित गोविन्द वल्लभ पंत ने विरोध करते हुए कहा कि नेहरूजी आप परिवारवाद क्यों ला रहे हो, इंदिरा को राजनीति में परिपक्व होने दीजिए, फिर ले आना। नेहरू जी इस बात से नाराज हो गए थे। नेहरू जी में एक बड़प्पन था कि दिल पर नहीं लेते थे। सरदार वल्लभ भाई पटेल और चौधरी चरण सिंह की भी वही लाइन रही। चौधरी चरण सिंह की मैंने आत्मकथा उन्हीं के जीवनकाल में लिखी है। इसका लोकार्पण दिल्ली में अटल जी और चन्द्रशेखर जी ने किया था। तपी हुई राजनीति से निकले पुराने लोगों का कंसेप्ट यह था कि परिवारवाद राजनीति में नहीं आना चाहिए। परिवारवाद को आज की तारीख में अगर कोई रोकने का प्रयास कर रहा है तो वह मोदी जी हैं। दूसरा कोई आदमी इस लाइन पर नहीं सोच रहा है। बीजेपी के तमाम नेताओं को मैं जानता हूँ जो इसमें उलझे हुए हैं कि मैं अपने लड़के और लड़की को पार्टी में स्थापित कर दूँ। मोदी के तीन-चार भाई, चचेरे भाई, वे सबके सब अपना काम कर रहे हैं। मोदी जी ने अपने परिवार के किसी भी व्यक्ति को राजनीति में लाने की कोशिश नहीं की। पार्टी के लोगों को सबक दे दिया कि लोकतांत्रिक देश है, इसमें हम लोगों को परिवारवाद को नहीं लाना चाहिए। मोदी जी का ये सबसे बड़ा गुण है कि अपने परिवार के लिए कुछ नहीं किया और परिवारवाद की राजनीति पर ब्रेक लगाने का काम किया। मोदी जी ने सरकार में शामिल टॉप के नेता, जो अपने बेटों को स्थापित करना चाहते थे, उनका रास्ता रोक दिया।


डॉ. भानु प्रताप सिंहः वस्त्रों में कौन सा रंग पसंद है?

प्रो. केएस रानाः श्वेत अधिक पसंद है।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आपको किससे डर लगता है और क्यों?

प्रो. केएस रानाः मैं तो अजातशत्रु की तरह हूँ। न किसी का बुरा हूँ और न ही किसी से डरता हूँ। आदमी अपनी इच्छाशक्ति से जीता है। मेरी विल पॉवर काम करती है। सही बात कहने में मुझे कोई गुरेज नहीं होता है। देश और दुनिया में किसी के भी खिलाफ सही बात है तो कह देता हूँ, फिर चाहे उसका नुकसान हो या कुछ और हो।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः कॉलेज लाइफ में कोई महिला मित्र बनी क्या?

प्रो. केएस रानाः इस लाइन पर मैंने कोई प्रयास नहीं किया और दो-चार की कोशिश हुई भी तो मैंने सहृदयता के साथ नमस्ते कर ली।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः शादी से पहले लड़की देखी थी क्या?

प्रो. केएस रानाः नहीं देखी। परिवार का अपना निर्णय था।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः शादी और सगाई के बीच में संवाद कैसे कायम हुआ?

प्रो. केएस रानाः कोई संवाद नहीं हुआ।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः ऐसा कोई वाकया जब आपकी पत्नी से तकरार हुई हो और आपने अलग अंदाज में मनाया हो?

प्रो. केएस रानाः नहीं, ऐसा कोई वाकया नहीं हुआ।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः जीवन का कोई ऐसा किस्सा जो सबके साथ शेयर करना चाहते हैं?

प्रो. केएस रानाः मैं बचपन से, आठवीं क्लास से गांव से शहर में आ गया था। नागरी प्रचारिणी के कक्ष में हम दो लोग 15 रुपये महीने के किराये पर रहते थे। बीएससी करने के बाद मैं गांव गया। पिताजी जमींदार थे, 80 बीघा पक्का जमीन थी। पिताजी ने कहा कि इलाके में नाम हो गया कि तुमने बीएससी कर ली। अब तुम बीएड कर लो क्योंकि बड़े ट्यूशन आते हैं। उन्होंने किसी मास्टर का उदाहरण भी दिया। मैंने सीपीएमटी की भी तैयार की। अंदर से मन नहीं हुआ तो अंतिम पेपर छोड़ दिया। मेरा लक्ष्य था आगरा कॉलेज में प्रोफेसर बनना क्योंकि यह कलकत्ता यूनिवर्सिटी से संबद्ध था। फिर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संबद्ध हो गया। बाद में आगरा यूनिवर्सिटी के साथ आ गया। मैंने पिताजी से कहा- एमएससी करूंगा और पीएचडी करके आगरा कॉलेज में पढ़ाऊंगा। पिताजी बोले कि इतने पैसे कहां से आएंगे, शहर में रहकर खर्च बहुत होता है। मैंने कहा- तुम मत देना। पिताजी ने पूछा- कैसे करेगा? मैंने कहा- मैं कर लूंगा। यह कहकर मैं चला आया। बीएससी के दौरान में सप्रू हॉस्टल में रहता था। एमएससी के दौरान कायस्थ हॉस्टल में चला गया। नागरी प्रचारिणी के कमरे में पांच ट्यूशन सुबह और पांच ट्यूशन शाम को पढ़ाता था। इस तरह अपने खर्चे का इंतजाम अपने आप कर लेता था। आगरा कॉलेज के प्रिंसपिल एसएन दुबे थे। वो मुझे बहुत पसंद करते थे। इस कारण फीस कभी देनी नहीं पड़ी। किताबें लाइब्रेरी से मिल जाती थीं। खरीदता भी था। पीएचडी में फैलोशिप मिल गयी। उससे खर्चा चलने लगा और ट्यूशन छोड़ दिया। मैं सेल्फमेड परसन हूँ। मैंने सब अपने आप किया है।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः कुलपति के आसपास बहुत सारी महिला प्रोफेसर मँडराने का प्रयास करती हैं। ऐसा कोई किस्सा है क्या?

प्रो. केएस रानाः कुमायूं यूनिवर्सिटी, नैनीताल में पहली बार गया तो ऐसे किस्से मेरी जानकारी में आए थे। रजिस्ट्रार और वित्त नियंत्रक पीसीएस अधिकारी थे। वे जानते थे कि मैं न खाता हूँ और न ही खाने देता हूँ। इसलिए मेरा बहुत सम्मान करते थे। चार बार बुलाऊं तो चार बार आते थे। मैं उनके साथ पुत्रवत व्यवहार करता था। प्रोफेसर के आने का समय निश्चित था। महिलाओं को हम बुलाते थे लेकिन शैक्षिक कार्य से। किसी की पर्सनल लाइफ में न गए और न ही अपनी लाइफ में किसी को घुसने की अनुमति दी। वीसी चैम्बर में महिला के आने के समय मेरा पीएस साथ रहता था। कुमाऊं यूनिवर्सिटी का मैं पहला वीसी था, जिसने हर किसी के लिए दरवाजे खोल दिए। मैंने अपना एक नम्बर सबको दिया कि अगर कोई काम नहीं हुआ तो रात 9-10 बजे के बीच फोन कर सकते हैं, अगले दिन काम हो जाएगा। कंट्रोलर की बदनामी थी, उसके साथ मैंने सहायक तैनात किया। वहां एआर (असिस्टेंट रजिस्ट्रार) नाम की चीज नहीं थी, मैंने तीन शिक्षकों को नियुक्त किया। मैं जानता हूँ कि कुलपति के पास जितने अधिकार हैं, न मुख्यमंत्री के पास हैं और न ही राजभवन के पास। वीसी चाहे तो यूनिवर्सिटी को ईसी (कार्य परिषद) का सहारा लेकर सेक्शन 13 (6) बी के तहत नीलम कर दे। मैंने अपने प्रभाव से चीजों को दुरस्त किया। मैंने नैनीताल में लॉ कॉलेज का उद्घाटन सुप्रीम कोर्ट के जज चन्द्रचूड़ से कराया तो समूचा प्रशासन हिल गया कि हमें कोई खबर नहीं और हमसे परमीशन भी नहीं ली। मैंने कहा- यूनिवर्सिटी की मालिक ईसी होती है और ईसी का चेयरमैन वीसी (वाइस चांसलर) होता है। एक्ट की धारा 7 पढ़ लीजिए, उसमें आपकी कोई दखलंदाजी नहीं है। मान्यता देना हमारा काम है।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः इतनी साहसपूर्ण बात कैसे कह पाए?

प्रो. केएस रानाः इसलिए कह पाए कि इस्तीफा जेब में लेकर चलता हूँ। मुझे इस चीज का कई डर नहीं है कि पोस्ट पर रहूंगा या नहीं। कोई व्यक्ति नौकरी छोड़ना नहीं चाहता है लेकिन मैं पहले पद से इस्तीफा देकर आगे गया।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आगरा कॉलेज से कई प्रोफेसर प्रिंसपल बने हैं और वे हमेशा छुट्टी लेकर गए हैं, इस्तीफा नहीं दिया?

प्रो. केएस रानाः ज्यादातर यही करते हैं लेकिन मैंने उसकी जरूरत नहीं समझी।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः शिक्षाविद के रूप में आपका देश-विदेश में नाम है, आपकी सफलता का रहस्य क्या है?
प्रो. केएस रानाः आप फाइलों में कैद होकर वीसी बने रहेंगे तो कोई पहचान नहीं बनने वाली हैं। आप ऐसे पापुलर काम करिए जो स्टूडेंट, मीडिया और जनता के बीच में पहचाने जाएं। ये स्टेप मैं लेता रहा हूँ। यह मेरी आदत में है। मुझे इस बात का फख्र है कि मीडिया के बंधुओं ने मुझे चार कॉलम में छापा और लोकल मंत्री को दो कॉलम में। कुमायूं यूनिवर्सिटी आगरा यूनिवर्सिटी से कटकर 50 साल पहले बनी थी। 50 साल बाद भी कुमायूं यूनिवर्सिटी का मुख्य द्वार गऊशाला के गेट जैसा लगा हुआ था। मैंने फाइल मँगाई तो पता चला कि 15 साल पहले प्रयास हुआ था, लेकिन विकास प्राधिकरण अड़ंगा लगा देता है। मैंने रजिस्ट्रार से कहा कि लोक निर्माण विभाग को ठेका दे दो और एक सप्ताह में काम कराओ। विकास प्राधिकरण को मैं देख लूंगा। यही हुआ। स्टील की सुंदर डिजाइन बन गई। फिर दैनिक जागरण ने चार कॉलम खबर छापी कि कुमायूं विश्वविद्यालय को 48 साल बाद मेन गेट मिला है। मेरे पास डीएम भी कहकर आता था कि चाय पीने आना है। कमिश्नर को भी बुला लेता था। प्राधिकरण के चेयरमैन को मैंने बुलाया। उससे पूछा कि गेट बनने पर नोटिस क्यों काटा? कहा कि तुम नए लड़के को, तुम्हारी ऊपर शिकायत नहीं करूंगा। उसने हाईकोर्ट की बात कही तो मैंने कहा कि नालों पर मकान कैसे बन गए। मैं 25 साल से नैनीताल आ रहा हूँ, तब तो कुछ नहीं था, नोटिस फाड़ देना, नहीं तो समझ लेना मैं क्या कर सकता हूँ। खैर सब खत्म हो गया। छात्रसंघ चुनाव से सब बचते हैं। लिंगदोह कमेटी के सिफारिश पर चुनाव कराने थे। मुख्यमंत्री के यहां बैठक हुई। पूछा कि सबसे पहले छात्रसंघ चुनाव कौन कराएगा। हमारे शिक्षा मंत्री धनसिंह रावत ने मेरी ओर देखकर कहा- गुरुजी हमारे अनुभवी हैं, ये कराएंगे सबसे पहले। मैंने लौटकर तीन बाद ही घोषणा कर दी कि 11 सितम्बर को छात्रसंघ चुनाव होंगे। चार कैम्पस और 45 कॉलेजों में चुनाव कराए। छात्र महासंघ का चुनाव भी करा दिया। जब चुनाव शांतिपूर्ण हो गया तो मुख्यमंत्री के यहां बैठक हुई। मुख्यमंत्री ने कहा- कमाल है, आपने चुनाव करा दिए और हमसे हेल्प भी नहीं ली। मैंने कहा – यह तो राइट वीसी को भी है। हमने सीधे बात कर ली। स्टूडेंट्स के बीच इतनी लोकप्रियता बना ली है कि कोई हंगामा नहीं हुआ।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः क्या आप अपने जीवन से पूरी तरह संतुष्ट हैं?

प्रो. केएस रानाः जैसा है, ठीक है। पारिवारिक परिस्थितियां थीं, अन्यथा आज से 20 साल पहले राज्यसभा में जा सकते थे। तीन प्रधानमंत्रियों के साथ मैंने काम किया है। तमाम मंत्रियों के साथ रहा हूँ। कुछ भी कर सकते थे लेकिन अड़ंगा वही परिवारवाद वाला था। परिवार से दूसरा आदमी राजनीति में नहीं आना चाहिए।

डॉ. भानु प्रताप सिंहः कुलपति और टीचर्स को कोई संदेश देना चाहेंगे?

प्रो. केएस रानाः आजकल कोई सुनता तो है नहीं। जो आपको सम्मान देते हैं, वे सामान्य रूप से बात मान लेते हैं। लेकिन आप जीवन में निष्पक्षता, ईमानदारी और निष्ठा से काम करें तो आपके लिए कोई काम बड़ा नहीं है। आप हर उपलब्धि को हासिल कर सकते हैं। आप खरगोश की दौड़ में नहीं, कछुए की दौड़ से चलना होगा। मतलब सतत रूप से चलते रहना होगा। शांतिपूर्वक अपने मिशन में लगे रहें। जहां बाधाएं आती हैं, उनको पार करें। जहां से सहारा मिल सकता है, सहारा लें। संघर्ष के अलावा और कोई रास्ता नहीं है।