जैन स्थानक महावीर भवन, आगरा में श्वेताम्बर जैन मुनियों की पावन उपस्थिति में आध्यात्मिक रूप से मनाया गया स्वतंत्रता दिवस

RELIGION/ CULTURE

आगरा: श्री स्थानकवासी जैन ट्रस्ट, आगरा के तत्वाधान में जैन स्थानक महावीर भवन में चातुर्मासिक कल्प आराधना के अंतर्गत स्वतंत्रता दिवस को आध्यात्मिक भावनाओं के साथ मनाया गया। इस अवसर पर धर्मसभा का आयोजन हुआ जिसमें देशभर से श्रावकों ने भाग लिया और गुरुदेवों के सारगर्भित प्रवचनों का श्रवण किया।

गुरुदेव जय मुनि जी महाराज का आध्यात्मिक संदेश:

आगम ज्ञान रत्नाकर बहुश्रुत श्री जय मुनि जी महाराज ने अपने उद्बोधन में कहा कि 78 वर्ष पूर्व हर भारतीय ने आज़ादी की पहली साँस लेकर उस ऐतिहासिक क्षण का आनंद लिया था। उन्होंने भगवान महावीर के ग्राम धर्म, नगर धर्म और राष्ट्र धर्म के सिद्धांतों को उद्धृत करते हुए कहा कि स्वतंत्रता दिवस को हम “मुक्ति दिवस” भी कह सकते हैं।
गुरुदेव ने बताया कि भगवान द्वारा वर्णित आज़ादी करुणा से परिपूर्ण थी। उन्होंने शास्त्र के प्रत्येक अंश में करुणा बरसाई, जो सूत्र, अर्थ और उभय के रूप में प्रेषित हुई।

उन्होंने सूत्र और अर्थ के गूढ़ संबंध को स्पष्ट करते हुए कहा कि अर्थ में शब्द की आवश्यकता होती है, परंतु सूत्र के बिना अर्थ का महत्व नहीं है। भाव की स्मृति से हम अर्थ की गहराई में उतरकर स्वभाव में परिवर्तन ला सकते हैं।

गुरु हनुमंत श्री आदीश मुनि जी का चिंतन:

हृदय सम्राट श्री आदीश मुनि जी ने फरमाया कि जैन परिभाषा में स्वतंत्रता दिवस को “मुक्ति दिवस” कहा जा सकता है। उन्होंने 1857 के प्रथम विद्रोह से लेकर 1947 की राजनीतिक स्वतंत्रता तक की यात्रा को रेखांकित करते हुए कहा कि आज भी हम आध्यात्मिक दृष्टि से स्वतंत्र नहीं हैं।

उन्होंने कहा कि हिन्दी राष्ट्रभाषा होते हुए भी कई राज्यों में विरोध का सामना कर रही है। असली आज़ादी तब मानी जाएगी जब आत्मा के कर्मरूपी बंधन टूटने लगेंगे। उन्होंने श्रावकों को प्रेरित किया कि वे किसी एक दुर्व्यसन को त्यागने का संकल्प लें, कषाय कम करने का विचार लाएँ, रुढ़ियों और अंधविश्वासों से ऊपर उठें, और किसी वस्तु के गुलाम न बनें — यही सच्ची आज़ादी है।

पूज्य विजय मुनि जी का आध्यात्मिक दृष्टिकोण:

पूज्य विजय मुनि जी ने प्रभु प्रार्थना को जीवन का अमृत बताया। उन्होंने कहा कि सभी धर्मों में प्रार्थना का महत्व है और सच्ची तन्मयता से आत्मविभोर होकर परमात्मा से लय लगाने पर उसे पाया जा सकता है। भक्त माध्यम बनकर जीवन नैया को तट तक पहुंचा सकता है। उन्होंने आत्मा के ध्यान और आत्मचिंतन पर बल दिया ताकि हम उज्ज्वलता की दिशा में अग्रसर हो सकें।

ध्वजारोहण एवं प्रसाद वितरण:

धर्मसभा से पूर्व महावीर भवन में श्री स्थानकवासी जैन ट्रस्ट द्वारा ध्वजारोहण किया गया। इस अवसर पर ट्रस्ट के प्रमुख पदाधिकारी — रंजीत सिंह सुराना, गुलाब चन्द्र चपलावत, सुरेन्द्र सोनी, राजेश सकलेचा, वीरेन्द्र जैन, उज्ज्वल जैन — उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंत में मिष्ठान और ठंडाई का वितरण किया गया।

जाप एवं त्याग की प्रेरणा:

धर्मसभा के अंत में गुरुदेव जय मुनि जी ने श्रावकों को “श्री अह्र नाथाय नमः” का जाप करने की प्रेरणा दी और आज के दिन खीर, खीरा, खटाई और झूठा न छोड़ने की शपथ दिलाई।

देशभर से श्रावकों की सहभागिता:

इस विशेष अवसर पर हैदराबाद, जालंधर, दिल्ली, रिवाड़ी, पानीपत, होशियारपुर सहित अनेक शहरों से श्रावक गुरुदेवों के प्रवचनों के श्रवण हेतु उपस्थित हुए।

तपस्या की साधना:

धर्मसभा में तपस्या के क्रम में श्रीमती सुनीता का उन्नीसवाँ, श्रीमती नीतू का छठा और मनोज का पाँचवाँ उपवास साता पूर्वक चल रहा है, जो श्रावकों की आध्यात्मिक साधना का प्रतीक है।

Dr. Bhanu Pratap Singh