Dadaji maharaj agra

Guru Purnima संत चमत्कार नहीं दिखाते लेकिन राधास्वामी मत के गुरु दादाजी महाराज के बारे में चमत्कार के अनेक अनुभव हैं, Video

RELIGION/ CULTURE

डॉ. भानु प्रताप सिंह

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे।

कहते हैं संत चमत्कार नहीं दिखाते हैं लेकिन यदि कोई अनायास ही आपकी असाध्य बीमारियों को ओझल कर दे, दुर्घटनाओं में जीवन रक्षक बनकर प्रकट हो जाए और आप कितने ही विचलित हो और उससे मिलते ही आपको राह मिल जाए, मन शांत और स्थिर हो जाए तो ऐसा व्यक्तित्व निःसंदेह ही साधारण मानव की श्रेणी से विलग हो असाधारण महामानव के रूप में स्थापित होने लगता है। ऐसा महामानव हजारों लाखों लोगों को चमत्कारिक रूप से उनकी विपदा, आपदा, अभाव, शोक और विषाद के क्षणों में संजीवनी औषधि सा प्रतीत होने लगे, जब उसकी यशोगाथा, शौर्य गाथा की पताका लिए समाज के मलिन, दलित, शिक्षित, अशिक्षित, साधारण कुल और कुलीन विचरण करने लगे तो वह व्यक्ति महामानव और दिव्य मानव जैसे विशेषण और अलंकारों से भरी व्यक्तियों की आस्था का केन्द्र बिंदु बन जाता है। फिर उसे सद्गुण और सत्तगुणों से परिपूर्ण मान अपने सतगुरु और संत के रूप में आराधना लगते हैं। ऐसे ही हैं राधास्वामी मत के गुरु प्रो. अगम प्रसाद माथुर (दादाजी महाराज)।  गुरु पूर्णिमा पर जानते हैं सतसंगियों के साथ हुई कुछ चमत्कारी घटनाओं के बारे में-

 

दादाजी महाराज की निजी सेवा में समर्पित बृजेन्द्र सिंह एडवोकेट ने दादाजी महाराज की पारलौकिक शक्तियों के बारे में दो अनुभव सुनाए- इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील यशोदानंदन ने एक मामले में दादाजी महाराज की पैरवी की। दादाजी ने प्रसन्न होकर कहा- तुम जज बन जाओगे। एक वर्ष बाद ही वे जज बना दिए गए। दूसरी घटना के बारे में बताते हैं- आगरा विश्वविद्यालय के कुलपतित्व काल में उत्तर प्रदेश के राज्यपाल से वैचारिक मतभेद गहरा गए थे। सत्ता के मद में चूर राज्यपाल ने षड्यंत्र रचना शुरू कर दिया। राज्यपाल से भेंट हुई तो दादाजी महाराज ने कहा- हुनूस दिल्ली दूरस्त। कुछ दिन बाद ही राज्यपाल हटा दिए गए।

 

प्रोफेसर माथुर की आध्यात्मिक शक्ति से अभिभूत व उत्तर प्रदेश शासन के वरिष्ठ आईएएस अधिकारी एच.के. माथुर का अनुभवः उनके (दादाजी महाराज) बेटे की शादी में सम्मिलित हुआ। जब विवाह समाप्ति पर विदाई लेनी चाही तो वे बोले, अभी क्या जल्दी है, एक-दो दिन में चले जाना। फिर बोले आज तुम जा नहीं पाओगे। मेरे विशेष आग्रह पर जाने की अनुमति तो दे दी लेकिन मुझे भारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। रेल की बोगी पलट गई। मुझे स्टेशन से वापस लौटना पड़ा। मैंने आज्ञा पालन न करने का बहुत प्रायश्चित किया।

 

जयपुर निवासी श्रीमती सरोज माथुर ने दादाजी महाराज के चमत्कार को प्रत्यक्षदर्शी के रूप में देखा है। उनका अनुभव- एक सज्जन जिन पर प्रेत आत्माओं का प्रकोप था प्रोफेसर माथुर के पास आए। उनकी मां बरुआ जी ने उनसे प्रार्थना की कि उक्त सज्जन पर दया की जाए। प्रोफ़ेसर माथुर तत्काल ही अध्यापन कार्य से लौटे थे मगर आग्रह टाल नहीं सके। अपने चरण (पैर का पंजा) पीड़ित के सिर पर रखा और बोले जाओ सब ठीक होगा। इस पर व्यक्ति बोला मेरी काकी का भी उद्धार करो। प्रोफेसर माथुर ने एक बार और उसके सिर पर चरण रखे और कमरे में चले गए। शाम तक वह व्यक्ति पूर्ण स्वस्थ हो गया। उसके ऊपर जो दो प्रेत आत्माओं का प्रकोप था, वह समाप्त हो गया।

श्रीमती सरोज माथुर का एक और अनुभव इस प्रकार है- जब विवाह के उपरांत ससुराल में पहुंची तो वहां वर वधु को मंदिर में ले जाकर बकरे की बलि देने की प्रथा थी, जिसे वो लोग जात कहते थे। ससुराल में बलि की तैयारियां शुरू हो गईं। पूरी रात बकरा मेरे कमरे के समीप बंधा रहा। उसकी दर्द भरी आवाज रात भर सुनाई देती रही। मैंने तत्काल दादाजी महाराज का स्मरण किया और प्रार्थना की कि मुझे जीव हत्या के लिए ना जाना पड़े। उन्होंने मेरी पुकार सुनी और अचानक रात्रि में ही रिश्तेदारी में एक मौत की सूचना मिलने पर बलि का कार्यक्रम रद्द कर दिया। इसके साथ ही यह प्रथा हमेशा के लिए परिवार से समाप्त हो गई।

 

श्रीमती सरोज लिखती हैं कि दादाजी महाराज को भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का आभास रहता है। दादाज ने उनके परिवार को एक टेप रिकॉर्डर उपहार में दिया और कहा कि इसे संभाल कर रखना, कहीं चोरी ना हो जाए। हमारे परिवार ने सोचा आखिर घर से चोरी क्यों होगी। लेकिन हमारे घर में चार-पांच महीने बाद ही चोरी हो गई और अन्य सामान के साथ टेप रिकॉर्डर भी चोरी हो गया। इतना ही नहीं एक अटैची चोरी हो गई तो हमने दादाजी को फोन किया तो उन्होंने कहा कि शाम तक वापस मिल जाएगी। शाम से पहले हम लोगों को अटैची मिल गई।

 

प्रोफेसर माथुर से उपकृत चंद्र प्रकाश शर्मा का अनुभव– जून, 1966 में उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग की छँटनी में नौकरी चली गई तो मैं आगरा आकर सत्संग और सेवा में हाजिरी देने लगा। इसी समय एक दिन प्रोफेसर माथुर ने मुझे मिस्टर इंजीनियर कहकर पुकारा, फिर मेरी ओर नजरें करके कहा कि चिंता न करो सब ठीक हो जाएगा। 2 दिसंबर 1966 को ही मुझे केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान रुड़की में नौकरी मिल गई। यहीं काम करते हुए ही मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग की उपाधि मिली और मैं वास्तव में आशा के विपरीत इंजीनियर बन गया।

 

चौधरी गुरुदयाल सिंह का अनुभव इस तरह का है- अबोहर मंडी में एक महिला अपने परिजनों के साथ कमरे में सो रही थी। तभी दादाजी वहां प्रकट हुए और उस महिला तथा परिजनों जगाकर कहा कि छत गिर रही है भागो। पूरा परिवार कमरे से बाहर निकला ही था कि कमरे की छत वास्तव में गिर पड़ी। पूरा परिवार प्रो.माथुर का अनुयायी हो गया। उनका एक और अनुभव इस प्रकार है-  मैं अपनी ससुराल गया था। गर्मी के कारण मेरा साला जमीन पर सो रहा था। कहीं से उसके गद्दे पर एक सर्प आ गया। तभी दादाजी महाराज प्रकट हुए और हाथ पकड़ कर मेरे साले को सांप से दूर खींचकर बचा दिया। उनका एक और अनुभव इस प्रकार है- मैं स्कूटर से जा रहा था तभी हाईवे पर मेरा एक्सीटेंट हो गया। मैं ट्रक के नीचे गिर गया। तभी दादाजी ने मुझे दर्शन दिए और ट्रक मेरे रुक गया और मैं सुरक्षित बाहर निकल आया। मेरे शरीर पर खरोंच भी न आई। यह देखकर लोग हैरान थे।

 

भीलवाड़ा निवासी गुरुशरण खेमका का अनुभवः मेरी फैक्ट्री में हुई दुर्घटना में एक श्रमिक की मौत हो गई। पूरा स्टाफ मुझे सवालिया नजरों से देख रहा था। मैंने तत्काल अपने ऊपर आई इस विपदा के बारे में फोन कर दादाजी महाराज को अवगत कराया और दया मांगी। दादाजी ने कहा कि जिसे तुम मरा कह रहे हो वह जिंदा है ध्यान से देखो और कुलमालिक राधास्वामी दयाल का शुक्रिया अदा करो। पुष्टि करने के लिए मैं उसके निकट गया तो हरकत करने लगा। पूरा स्टाफ उसके इलाज में जुट गया। दादाजी की इस दया और मेहर का शुकराना करने के लिए मेरे पास कोई शब्द नहीं हैं। (राधास्वामी मत परंपरा और दादाजी महाराज से साभार)

Dr. Bhanu Pratap Singh