जूता-चप्पल रखने के लिए गुरुद्वारा जैसा इंतजाम
वेद रूपी कल्पवृक्ष का रसमय फल श्रीमद्भागवत कथा
दूसरे दिन परीक्षित जन्म, कलयुग, कृष्ण स्तुति
डॉ. भानु प्रताप सिंह
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Agra, Uttar Pradesh, Bharat, India. भागवत कथा तो आपने बहुत सुनी होंगी लेकिन जैसी एसकेएस ग्रुप के संतोष कुमार शर्मा करवा रहे हैं, वैसी नहीं। फतेहाबाद रोड स्थित राज देवम सभागार में विश्वविख्यात भागवताचार्य डॉ. श्याम सुंदर पाराशर कथा सुना रहे हैं। इसीलिए यह भागवत कथा अद्भुत और अनोखी है। कथास्थल जितना भव्य है, उससे अधिक कथा श्रवण करना दिव्य है। दिव्य इसलिए यहां वास्तविक रूप से भागवत कथा सुनाई जा रही है, मनोरंजन नहीं किया जा रहा। जो भागवत कथा में सिर्फ मनोरंजन के लिए आते हैं, उन्हें यहां कुछ नहीं मिलने वाला। भक्ति, ज्ञान, ईश वंदना के साथ-साथ परिवार और समाज की चिंता भी की जा रही है। कथा का समय है अपराह्न एक से शाम पांच बजे तक।
नेता नगरी का आवागमन
शहर के कोलाहल से दूर शांत वातावरण में भागवत कथा हो रही है। चार घंटे कब बीत जाते हैं, पता ही नहीं चलता है। नेता नगरी का आवागमन भी चलता रहता है। कई नेता भूमि पर बैठकर कथा श्रवण करना चाहते हैं लेकिन कार्यकर्ता सोफे पर बैठाते हैं। कुछ नेता जी ऐसे भी आ रहे हैं, जिन्हें सोफा ही चाहिए। देर से आते हैं, लेकिन आगे बैठने की चाह है। नेताजी के सम्मान में कुछ लोग सीट छोड़ देते हैं। कई नेता तो कथा समापन से 15-20 मिनट पहले आ रहे हैं।
दूर-दूर से आ रहे श्रद्धालु
श्रीमद्भागवत कथा सुनने शमसाबाद, फतेहाबाद, बाह, खेरागढ़, फतेहपुर सीकरी, किरावली, अछनेरा आदि स्थानों से हजारों श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। सूरकुटी के छात्र भी प्रतिदिन पहुंच रहे हैं। उत्तम व्यवस्थाएं हर किसी को आकर्षित कर रही हैं।
गुरुद्वारा जैसे इंतजाम
भागवत कथा स्थल पर चप्पलों की बड़ी भारी समस्या रहती है। चप्पलें इधर-उधर बिखर जाती हैं। सारा वातावरण खराब हो जाता है। इसे देखते हुए आयोजक संतोष कुमार शर्मा ने खास व्यवस्था की है। गुरुद्वारे की तरह जूता-चप्पल रखने का इंतजाम किया है। सबको टोकन दिया जाता है। यह व्यवस्था निःशुल्क है। इसके बाद भी कुछ साहब ऐसे हैं जो चप्पलों को कहीं भी उतारने से बाज नहीं आ रहे हैं। यहां तक कि निःशुल्क जूता घर के बाहर भी चप्पलें उताकर निकल जाते हैं। अच्छी बात यह है कि सभागार के द्वार तक चप्पलें नहीं पहुंच पा रही हैं। कुछ तो अच्छा हुआ।
भागवत कथा क्या है
भागवताचार्य डॉ. श्याम सुंदर पाराशर ने कहा- श्रीमद्भागवत कथा कल्पवृक्ष रूपी वेदों का रसमय फल है। कलयुग में संसार रूपी भवसागर को पार करने के लिए श्रीहरि का नाम ही सहायक है। सतयुग, त्रेता और द्वापर में जो फल कठिन तपस्या से प्राप्त होता था, कलयुग में केवल श्रीहरि की भक्ति और भजन के प्राप्त हो सकता है। यहां तक की मन में प्रभु के चिन्तन मात्र से भी प्रभु अपने भक्तों के कष्ट हर लेते हैं, परन्तु भक्ति निःस्वार्थ होनी चाहिए।
आज धर्म सिर्फ एक ही पैर पर खड़ा है
व्यासपीठाचार्य डॉ. श्यामसुन्दर पाराशर ने धर्म की व्याख्या करते हुए कहा कि धर्म का आचरण सत्य का पालन होता है। सेवा में जब कपट और स्वार्थ आ जाए तो वह कपटपूर्ण धर्म बन जाता है। निष्काम भाव से वेद शास्त्रों की आज्ञा का पालन करना ही सच्चा धर्म है। धर्म चार पैरों पर खड़ा होता है। सत्य, तप, दया और शौच (पवित्रता)। परन्तु आज धर्म सिर्फ एक ही पैर सत्य पर खड़ा है। तप, दया और पवित्रता का लोप हो गया है।
कलयुग का वास चार चीजों में
राजा परिक्षित व कलयुग के संवाद का वर्णन करते हुए कहा कि जुआ, मदिरापान, व्यभिचार और हिंसा ये कलयुग के चार केन्द्र बिन्दु हैं। कलयुग के प्रभाव से बचना है तो इनसे चारों से दूरी बनाकर रखें। केवल हरिनाम ही कलयुग के प्रभाव से बचा सकता है। निर्विकार शुकदेव व राजा परिक्षित की जन्मकथा का वर्णन करते हुए बताया कि कैसे श्रीहरि ने उत्तरा के गर्भ में अर्जुन पुत्र परीक्षित की रक्षा की। भीष्म व कुन्ती स्तुति के संगीतमय वर्णन ने भक्तों को भावुक कर दिया। परिक्षित की जन्म कथा सुन कथास्थल पर श्रीहरि के जयकारे गूंजने लगे।
इन्होंने की आरती
मुख्य यजमान संतोष शर्मा व उनकी धर्मपत्नी ललिता शर्मा, उत्तर प्रदेश सरकार की कैबिनेट मंत्री बेबीरानी मौर्य, पूर्व मंत्री राजा महेन्द्र अरिदमन सिंह, ऋषि उपाध्याय, रामकुमार शर्मा ने आरती की
उल्लेखनीय उपस्थिति
इस मौके पर पूर्व विधायक डॉ. राजेन्द्र सिंह, आरएसएस के विभाग संघचालक भवेन्द्र शर्मा, सुनील शर्मा, पीएल शर्मा, मधुसूदन शर्मा, डॉ. मुरारी लाल दीक्षित, धन कुमार जैन, मनोज कुमार गुप्ता, मनीष शर्मा, सुभाष चौधरी, जितेंद्र रावत, पूर्ण प्रकाश कटरा, अजय शर्मा, मनीष थापक, सुभाष उपाध्याय, रविकांत पचौरी, मुकेश शर्मा, सुभाष शर्मा, आरके शर्मा, हरि मोहन शर्मा, राजेंद्र बरुआ, दैनिक जागरण के पूर्व संपादक आनंद शर्मा की उपस्थिति उल्लनेखनीय रही। व्यवस्थाएं बनाने में पंडित मनीष थापक की भागदौड़ देखते ही बनती है।
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