काशी के बाद सर्वाधिक शिवलिंग, अर्ध चंद्राकर बहती है गंगा
रामायण काल में कुश के पुत्र कौशाम्ब ने बसाया था
महाभारत काल में यहीं हुआ था द्रोपदी का स्वयंवर
महावीर और बुद्ध के समय 10वां महाजनपद था
सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनि का आश्रम
डॉ. भनु प्रताप सिंह
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Farrukhabad (Bhishma Pitamah Nagar), Uttar Pradesh, India, Bharat. भारत के उत्तर प्रदेश में एक शहर ऐसा भी है जिसकी स्थापना रामायण काल में हुई थी। महाभारत काल में द्रोपदी स्वयंवर यहीं हुआ था। महात्मा बुद्ध का आगमन यहां हुआ। नीम करोली बाबा का जन्म स्थान है। कपिल मुनि का आश्रम है जिनका सांख्य दर्शन पूरी दुनिया में विख्यात है। इसके बाद भी नाम है फर्रुखाबाद। इतिहास लिख दिया कि फर्रुखसियर के नाम पर फर्रुखाबाद है। इतिहास का ऐसा विकृत रूप कहीं देखा और सुना नहीं होगा। खैर, डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के प्रोफेसर लवकुश मिश्र की पहल पर एक अभियान शुरू हुआ है। इसके तहत फर्रुखाबाद का नामकरण पितामह भीष्म नगर किया जा रहा है। धीरे-धीरे लोगों की जुबान पर यह नाम आ रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सूची में फर्रुखाबाद का नाम पहले से ही पितमाह भीष्म नगर है, ठीक वैसे जैसे अलीगढ़ को हरिगढ़ और फिरोजाबाद को चंद्रनगर कहा जाता है।
इतिहास पर नजर
रामायण की बात करें तो फर्रुखाबाद नगर को कुश के पुत्र कौशाम्ब ने बसाया था। 35 किलोमीटर दूरी पर संकिशा है, जिसका प्रथमोल्लेख वाल्मीकि रामायण में पाया जाता है। संकिसा नरेश सीता स्वयंवर में आमन्त्रित थे। ‘अमावासु’ ने एक राज्य की स्थापना की, जिसके बाद की राजधानी कान्यकुब्ज (कन्नौज) थी। महाभारत में द्रौपदी का स्वयंवर यहीं हुआ था। पूरे क्षेत्र को काम्पिल्य कहा जाता था और जिसका मुख्य शहर कम्पिल हुआ करता था, जो दक्षिण पंचाल की राजधानी थी। महावीर और बुद्ध के समय में सोलह प्रमुख राज्यों (महा जनपद) की सूची में पांचाल दसवें स्थान के रूप में शामिल था। चौथी शताब्दी बी.सी. के मध्य में महापद्म के शासनकाल में इस क्षेत्र को मगध के नंद साम्राज्य से जोड़ा गया था। अशोक ने संकिसा में में एक अखंड स्तम्भ का निर्माण किया था। 606 ईसी में हर्षवर्धन जब दिल्ली के उत्तर में स्थित थानेश्वर का शासक बना तो उसने अपनी राजधानी गंगातटीय कन्नौज में स्थानांतरित की। हर्षवर्धन के 41 वर्ष के शासनकाल में भारत का एक महत्वपूर्ण केन्द्र था।
सरकारी वेबसाइट पर
https://farrukhabad.nic.in के मुताबिक फर्रुखाबाद की स्थापना नवाब मोहम्मद खां बंगश ने की थी, जिसने इसे 1714 में शासक सम्राट फरुखशियर के नाम पर रखा था, फर्रुखाबाद जिला, कानपुर मण्डल का हिस्सा है। जनपद फर्रुखाबाद के उत्तर में बदायूं एवं शाहजहांपुर, पूर्व में हरदोई, दक्षिण में कन्नौज और पश्चिम में जिला एटा और मैनपुरी स्थित हैं । गंगा एवं रामगंगा पूर्व की तरफ और काली नदी दक्षिण की ओर स्थित हैं। फतेहगढ़ का नाम पुराने किले से है। फतेहगढ़ में काफी महत्व के सैन्य स्टेशन बने हैं। 1802 में यह गद्दीदार प्रान्तों के लिए गवर्नर जनरल एजेंट का मुख्यालय बन गया। 1818 में यहां एक बंदूक कैरिज कारखाना स्थापित किया गया था। फर्रुखाबाद जिले में 2,28,830 हेक्टेअर के कुल क्षेत्रफल वाले 3 तहसील, 7 ब्लॉक, 603 ग्राम पंचायत, 1020 राजस्व गांव, 14 पुलिस स्टेशन, 2 नगर पालिका और 4 नगर पंचायत (टाउन एरिया) और 1 कैंट हैं। जनपद की कुल आबादी लगभग 18.85 लाख है।
फर्रुखाबाद का नाम बदलकर पितामह भीष्म नगर किया जाए
डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा के पर्यटन एवं होटल प्रबंधन संस्थान में विभागाध्यक्ष प्रोफेसर लवकुश मिश्र बताते हैं कि फर्रुखाबाद का नाम बदलकर पितामह भीष्म नगर रखने की जरूरत है। इसके लिए सभी को अपने-अपने स्तर पर प्रयास करना होगा। शासन-प्रशासन जनप्रतिनिधियों के द्वारा उचित कदम उठाए जाएं। यह पांचाल क्षेत्र महाभारत कालीन गौरवशाली क्षेत्र रहा है। इसकी पहचान फर्रखशियर से नहीं बल्कि पितामह भीष्म से है। यहां तमाम धार्मिक स्थल हैं। पास में ही बौद्धों का विश्व प्रसिद्ध स्थल संकिसा है। मां गंगा के किनारे बसे इस तीर्थ क्षेत्र को अगर महाभारत की ऐतिहासिकता से जोड़ा जाएगा तो घरेलू पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी जिससे इस क्षेत्र में आर्थिक उन्नति होगी। आने वाली पीढ़ियां महाभारत की घटनाओं से सीख लेकर के अपने जीवन को संवारेगी।
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फर्रुखाबाद का नवयुवक आज अपनी पहचान के लिए तरस रहा
फर्रुखाबाद का नवयुवक आज अपनी पहचान के लिए तरस रहा है। देश-विदेश में जब वह नौकरी के लिए जाता है तो अपनी पहचान को व्यक्त नहीं कर पाता है। आवश्यकता है कि हम आने वाली पीढ़ी को उसकी पहचान दें। इसके लिए सबसे पहले इसका नामकरण वास्तविक नाम के आधार पर होना चाहिए।
हिंदू समाज प्रभावित
प्रोफेसर मिश्रा ने कहा कि विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा भारत की जो सांस्कृतिक विरासत नष्ट की गई इसका दुष्प्रभाव न केवल भारत पर या हिंदू समाज पर पड़ रहा है बल्कि पूरी मानव जाति पर पड़ रहा है। पूरी मानव जाति आज भारत की उस गौरवशाली ज्ञान से वंचित रह गई है जिसके कारण पूरी दुनिया में तरक्की का एक नया युग शुरू हो सकता था। प्रोफेसर मिश्रा ने कहा कि नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने वाले बख्तियार खिलजी ने न केवल किताबें जलाई बल्कि सदियों के शोध द्वारा अर्जित ज्ञान को भी जला दिया। जिसमें आयुर्वेदिक सहित तमाम शास्त्रों की जरूरी जानकारियां जल कर स्वाहा हो गई। अगर वह आज होती तो शायद पूरा विश्व एलोपैथी के जाल में जो फंसा हुआ है और अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा महंगी दवाओं पर खर्च कर रहा है उससे बच जाता और उस पैसे का उपयोग वह अपनी आर्थिक और आध्यात्मिक उन्नति के लिए करता।
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सांस्कृतिक विरासत से समृद्धि
प्रोफेसर ने फर्रुखाबाद के श्री रामनगरिया मेले में आयोजित संगोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में भाग लिया। उन्होंने कहा कि जो समाज अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेज कर रखता है और उसका संरक्षण करता है वह सदैव उन्नति करता है। इससे न केवल देश में समृद्धि आती है बल्कि आने वाली पीढियों के लिए प्रेरणा भी मिलती है।
प्रचार-प्रसार की जरूरत
प्रोफेसर मिश्रा ने कहा कि हमारे तमाम सांस्कृतिक धरोहरों को आक्रांताओं के द्वारा नष्ट कर दिया गया था। उन्हें आज फिर से पुनर्जीवित करने और उनके भी प्रचार प्रसार की आवश्यकता है। यह केवल आर्थिक प्रगति के लिए ही नहीं बल्कि सामाजिक संतुलन और समाज में अपराधों को रोकने के लिये भी आवश्यक है।
सांस्कृतिक धरोहरों को नष्ट करने वाले बर्बाद
रामनगरिया मेला जिला प्रशासन तथा पांचाल शोध एवं विकास समिति फर्रुखाबाद द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया जाता है। संगोष्ठी में प्रो. मिश्र ने विश्व के तमाम देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि जिन देशों ने अपने सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण नहीं किया या उनसे घृणा की वे आज बर्बादी की कगार पर हैं। उनकी आने वाली पीढ़ियां बर्बाद हो चुकी हैं। आर्थिक रूप से विपन्नता आ चुकी है। उदाहरण के तौर पर अफगानिस्तान में बामयान की मूर्ति को बारूद लगाकर तोड़ने वाले या पाकिस्तान में मां शारदा सहित तमाम मंदिरों को तहस-नहस करने वाले आज खुद मिटने की कगार पर हैं। भारत ने अपनी संस्कृति का संरक्षण किया, अपने मंदिरों को सहेज कर रखा उसका परिणाम आज पूरी दुनिया देख रही है।
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काशी विश्वनाथ और राम मंदिर का लाभ
उन्होंने कहा कि आर्थिक प्रगति में सांस्कृतिक धरोहर का अमूल्य योगदान होता है। आज प्रभु श्री राम जी का मंदिर अयोध्या में लाखों लोगों के रोजगार का साधन बन गया है। इसके पूर्व काशी में भगवान विश्वनाथ के दर्शन के लिए आने वाले लाखों श्रद्धालुओं ने स्थानीय जनता सहित तमाम लोगों को रोजगार उपलब्ध कराया है। जो लोग कुतर्क किया करते थे कि अयोध्या में प्रभु श्री राम के मंदिर के बजाय वहां पर विश्वविद्यालय और अस्पताल खोलने चाहिए, उन्हें यह समझना चाहिए कि अभी एक महीने से कम ही हुआ है कि प्रभु श्री राम के मंदिर में स्थापना के बाद लगभग 2 लाख श्रद्धालु प्रतिदिन अयोध्या आ रहे हैं। एक महीने से कम समय में ही विश्वविद्यालय या अस्पताल खोलने की धनराशि चढ़ावे में आ चुकी है ।
कुंभ मेला और केदारनाथ
उत्तर प्रदेश का ही दूसरा उदाहरण है प्रयागराज में लगने वाले कुंभ मेला का। प्रति वर्ष लगने वाले इस मेले के कारण आसपास के क्षेत्र में धार्मिक भावना के विस्तार के साथ-साथ ही स्थानीय लोगों के लिए वृहद स्तर पर रोजगार का अवसर उपलब्ध कराता है। गत वर्ष उत्तराखंड के श्री केदारनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं के आवागमन के कारण खच्चर मालिकों को 100 करोड़ से ऊपर का लाभ मात्र 4 महीने की यात्रा के दौरान हुआ था। ज्यादातर खच्चर वाले मुस्लिम समुदाय के थे। मंदिर या सांस्कृतिक मेले से किसी एक धर्म या संप्रदाय विशेष को ही लाभ मिलता है, ऐसा कहना गलत है।
धार्मिक आयोजनों से अपराध पर नियंत्रण
उन्होंने कहा कि कुंभ मेले में मौनी अमावस्या या बसंत पंचमी के दिन लाखों करोड़ों लोग एक साथ एक दिन में स्नान करते हैं परंतु अपराध की दर देखें तो यह अन्य शहरों की जनसंख्या के अनुपात में बहुत कम होती है। क्योंकि मानव प्रवृत्ति होती है कि जब व्यक्ति धार्मिक होता है तब वह अपराध नहीं करता है। धर्म और अपराध एक साथ नहीं चल सकते हैं। प्रवृत्ति बदल जाती है। अगर देश में धार्मिक आयोजनों और संस्कृति को आने वाली पीढियां के बीच प्रचारित प्रसारित किया जाए तो पूरे देश के अपराध नियंत्रण में भी अद्भुत सहायता मिलेगी जिससे पुलिस की कम आवश्यकता होगी और पुलिस और अन्य अपराध नियंत्रण में होने वाले खर्च को विकास के लिए आवंटित किया जा सकता है।
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फर्रुखाबाद सभी धर्मों से जुड़ा रहा
मुख्य अतिथि के रूप में उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत पुलिस महानिरीक्षक तथा प्रसिद्ध इतिहासविद डॉक्टर शैलेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि फर्रुखाबाद सभी धर्मों से जुड़ा रहा है। यहाँ बौद्ध, जैन और हिन्दू सभी से संबंधित स्थल है। जरूरत है कि उन्हे पर्यटन मानचित्र पर लाकर प्रचार प्रसार किया जाये। कार्यक्रम की अध्यक्षता पूर्व सांसद श्री चंद्र भूषण सिंह ने की।
काशी के बाद सबसे ज्यादा शिवलिंग, गंगा अर्धचंद्राकार रूर में
पाँचाल शोध एवं विकास समिति के अध्यक्ष डॉक्टर सुरेन्द्र सिंह सोमवंशी ने कहा कि समिति के प्रयासों से गंगा के घाटों का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है। मंदिरों का जीर्णोद्धार जारी है। उन्होंने कहा कि काशी के बाद सबसे ज्यादा शिवलिंग यही पर हैं और काशी की तरह यहां गंगा अर्ध चंद्राकार में बहती है। इसिलिए इसे अपरा काशी भी कहते हैं। उन्होंने कहा कि पांचाल शोध एवं विकास समिति ने डॉक्टर भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के पर्यटन एवं होटल प्रबंधन संस्थान के साथ पिछले वर्ष समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किया था। तब से विश्वविद्यालय से निरंतर एक दृष्टि व प्रेरणा कार्य करने के लिए मिलती है।
प्रो. लवकुश मिश्र को पांचाल गौरव सम्मान
इस अवसर पर प्रो. लवकुश मिश्र को पांचाल गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। प्रसिद्ध कवयित्री डॉक्टर श्वेता दुबे सहित अन्य वक्ताओं ने भी अपने विचार रखे। संगोष्ठी के संयोजक भूपेन्द्र सिंह ने सभी का अभार व्यक्त किया।
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