11 अक्टूबर तक टली हाई कोर्ट में बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर मामले की सुनवाई, बिल्डर 510 करोड रुपए देने को तैयार

11 अक्टूबर तक टली हाई कोर्ट में बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर मामले की सुनवाई, बिल्डर 510 करोड रुपए देने को तैयार

REGIONAL

 

प्रयागराज। वृंदावन (मथुरा) के बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर निर्माण मामले में शुक्रवार को आगरा के व्यापारी प्रखर गर्ग ने इलाहाबाद हाई कोर्ट से अर्जी देकर कहा है कि वह प्रोजेक्ट पूरा करने के लिए 510 करोड़ रुपये देने के लिए तैयार हैं। वह 100 करोड़ रुपये एक महीने में जमा कर देंगे। इस पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सरकार से पूछा कि आप मंदिर का पैसा चाहते ही क्यों हैं? क्या, सरकार के पास पैसे की कमी है? अगर सरकार के पास पैसे की कमी नहीं है तो सारे विवाद का हल हो गया। तब तो कोई विवाद ही नहीं बचा।

लोक शांति व व्यवस्था के लिए प्रस्तावित योजना हुई तैयार

महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र व अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने कहा लोक शांति और व्यवस्था के लिए सरकार ने प्रस्तावित योजना तैयार की है, जिसमें नागरिक सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। मंदिर की व्यवस्था के लिए मंदिर का पैसा लगाने में किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए। अनंत शर्मा की जनहित याचिका की मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की खंडपीठ सुनवाई कर रही है।

सेवायतों की ओर से कहा गया कि सरकार मंदिर की सुविधा बढ़ाना चाहती है, उन्हें कोई आपत्ति नही है लेकिन निजी  मंदिर का ट्रस्ट है। चढ़ावे पर सरकार को दावा नहीं करना चाहिए।

तथ्यात्मक मुद्दे को लेकर कोई भी याचिका पोषणीय नहीं: सुप्रीम कोर्ट

अधिवक्ता संजय गोस्वामी ने याचिका की पोषणीयता पर सवाल उठाया। गोस्वामी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के अनुसार केवल तथ्यात्मक मुद्दे को लेकर कोई भी याचिका पोषणीय नहीं है। कानूनी अधिकार को लेकर ही याचिका पोषणीय है। याचिका खारिज की जाए।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है किंतु यह निर्बाध नहीं

याची अधिवक्ता श्रेया गुप्ता ने कहा कि  संविधान के अनुच्छेद 25 व 26 में धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार है किंतु यह निर्बाध नहीं है। युक्तियुक्त हस्तक्षेप किया जा सकता है। वर्तमान समय में मंदिर प्रबंधन के लिए कोई समिति नहीं है। सिविल जज की निगरानी में व्यवस्था की जा रही है। प्रबंधन विवाद  मथुरा की सिविल अदालत में विचाराधीन है।  सरकार दर्शनार्थियों की सुरक्षा के कदम उठा सकती है।

कोर्ट ने जानना चाहा कि अगर योजना लागू की जाती है तो मंदिर का प्रबंधन किसके हाथ होगा? सेवायतों के साथ ट्रस्ट के हाथ या सरकार के हाथ। हालांकि, सरकार की ओर से इस सवाल का जवाब नहीं दिया गया।

11 अक्टूबर को होगी अगली सुनवाई

अधिवक्ता राघवेंद्र मिश्र ने कहा कि सरकार प्रस्तावित योजना लागू करें। सारा खर्च प्रखर गर्ग की तरफ से दिया जाएगा। सरकार मंदिर का चढ़ावा न लें… सारा खर्च हम देंगे। कोर्ट ने कहा मंदिर का पैसा सरकार न ले तो सारा विवाद ही खत्म। अगली सुनवाई 11 अक्टूबर को होगी।

मंदिर का संचालन एक निजी ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा था लेकिन प्रबंधन विवाद को लेकर वर्तमान समय में सिविल अदालत में मुकदमा चल रहा है। इस संबंध में डिक्री भी है और सिविल जज की ओर से निगरानी की जा रही है।

मंदिर के पैसों पर है सरकार की नजर: सेवायत

सेवायत का कहना है कि सरकार गलियारा बनाए, सुरक्षा व्यवस्था करें। मंदिर नहीं अपने पैसे से निर्माण करें, उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। मंदिर निजी ट्रस्ट है। चढ़ावा पर कुछ हिस्सा ट्रस्ट को और कुछ सेवायतों को जा रहा है। इससे कुछ परिवार पल रहे हैं।

सरकार की नजर मंदिर के पैसे पर है… वह कुछ पैसा खर्च नहीं करना चाहती है। मंदिर के पैसे से ही सारा काम करना चाह रही है। मंदिर पर गोस्वामियों को पूजा का अधिकार है। सैकड़ों वर्षों से यह चला आ रहा है।

Dr. Bhanu Pratap Singh