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फन्नी ढाबा कवि सम्मेलन में रामरस, देशरस, हास्यरस का तूफान, डॉ. रुचि चतुर्वेदी और मनवीर ‘मधुर’ को मिला अतिशय सम्मान

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Agra, Uttar Pradesh, India. गीतकार गोपालदास नीरज का एक दोहा देखिए- आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य, मानव होना भाग्य है कवि होना सौभाग्य। वाकई कवि होना सौभाग्य है। एक से एक धांसू लोग नीचे बैठते हैं और कवि मंच पर होते हैं। सब चुप रहते हैं और कवि बोलते हैं। जिन्दाबाद के बीच रहने वाले नेता भी कविता की पंक्तियों पर तालियां बजाते हैं। वैसे, अगर मंच पर कविता पढ़ी जाए तो कवि हिट हो जाता है। राम का नाम आज भी नई ऊर्जा का संचार कर देता है। कविता में ‘राम’ आए तो ‘जय श्रीराम की गूंज’ हो जाती है। देशभक्ति का रंग आज भी सर्वाधिक चटक है। कविता का नया मसाला अब पाकिस्तान नहीं बल्कि चीन है। कवि चीन को चेतावनी देता है तो श्रोताओं का ‘सीना छप्पन इंच का’ हो जाता है। फिर तो भारत माता की जय और वंदे मातरम की गूंज होने लगती है। इसका प्रमाण मिला फन्नी ढाबा कवि सम्मेलन में।

फन्नी ढाबा कवि सम्मेलन के आयोजक डॉ. अनुज त्यागी को बहुत बधाई है कि उन्होंने आगरा की जनता को साढ़े तीन घंटा खिलखिलाने, हृदय को गुदगुदाने, मुस्कराने, सारे गम भूल जाने का अवसर दिया। डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के खंदारी परिसर स्थित जेपी सभागार में ऐसी काव्यधारा प्रस्फुटित हुई कि सबकी सुस्ती छूमंतर हो गई। जनता हँसी से तरबतर हो गई। कोरोना का तनाव भूल गए। जनता का उत्साह देखकर लगा कि लोग हँसने के लिए व्याकुल हैं, कोई हँसाने वाला चाहिए। इस कवि सम्मेलन से यह भी सिद्ध हुआ कि हमारे नौजवान भी कविता में रमने के लिए तैयार बैठे हैं, उन्हें कविता सुनाने वाला चाहिए। फिर वह कविता देशभक्ति की हो या श्रृंगार रस की। हास्य रस की हो या करुण रस की। आगरा के कवि सम्मेलन में मिली दात कविगण वर्षों तक नहीं भूल पाएंगे। युवाओं का जोश तो देखते ही बन रहा था। हास्यरस, देशरस और रामरस के तूफान का हर किसी ने आनंद लिया।  डॉ. अनुज त्यागी की चिन्ता थी- ‘हॉल भरेगा या नहीं’। बाद में चिन्ता यह रही कि साहित्य के कद्रदानों को कहां बैठाया जाए।

सम्मानित अतिथिगण

यूं तो प्रत्येक कवि अपने फन में माहिर होता है। फिर भी मीमांसा की जाए तो यह कवि सम्मेलन आगरा की डॉ. रुचि चतुर्वेदी के नाम रहा। उनसे मैं इसलिए भी प्रभावित हूँ कि उन्होंने प्रस्तुति के दौरान एक भी द्विअर्थी बात नहीं कही और एक भी चुटकुला नहीं सुनया। सीधे-सीधे छंद प्रस्तुत किए। चलौ बिरज की ओर चलें..छंद के माध्यम से सबको बृज यात्रा कराई। ऐसा छंद कि हर व्यक्ति तालियां बजाने का विवश हो गया।

डॉ. रुचि चतुर्वेदी ने फाल्गुन की मस्ती का अहसास कराया और होली के रंगों से सराबोर कर दिया-

अब तो खेलूंगी मैं होरी कान्ह तैने खूब छकायो री..

देखि कारो-कारो रंग, बाने पोतौ ऐसे ढंग, जाने आई काऊ संग, पी लई पी लई बानै भंग, मो री बरजोरी ऐसो मन बसिया, मो सों होरी होरी होरी होरी खेलै रसिया…।

उन्होंने जब राम मंदिर शिलान्यास की चर्चा जय –जय श्रीराम के गूंज से की। श्रोतागण आपे से बाहर हो गए। खड़े हो गए।

तन से भले न जा पाएं हम घर से करें प्रणाम, मन से ही मिलकर पहुंचो सब अवधपुरी के धाम, बोलो राम, बोलो राम राम राम राम राम..

इसके बाद तो जेपी सभागार जय श्रीराम से गुंजायमान हो गया। युवा खड़े हो गए। मानो राम मंदिर निर्माण के लिए जाने वाले हों। जनता का इतना स्नेह पाकर डॉ. रुचि चतुर्वेदी भावविभोर हो गईं। उनके आँखें गीली हो गईं। बार-बार लोग जय श्रीराम का नारा लगा रहे थे। उल्लास देखते ही बन रहा था। उन्हें पहली बार किसी कवि सम्मेलन में इतना सम्मान मिला होगा। संचालक मनवीर मधुर माइक पर आ गए, फिर भी श्रोता डॉ. रुचि चतुर्वेदी के सम्मान में खड़े रहे और अपने अंदाज में उनका अभिवादन करते रहे।

मनवीर मधुर

इसके बाद मथुरा से आए ओज के कवि मनवीर मधुर ने देशभक्ति की ऐसा तूफान खड़ा किया दुश्मन पानी मांगने लगा। उन्होंने पानी को लेकर ऐसा अभिनव प्रयोग जो हिन्दी साहित्य में आज तक नहीं हुआ है।

जीवन में प्यार जो करो तो इतना करो कि होठ चुप अँखियों का पानी बोलने लगे

निकलो समाज की भलाई के निमित्त ऐसे सच में बुराई पानी-पानी बोलने लगे

कि तन श्रम में बहे तो पसीना इतने बहे कि देखने को पानी, पानी पानी पानी बोलने लगे

युद्ध लड़ना पड़े तो दुश्मन भी आके पानी पानी पानी पानी पानी बोलने लगे

उनकी इन पंक्तियों को खूब दाद मिली

अंधेरा चीरकर रख दे उसे दिनमान कहते हैं

मनुजता को रहे हितकर उसे वरदान कहते हैं

उसी के घ रमें घुस सब खत्म करे आतंक के अड्डे

जहां वाले इसी तेवर को हिन्दुस्तान कहते हैं

तेज नारायण बेचैन

देश के लाड़ले व्यंग्यकार तेजनरायण बेचैन ने कवि सम्मेलन का सराहनीय संचालन किया। उन्होंने थूकदान को केन्द्र में रखकर आज के मानव की मनोवृत्ति पर करारी चोट की। हास्य के साथ एक संदेश भी दिया। उनकी इन पंक्तियों को खूब सराहा गया-

सड़क रास्ते जाम कराकर

जलवा अपने नाम कराकर

सभी मसीहा लौट चुके हैं

शहर में कत्ले आम कराकर

रमेश मुस्कान, डॉ. अनुज त्यागी और मुसकान की पुत्री पीहू

हास्यरस के माध्यम से आगरा का नाम पूरी दुनिया में रोशन करने वाले रमेश मुस्कान ने खूब गुदगुदाया। कोरोना के बाद आशा की ज्योति जगाई-

इसी वर्ष हम गले मिलेंगे खुलकर हाथ मिलाएंगे

वैक्सीन वाला टीका जब खुशी-खुशी लगवाएंगे

कॉलेज फिर से ओपन होंगे प्रेम चोंच लड़ाएंगे

फिर पूरे चेहरे देखेंगे मास्क विदा हो जाएंगे

डॉ. अनुज त्यागी

 ‘वन लाइनर’ व्यंग्य के लिए प्रसिद्ध आगरा के व्यंग्यकार डॉ. अनुज त्यागी ने ही जैसे माइक सँभाला, लोग ठहाका लगाने लगे। उन्होंने पड़ोसन की तारीफ इस तरह से बताई-

भाभाजी क्या नाक है आपकी

दो-चार बार कट भी जाए तो फर्क नहीं पड़ेगा..

आपकी बेटी की नाक तो उससे भी बढ़िया है

ऐसा लगता है जैसे हाथी की सूंड़ दो बिलांद छोटी हो गई है

डॉ. त्यागी का एक और व्यंग्य देखिए

दिल्ली में पत्रकारा ने किसान आंदोलन में पूछा

कैसा लग रहा है कि आपको आंदोलन में आज

हरियाणवी बोला- रोटी पर सब्जी धरकर कह रहा था पीजा

खाने की चीज को कैसे पीऊं

उन्होंने प्रेमरस से पगी छंदबद्ध ऐसी कविता सुनाई कि हर कोई अचरज करने लगा। इस कविता में भी हास्य था।

शायरा मुमताज नसीम

शायरा मुमताज नसीम को देखते ही हुड़दंग सा होने लगा। उनकी मोहब्बत भऱी प्रस्तुति का हर कोई दीवाना नजर आया। खास बात यह रही कि उनकी गजल में उर्दू के स्थान पर हिन्दी का प्रयोग था..

दिल को नाशाद करती रहती हूँ
खुद को बरबाद करती रहती हूँ

मुझको डसने लगी है तन्हाई

तुझको याद करती रहती हूँ

इन पंक्तियों को सुनकर हर किसी को अपने कॉलेज के दिन याद आ गए

कर तो लूँ एहतराम-ए मोहब्बत

तुम फसाना बना तो न दोगे

मैं तुमको खत तो लिख दूँ मगर तुम

दोस्तों को दिखा तो न दोगे

मोहब्बत का यह शेर सुनकर तालियां देर तक बजती रहीं

रंग ही रंग हो जिसमें ऐसी तहरीर क्यों मांगते हो

जब मैं हो गई हूँ तुम्हारी मेरी तस्वीर क्यों मांगते हो

शंभू शिखर

हास्य के क्षेत्र में चमकता सितारा शंभू शिखर ने सबको हँसा-हँसाकर लोटपोट कर दिया-

बनवारी मेरा साथ आज तू भी निभाना

किस्मत के खेल में मुझे ऐसे भी जितना

राहुल की तरह चाहे बीत जाए जवानी

लेकिन बुढ़ापे में अनूप जलोटा बनाना

एलेश अवस्थी

आगरा के ओज के कवि एलेश अवस्थी ने कहा-

सूरज और प्रखर निकलेगा जब-जब रात अँधेरी होगी

बदली छँठ जाएगी खुशियों की पगफेरी होगी
मैं इतने भाग्यवान हूं आगरी की धरती पर

मां वाणी के चरणों में प्रथम आहुति मेरी होगी..

अवस्थी की श्रंगार की कवितांए खूब पसंद की गईं। फिर वे श्रोताओं को देशभक्ति की ओर ले गए तो वंदे मातरम की गूंज होने लगी।

कार्यक्रम का शुभारंभ मां सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करके कवि डॉ. सीपी राय और कवियों ने किया। कार्यक्रम के बीच में महापौर नवीन जैन आए। उन्होंने माल्यार्पण कर औपचारिका उद्घान किया। कुछ देर बाद वे चले गए। कार्यक्रम में एसएन मेडिकल कॉलेज के उप प्राचार्य डॉ. अशोक कुमार आर्य, डॉ. नीरज यादव, एसडी सिंह, प्रभाकर शर्मा, विवेक महोन अग्रवाल, एसडी त्यागी, नए समीकरण के संपादक एसपी सिंह, डॉ. रजनीश त्यागी, राजकुमार पथिक, राजकुमार राजू आदि मौजूद थे।