फिल्म रिव्यू: “हाय ज़िंदगी”: जेंडर न्यूट्रल कानूनों पर कड़ा सवाल उठाती साहसिक फिल्म

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मुंबई (अनिल बेदाग): बॉलीवुड में नए विषयों पर बनने वाली फिल्मों की संख्या बढ़ी है और इसी क्रम में निर्देशक अजय राम की फिल्म “हाय ज़िंदगी” एक बेहद संवेदनशील और साहसिक मुद्दा उठाती है। सी.आर. फिल्म्स और सुनील अग्रवाल फिल्म्स के बैनर तले बनी यह फिल्म 14 नवंबर 2025 को रिलीज़ हुई और अपने बोल्ड सब्जेक्ट के कारण सुर्खियों में है।

रेटिंग: ⭐⭐⭐ (3/5 स्टार)

कहानी

फिल्म की शुरुआत वरुण (गौरव सिंह) से होती है, जो एक अमीर व्यापारी गुप्ता जी के ऑफिस में नौकरी करता है। गुप्ता जी की बेटी पलक (गरिमा सिंह) अपनी सहेलियों मेघा (आयुषी तिवारी), ज्योति (सोमी श्री) और नंदिनी (दीपांशी त्यागी) के साथ एक पार्टी रखती है, जिसमें वरुण को भी आमंत्रित किया जाता है।

मस्ती-मज़ाक से भरी यह पार्टी एक खतरनाक मोड़ लेती है। वरुण को शराब और ड्रग्स देकर चारों लड़कियां उसका शारीरिक शोषण करती हैं। वरुण की “मुझे जाने दो” की पुकार अनसुनी रह जाती है।

होश में आने के बाद जब वह पुलिस से शिकायत करता है, तो वहीं उसका मज़ाक उड़ाया जाता है—
“ओ तेरी… ये कब से होने लगा?”

यही से शुरू होता है उसका संघर्ष और फिल्म का असली संदेश—क्या भारतीय कानून जेंडर-न्यूट्रल नहीं होना चाहिए?

कानूनी और सामाजिक पक्ष

फिल्म इस कड़वी सच्चाई को उजागर करती है कि भारतीय कानून में ‘पीड़ित’ की परिभाषा अक्सर एक ही दिशा में सीमित रह जाती है, जबकि वास्तविकता कहीं ज्यादा जटिल है। समाज में यह मिथक गहराई से बैठा है कि अपराध हमेशा पुरुष ही करता है—फिल्म उसी सोच को चुनौती देती है।

“हाय ज़िंदगी” जेंडर-न्यूट्रल कानूनों की ज़रूरत पर गंभीर सवाल खड़े करती है, जो आज के समय में बेहद प्रासंगिक हैं।

निर्देशन

निर्देशक अजय राम ने इस कठिन विषय को बिना अतिशयोक्ति, बेहद संतुलन और संवेदनशीलता के साथ पेश किया है।

क्रूर दृश्यों को ओवरड्रामेटिक बनाने से बचा गया है।

कई सीन्स में बिना संवाद के सिर्फ बैकग्राउंड स्कोर से प्रभाव पैदा होता है, जो फिल्म की खूबी बन जाता है।

अभिनय

गौरव सिंह (वरुण) – पूरे भावनात्मक संघर्ष का भार उन्होंने शानदार तरीके से निभाया है। उनका डर, पीड़ा और गुस्सा बेहद वास्तविक लगता है।

गरिमा सिंह (पलक) – किरदार की जटिलता को पूरी ईमानदारी से निभाती हैं।

आयुषी तिवारी, सोमी श्री, दीपांशी त्यागी और ऋषभ शर्मा कहानी को मजबूती देते हैं।

संगीत और तकनीकी पक्ष

फिल्म का संगीत कहानी के मूड को सहारा देता है।
दानिश अली, आदित्य राज शर्मा, प्रतीक लाल जी और उमर शेख की धुनें असर छोड़ती हैं। गीत कहानी की भावनाओं से मेल खाते हैं, जबकि बैकग्राउंड स्कोर कई दृश्यों को और गहराई देता है।

निष्कर्ष

“हाय ज़िंदगी” सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि समाज और व्यवस्था पर एक सशक्त टिप्पणी है। यह फिल्म दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारे कानून समय के साथ अपडेट हुए हैं?

एक साहसिक, संवेदनशील और सामाजिक संदेश देने वाली यह फिल्म जरूर देखी जानी चाहिए।

-up18 News

Dr. Bhanu Pratap Singh