बल्देव छठ पर न वायगीरों का मेला लगा, न मल्लों के लिए दंगल

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Mathura (Uttar Pradesh, India) मथुरा ब्रज के राजा बलदाउ का जन्मोत्सव पूर्ण धार्मिक विधिविधिान और उल्लास के साथ मनाया गया। हालांकि भीड को प्रतिबंधित किये जाने के बाद मंदिर परिसर में होने वाला मुल्लयुद्ध अर्थत नारियल लूटने के लिए मचने वाली गुत्थमगुत्था की औपचारिकता मात्र निभाई गयी। हालांकि विशेषरूप से इस अवसर  सोने, चांदी, जवाहारात के आभूषणों भगवान का श्रंगार किया गया। कडी सुरक्षा व्यवस्था के बीच मंदिर के पट श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिये गये थे। मंदिर की ओर जाने वाले मार्गों पर भी पुलिसकर्मी तैनात रहे जिससे कि मंदिर के आसपास भीड एकत्रित न हो सके।

ग्रामीण अंचंल में छठ पर लोग बूरा खाने अपनी ससुराल जाते हैं

इसके बाद भी कुछ लोग मंदिर तक पहुंच ही गये। मंदिर के पट बंद होने के बाद वह बाहर से ही अपने आराध्य को नमन कर लौट गये। बल्देव छट ब्रज के सबसे बडे धार्मिक आयोजनों में से एक है। यमुनापार क्षेत्र और ब्रज के ग्रामीण अंचल में बल्देव छठ का उल्लास देखते ही बनता है। ठेठ देहाती अंदाज में इस आयोजन को मनाया जाता है। ब्रज सहित दूसरे क्षेत्रों में रक्षाबंधन पर बूरा खाने की परंपरा है। यानी लोग अपनी ससुराल जाते हैं। जबकि ग्रामीण अंचंल में छठ पर लोग बूरा खाने अपनी ससुराल जाते हैं। इस दिन ब्रज में बडी संख्या में दंगलों का आयोजन होता है। भगवान बलभद्र मल्लविद्या के देवता भी माने जाते हैं। इस लिए  बडी संख्या में दंगल बल्देव छठ पर आयोजित होते हैं। कोरोना के चलते इस बार एक भी दंगल आयोजित नहीं हो सका। भगवान बलभद्र शेषनाग अवतर हैं, पानीगांव, नेरा जैसे करीब दो दर्जन गांवों में बल्देव छठ पर वायगीरों के मेला भी आयोजित किया जाते हैं। यहां सर्प दंश, विषबेल आदि के मरीज जुटते हैं। दूर दराज से वायगरी आते हैं। वायगीरों के मेला भी इस बार नहीं लग सके।

Dr. Bhanu Pratap Singh