संगीत और योग की जुगलबंदी से कई बीमारियों का इलाज संभव – Up18 News

संगीत और योग की जुगलबंदी से कई बीमारियों का इलाज संभव

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संगीत और योग का का उद्देश्य है आत्म साक्षात्कार, इसलिए दोनों को एक-दूसरे से जुड़ा हुआ माना जाता है। संगीत चिकित्सा की एक शोध के मुताबिक योग और संगीत एक-दूसरे पूरक हैं। कई वैज्ञानिक प्रयोगों से भी सिद्ध हो चुका है कि संगीत साधना और योग साधना दोनों से ही जीवन में शक्ति का विकास होता है।

स्वरों की उपासना, रियाज, शास्त्र शुद्ध पद्धति द्वारा नाद ब्रह्म की आराधना कर अंतर्मन में गहराई तक उतरना ही संगीत का मुख्य लक्ष्य है। इन दोनों फील्ड्स के एक्सपर्ट्स भी इन क्रियाओं को करीब व एक-दूसरे के लिए जरूरी मानते हैं। संगीत मन को तो शांत करता ही है। साथ ही योग की तरह म्यूजिक थैरेपी भी कई बीमारियों में कारगर साबित होती है।

नादयोग, संगीत की दुनिया का योग

शास्त्रीय गायन में ब्रह्मनाद एक स्थिति होती है जिसे नाद योग से प्राप्त किया जाता है। नाद योग का सीधा संबंध श्वास की निरंतरता से होता है। नाद योग संगीत की दुनिया की योग क्रिया है। इसके अलावा भी संगीत के कई सुर नाभि से लगाए जाते हैं। इन सुरों को लगाने में नाभि पर जो दबाव पड़ता है उससे सधाा स्वर निकलने के साथ ही कपालभाती के समान ही नाभि की एक्सरसाइज भी हो जाती है।

ओंकार साधना के लिए नाभि से स्वर निकालना कपालभाति योग के समान ही है। यह कहना है शास्त्रीय गायक और तबला वादक प्रो. किरण देशपांडे का। वे कहते हैं योग और संगीत दोनों से ही एकाग्रता सिद्ध की जाती है। रियाज में श्वांस का सबसे ज्यादा महत्व है क्योंकि सुर की निरंतरता श्वांस पर निर्भर करती है। योग की भाषा में इसे ब्रिदिंग एक्सरसाइज कहा जाता है।

संगीत से हो जाती है एक्सरसाइज

योग एक्सपर्ट सानिसा हर्णे कहती हैं योग और संगीत का जुड़ाव सारी दुनिया मानती है। योग के दौरान संगीत के साथ से शरीर और आत्मा से जुड़ाव तेजी से होता है। म्यूजिक थैरेपी के जरिए भी कई ऐसी समस्याओं का समाधान संभव है, जिनका उपचार योग के जरिए होता है। योग में ध्यान, प्राणायाम, अनुलोम-विलोम, ओम उधाारण और उंगलियों व कंठ की कई ऐसी एक्सरसाइज होती है जो संगीत के जरिए भी की जा सकती है।

योग का हिस्सा है बांसुरी वादन

शास्त्रीय गायक गुलाम अली खां साहब से किसी ने सुरीले गायन का राज पूछा तो उन्होंने जवाब देते हुए कहा कि हम हवा को काबू में करने की कोशिश करते हैं। बांसुरी वादक अभय फगरे इस किस्से को याद करते हुए बांसुरी वादन को योग क्रिया ही हिस्सा बताते हैं।

वे कहते हैं हवा को काबू में करने की कोशिश योग में भी की जाती है। बांसुरी बजाते समय एक्सहेल और इन्हेल जैसी क्रियाएं होती है, जिसे योग की भाषा में प्राणायाम कहते हैं। बांसुरी बजाते समय श्वास कंट्रोल करने के लिए ध्यान लगाना होता है। ध्यान, योग की क्रिया मानी जाती है।

Dr. Bhanu Pratap Singh