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संस्कार भारती की अरुणोदय काव्य गोष्ठी को डॉ. रुचि चतुर्वेदी, कमलेश मौर्य मृदु और राज बहादुर सिंह राज ने किया राममय, डॉ. भानु प्रताप सिंह की अम्मा पर कविता को भी मिली सराहना

साहित्य

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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. संस्कार भारती आगरा पश्चिम के तत्वावधान में चतुर्थ अरुणोदय काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। मौका था नाट्य शास्त्र के प्रणेता भरत मुनि की जयंती।  उनका नज्म 400 ई॰पू॰ 100 ई॰ सन् के बीच किसी समय का माना जाता है। डॉ. रुचि चतुर्वेदी, कमलेश मौर्य मृदु और राज बहादुर सिंह राज ने काव्य गोष्ठी को राममय कर दिया। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक डॉ. भानु प्रताप सिंह की अम्मा पर कविता को भी सराहा गया।

प्रताप नगर स्थित बुर्जी बाले मंदिर में हुई काव्य गोष्ठी का शुभारम्भ वरिष्ठ कवि और साहित्यकार कमलेश मौर्य (सीतापुर),  संस्कार भारती के अखिल भारतीय अधिकारी बांकेलाल गौड़, अध्यक्ष आर्किटेक राजीव द्वेवेदी और प्रेमचन्द अग्रवाल ( सुपारी वाले) ने मां सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करके किया।

 

संस्कार भारती के प्रांतीय साहित्य प्रमुख डॉ. केशव कुमार शर्मा ने सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की। ध्येय गीत का गायन संस्कार भारती के डॉ. मनोज पचौरी और आशीष अग्रवाल ने किया।

अयोध्या 6 दिसम्बर, 1882 से 22 जनवरी, 2024 तक। एक पत्रकार के रूप में बाबरी मस्जिद ढहने और राम मंदिर बनने की आँखों देखी कहानी

वरिष्ठ आशुकवि कमलेश मौर्य मृदु ने पढ़ा

भरत मुनि नमन तुम्हें शत बार

ललित कलाओं का कर प्रणयन

नाट्य शास्त्र का किया नव सृजन

दुख में डूबे सुर नर मुनि को तुमने लिया उबार।

गीत नृत्य संगीत सजाया.

गति से दुर्गति को दहलाया.

स्वर लय ताल और अभिनय दे किया बहुत उपकार।

जो भी सत्यम् शिवम् सुंदरम.

सृष्टि में जो भी मधुरम अनुपम.

पंचम वेद में करके समाहित दिया श्रेष्ठ उपहार।

 

गोष्ठी का संचालन कर रहे राकेश शर्मा निर्मल को बहुत पसंद किया गया

ज़िंदा हो तुम तब तक जब तक मरे नहीं हो

मरे नहीं हो तब तक जब तक डरे नहीं हो

रिक्त कलश से जीवन में नहीं मोक्ष तब तक

मातृभूमि के प्रेम से जब तक भरे नहीं हो ।

डॉ. भानु प्रताप सिंह की हिंदी और अंग्रेजी में पुस्तकें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें-

वरिष्ठ कवियत्री डॉ रुचि चतुर्वेदी के गीत को बहुत प्यार मिला

तन से भले न जा पायें हम घर से करें प्रणाम।

मन से ही मिलकर पहुंचो सब अवधपुरी के धाम।।

बोलो राम जय राम जय राम राम राम।

एक ईंट अपने घर पर तुम राम नाम की रख लेना,

अक्षत, रोली, चंदन जल से उसका पूजन कर देना।

राम नाम के दीप जलाकर दीपावली मनाएंगे।

 पुष्पों से घर आंगन ड्योढ़ी मंदिर सभी सजाएंगे।।

पूजन सरयू के तट होगा गाते जय श्री राम।।

मन से ही मिलकर पहुंचो सब अवधपुरी के धाम।।

बोलो राम जय राम जय राम राम राम ।।

जिस पल की थी हमें प्रतीक्षा जीवन में वह पल आया।

नैना दर्शन पाएंगे कितने पुण्यों का फल पाया।

राम सिया के दर्शन पाकर कष्ट सभी मिट जाएंगे।

 कोटि-कोटि कंठों के स्वर जय जय जय जय हो गाएंगे।।

दसों दिशाओं में गूंजेगा रघुनंदन का नाम।।

मन से ही मिलकर पहुंचो सब अवधपुरी के धाम।।

बोलो राम जय राम जय राम राम राम।।

 

कवि हरीश चन्द्र अग्रवाल (ढपोर शंख) की रचना ने वातावरण को सरस बनाया

कविता के महकते उपवन में,

कुछ स्वप्न सजा देना मन के,

फिर भावों के रसीले शब्द सुमन,

महका देना हृदय जन-जन के,

सरिता बहेगी आत्म संतुष्टि की,

होगा पावन सा जीवन मानव का,

जब भाव सुगंधित से होंगे सारे,

खुशियों के मेघ बरसेंगे तन के

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कवयित्री डॉ. दीप्ति दीप के गीत को मन से सुना गया

लगी है आग चारों ओर ये कैसी जमाने को,

किसी का घर जले कोई नहीं आता बुझाने को।

कभी करते थे कांटे भी हिफाजत नन्हीं कलियों की,

कुचल देता है अब माली हवस अपनी मिटाने को।

 

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक डॉ. भानु प्रताप सिंह ने अम्मा पर केंद्रित कविता सुनाई-

जब मेघ बरसते रह-रह कर, छाता बन जाती थी अम्मा।

बिजली कड़की काँप गया मैं, गले लगाती थी अम्मा ॥

रात पूस की थर-थर जाड़ा, बनी रजाई थी अम्मा।

खुद बैठे चूल्हे के आगे, मुझे सुलाती थी अम्मा ॥

जेठ मास में हाय-हाय गर्मी, पंख डुलाती थी अम्मा।

सत्तू, खीरा ठंडे होते, हमें खिलाती थी अम्मा ॥

गांव दुखी मेरी हरकत से, बनी संरक्षक थी अम्मा।

कोई आए करे शिकायत, उसे सुनाती थी अम्मा ॥

पढ़ लिखकर मैं बनूँ कलक्टर, बनी मास्टरनी अम्मा।

बुद्धिमान मैं ही बन जाऊँ, घी पिलाती थी अम्मा ॥

मैं हूँ काला और कलूटा, राजा कहती थी अम्मा।

मैं गोरा-गोरा हो जाऊँ, हमाम लगाती थी अम्मा ॥

घर में जब फांकों की नौबत, तब भी खुश रहती अम्मा।

खुद चाहे भूखी रह जाए, हमें खिलाती थी अम्मा ॥

मेला देखन की जिद पकड़ी, ऊपर से ना – ना अम्मा।

रूठ गया तो देय अठन्नी, मुझे पठाती थी अम्मा ॥

मुझको साड़ी नहीं चाहिए, कहती रहती थी अम्मा।

नए-नए कपड़े लाकर के, हमें पहनाती थी अम्मा ॥

अयोध्या 6 दिसम्बर, 1992 से 22 जनवरी, 2024 तक: एक पत्रकार के रूप में बाबरी मस्जिद ढहने और राम मंदिर बनने की आँखों देखी कहानी (Hindi Edition)

सर्वश्री राज बहादुर सिंह राज, योगी सूर्यनाथ, दीप्ति दीप, सचिन उपाध्याय, जितेन्द्र शर्मा मैनपुरी, राजीव क्वात्रा “आगरावासी”, डॉ. केशव शर्मा, रामगोपाल कुश आदि ने काव्यपाठ किया।

इस अवसर पर सर्वश्री राजीव सिंघल, राजीव अग्रवाल, डॉ. विनोद कुमार माहेश्वरी, सुरेश चंद्र अग्रवाल, राहुल शर्मा कप्तान, एडवोकेट राहुल शर्मा, आशीष अग्रवाल, आशीष जैन, पीडी अग्रवाल, सुभाष चंद्र अग्रवाल, बलबीर सक्सैना, अभिषेक गर्ग, ऋतुराज दुबे, अमित बंसल, राजेंद्र शर्मा, अनिल अग्रवाल, सुरेश चंद्र अग्रवाल पांडव नगर, संदीप अग्रवाल, दीपक गर्ग, रवि नारंग,  मदन लाल अग्रवाल, अमित बंसल,  नंद किशोर, नवीन गौतम, अनीता भार्गव, मीना अग्रवाल आदि की महत्वपूर्ण भागीदारी रही। संयोजन नन्द नन्दन गर्ग और संचालन महामंत्री ओम स्वरूप गर्ग ने किया

Dr. Bhanu Pratap Singh