WHO के 75 में स्थापना दिवस पर भारत में स्वास्थ्य की स्थिति कैसी है पर चर्चा करना आज प्रासंगिक होगा। आजादी के अमृत काल में ज्यादा प्रदेशों में सरकारी अस्पतालों, PHC, CHC की हालत ऐसी भी नहीं है कि वह अपेंडिस हार्निया के साधारण ऑपरेशन या सिजेरियन से प्रसव करा सकें।
भारत में प्राइवेट चिकित्सा सुविधाएं और विशेषज्ञों का स्तर अमेरिका यूरोप के बड़े देशों से भी बेहतर सिस्टम बन चुका है, पर मुश्किल यह है की सरकारें, मीडिया, नेतागण और समाज के बड़े तबके के लोग उन्हें लुटेरा और बेईमान साबित करने में ही लगे रहते हैं।
भारत में आज भी छोटे क्लीनिक नर्सिंग होम पर गुणवत्तापूर्ण सुविधाएं अफॉर्डेबल हेल्थ केयर सिस्टम उपलब्ध है किंतु इसको तोड़ने का भरपूर प्रयास लगातार किया जा रहा है। न जाने समाज में क्यों डॉक्टरों के कमाने पर रोष है। सरकारों ने कंजूमर प्रोटेक्शन एक्ट, Criminal Act के द्वारा स्वास्थ्य सुविधाओं को कई कानूनी मुश्किलों में डाला हुआ है फिर भी जनता चाहती है की चिकित्सा सेवा का ही काम है। सरकारों से कोई रियायत मिलती है, लेकिन उनसे अपेक्षाएं यह है कि वह हर मुश्किल और विषम परिस्थितियों में भी जबरन मरीज का बेहतर इलाज करें। इसका नतीजा आगे आने वाले वर्षों में देखने को मिलेगा जब प्रतिभाशाली छात्र मेडिकल में आने से बचेंगे या बच रहे हैं।
भारत में मात्र 12 लाख चिकित्सक है जिसमें आधे तो मात्र 4 प्रदेशों में ही है। काफी लोग प्रैक्टिस नहीं भी करते हैं। इसके बावजूद चिकित्सकों की प्रतिष्ठा आज corona pandemic के बाद न्यूनतम स्तर पर है। आज भी जनता मानती है कि कोई भी चिकित्सक किसी भी मरीज की ऑक्सीजन बंद कर सकता है।
अजीब विडंबना है सरकारी मेडिकल कॉलेजों का हाल बुरा है। वहां ना दवाइयां हैं ना इंफ्रास्ट्रक्चर. ना मेडिकल छात्रों को ट्रेंड करने का सिस्टम गुणवत्तापूर्ण है। ऐसे आने वाले समय में भारत में चिकित्सा लेना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा। उस पर ही आलम यह है भारत में ज्यादातर मरीज जो डायबिटीज, ब्लड प्रेशर, अस्थमा जैसी बीमारियों से ग्रसित हैं, चिकित्सकों की सलाह को मानते हुए नियमित दवा लेना नहीं चाहते। चिकित्सकों पर भरोसा बेहद कम है। मरीज अपने हिसाब से दवाएं लेना चाहता है और इलाज कराना चाहता है।
चिकित्सकों को के प्रति दुर्भावना आम बात है। नतीजा धीरे-धीरे चिकित्सक भय के माहौल में काम करने से बच रहे हैं और गंभीर मरीजों के इलाज से हाथ खड़े कर रहे हैं, जबकि उनका इलाज बहुत कम पैसों पर छोटे-छोटे क्लीनिक से हो सकता है। भारत में मरीजों का व्यवहार निराश करने वाला है। ऐसी स्थिति में स्वच्छ पानी, हवा और संतुलित आहार की भारी कमी के बीच में स्वास्थ्य और चिकित्सा देना बेहद चुनौतीपूर्ण होगा।
सरकारों को चाहिए हेल्थ बजट को बढ़ाएं और जनता को भी नेताओं पर दबाव डालना चाहिए कि वह स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए सरकार से ज्यादा बजट की मांग करें। शहरों में अर्बन हेल्थ सेंटरों के द्वारा स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जाएं तो जन स्वास्थ्य में अच्छा रहेगा।
सरकार द्वारा कम कीमत पर दवाएं उपलब्ध कराने का प्रयोग बेहद सफल है। हालांकि जन औषधि केंद्रों की संख्या बेहद कम है। अब समय आ गया है कि भारतीय स्वास्थ्य चिंतन नेशनल हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन के जरिए भारत की जरूरतों के हिसाब से होना चाहिए।
Save doctors to save humanity.
डॉ. पवन गुप्ता, राष्ट्रीय पदाधिकारी, नेशनल मेडिकोड ऑर्गेनाइजेशन (एन.एम.ओ.)
मो. 9412262171