आगरा। राणा सांगा केस में निचली अदालत के आदेश पर जिला न्यायालय ने बड़ा निर्णय लिया है। जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने मामले में रिवीजन सुनवाई के दौरान यह पाया कि 10 अप्रैल को सिविल जज (सीनियर डिवीजन) द्वारा पारित आदेश में विधिक दृष्टि से गंभीर खामियां हैं। अब निचली अदालत को पक्षकारों के अधिवक्ताओं को सुनने के बाद विधिसम्मत रूप से दोबारा आदेश जारी करना होगा।
वादी अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि राणा सांगा केस को खारिज किए जाने के विरुद्ध 10 अप्रैल को जिला न्यायालय में रिवीजन दायर की गई थी। इस पर 9 और 13 मई को सुनवाई हुई। वादी अजय प्रताप सिंह की ओर से अधिवक्ता शिव आधार सिंह तोमर, नरेश सिकरवार और एसपी सिंह सिकरवार ने पक्ष रखा।
सुनवाई के दौरान जिला न्यायालय ने पाया कि निचली अदालत ने यह जांच ही नहीं की कि वादी द्वारा उल्लेखित विवादित बयान संसद में दिया गया था या नहीं। इसके अलावा अदालत ने यह भी स्पष्ट नहीं किया कि उक्त कथन पर आधारित मूलवाद की सुनवाई उसके अधिकार क्षेत्र में क्यों नहीं है।
जिला जज ने सीपीसी की धारा 9 का हवाला देते हुए कहा कि जब तक किसी सिविल वाद पर रोक न हो, तब तक अदालतों को ऐसे वादों की सुनवाई का अधिकार है। उन्होंने यह भी कहा कि निचली अदालत को यह भी विचार करना चाहिए था कि क्या इस विवाद में कोई संपत्ति या पद से जुड़ा पहलू अंतर्निहित है, और क्या केंद्र सरकार को पक्षकार बनाया जाना आवश्यक है या नहीं।
इन सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं की अनदेखी पर न्यायालय ने निर्देश दिया है कि सिविल जज (सी०डि०) अब पक्षों के अधिवक्ताओं को दोबारा सुनकर सभी पहलुओं पर ध्यान देते हुए नया आदेश पारित करें।
ज्ञातव्य है कि अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने समाजवादी पार्टी के सांसद रामजी लाल सुमन द्वारा राणा सांगा के खिलाफ दिये गये विवादित बयान को लेकर यह वाद दायर किया है।
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