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पहली बार ससुराल गईं श्रुति सिन्हा के बक्से में मिली ऐसी चीज कि सबने माथा पीट लिया

साहित्य

साहित्यकार श्रुति सिन्हा ने सुनाई आप बीती सच्ची घटना

प्रो. सुगम आनंद ने बताया डॉ. असोपा का पुस्तक प्रेम

नागरी प्रचारिणी सभा, शहीद स्मारक के पुस्तकालय पर ताला क्यों

डॉ. भानु प्रताप सिंह

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Agra, Uttar Pradesh, India. एक दुल्हन विदा होकर पहली बार ससुराल गई। उसके साथ दो बक्से थे। दुल्हन के ससुराल वालों को लगा कि इसमें जरूर माल होगा। जब बक्से खोले गए तो उनमें पुस्तकें निकलीं। यह देख ससुराल वालों ने माथा पीट लिया। बहू को कुछ बातें सुननी भी पड़ीं। यह सच्ची कहानी है। जानी-मानी मंच संचालक, साहित्यकार श्रुति सिन्हा की है। उन्होंने यह बात राष्ट्रीय पुस्तक मेला आगरा 2023 में स्वयं बताई।

29 नवम्बर को राष्ट्रीय पुस्तक मेला आगरा 2023 के मंच पर डिजिटल युग में  पुस्तकों की उपयोगिता विषयक संगोष्ठी आयोजित की गई थी। इसका संचालन करते हुए श्रुति सिन्हा ने श्रोताओं से सवाल किया कि किस-किसको पुस्तकों से प्रेम है, किसके बास 9वीं, 10वीं, 11वीं की पुस्तकें हैं। फिर उन्होंने अपना किस्सा सुनाया कि वे मायके से ससुराल गईं तो दो बक्सा किताबें लेकर गई थीं। उनके गृह पुस्तकालय में करीब डेढ़ हजार पुस्तकें हैं। वे हर साल 10 हजार रुपये की किताबें खरीदती हैं। इस घटना से पता चलता है कि श्रुति सिन्हा का पुस्तकों के प्रति कितना प्रेम है।

कार्यक्रम में जाने-माने इतिहासकार प्रोफेसर सुगम आनंद ने प्रसिद्ध सर्जन डॉ. एचएस असोपा के पुस्तक प्रेम के बारे में जानकरा दी। उन्होंने कहा कि डॉक्टर असोपा मृत्युपर्यंत पुस्तक पढ़ते रहे। वे आंग्लभाषा की पुस्तकें पढ़ते थे। मृत्यु से पूर्व भी एक पुस्तक पढ़ रहे थे लेकिन आधी ही पढ़ पाए। बाद में यही पुस्तक उनकी पौत्री ने डॉ. असोपा के साथ विदा कर दी।

कार्यक्रम में पुस्तकालयों पर भी चर्चा हुई। श्रुति सिन्हा ने सुझाव दिया कि आगरा शहर में कोई नया पुस्तकालय बनना चाहिए। उन्होंने आशा जताई कि मंडलायुक्त ऋतु माहेश्वरी इस दिशा में कुछ काम कर सकती हैं। इस बारे में वरिष्ठ पत्रकार मधुकर चतुर्वेदी ने कहा कि सदर बाजार स्थित लाइब्रेरी को आधुनिक रूप देने पर काम चल रहा है। नया पुस्तकालय बनने से पहले अच्छा है जो पुस्तकालय पहले से हैं, उनकी दशा ठीक कर ली जाए। पुस्तकालय मर रहे हैं। पालीवाल पार्क में जॉन्स पब्लिक लाइब्रेरी है, वहां सिर्फ लोग अखबार पढ़ने जाते हैं। नागरी प्रचारिणी सभा की लाइब्रेरी खुलती नहीं है।

पर्यटन विशेषज्ञ प्रोफेसर लवकुश मिश्रा ने बताया कि प्रयागराज में रामकृष्ण मिशन और नागरी प्रचारिणी सभा के पुस्तकालय हैं। दोनों में इतने पाठक आते हैं कि बैठने को जगह नहीं मिलती है। इन लाइब्रेरी में रिटायर्ड लोग सेवा भाव से काम करते हैं। बड़ी संख्या में छात्र भा आते हैं। समझ की जरूरत है। उन्होंने सुझाव दिया कि पुस्तक मेले में उन लोगों को सम्मानित किया जाए जो सर्वाधिक बार लाइब्रेरी में गया है। लाइब्रेरी के रजिस्टर से इसका पता चल सकता है। हमने पुस्तकालय में जाने वालों को उत्साहित नहीं किया है।

पुस्तक मेला की कोषाध्यक्ष श्रुति सिन्हा ने पुस्तकालय के बारे में अपना एक अनुभव सुनाया- शहीद स्मारक संजय प्लेस में वाचनालय है, जिस पर ताला लगा रहता है। उन्होंने जैसे-तैसे ताला खुलवाया। वहां देखा तो पुस्तकों पर धूल जमी हुई थी। फर्श पर पुस्तकें बिखरी पड़ी थीं। ताला खोलने वाले कर्मचारी ने वहां बैठने नहीं दिया। वाचनालय की दुर्गति देखकर इतना गुस्सा आया कि क्या कहूँ। पुस्तकें पढ़ने के लिए होती हैं न कि ताले में बंद करने के लिए।

उन्होंने कहा कि नागरी प्रचारिणी सभा के पुस्तकालय में हजारों पुस्तकें हैं और ये ताले में बंद हैं। सभा का वाचनालय तो सिर्फ संगोष्ठियों के काम आ रहा है। इसका ताला खुलना चाहिए। मधुकर चतुर्वेदी ने बताया कि उन्होंने सभा के पुस्तकालय में कमलेश नागर को अपनी साड़ी के पल्लू से पुस्तकें साफ करते देखा है। आगरा कॉलेज के पुस्तकालय में दुर्लभ पुस्तकें भी हैं।

इस बारे में पूछे जाने पर इतिहासकार प्रोफेसर सुगम आनंद ने कहा कि जिस दिन हम सब पुस्तकालयों में जाने लगेंगे, दशा सुधर जाएगी। जिस भवन में लोग नहीं रहते हैं, वह खंडहर हो जाता है। हर व्यक्ति सप्ताह में एक दिन पुस्तकालय में जाए तो उसका ज्ञान बढ़ेगा, साथ ही पुस्तकालय भी सुरक्षित रहेगा।

 

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