जन्‍मदिन विशेष: राष्ट्रकवि की उपाधि प्राप्‍त सोहनलाल द्विवेदी

जन्‍मदिन विशेष: राष्ट्रकवि की उपाधि प्राप्‍त सोहनलाल द्विवेदी

साहित्य


22 फरवरी 1906 को उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले की तहसील बिन्दकी के गांव सिजौली जन्‍मे सोहन लाल द्विवेदी हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। ऊर्जा और चेतना से भरपूर रचनाओं के इस रचयिता को राष्ट्रकवि की उपाधि से अलंकृत किया गया। महात्मा गांधी के दर्शन से प्रभावित द्विवेदी जी ने बालोपयोगी रचनाएँ भी लिखीं। 1969 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया था। 01 मार्च 1088 को कानुपर में सोहन लाल द्विवेदी का निधन हुआ।
हिंदी काव्य-जगत की अमूल्य निधि सोहनलाल द्विवेदी ने गांधीवाद के भावतत्व को वाणी देने का सार्थक प्रयास किया तथा अहिंसात्मक क्रान्ति के विद्रोह व सुधारवाद को अत्यन्त सरल सबल और सफल ढंग से काव्य के द्वारा मर्मस्पर्शी एवं मनोरम बनाया।
डॉ. हरिवंशराय ‘बच्चन’ ने एक बार लिखा था-
जहाँ तक मेरी स्मृति है, जिस कवि को राष्ट्रकवि के नाम से सर्वप्रथम अभिहित किया गया, वे सोहनलाल द्विवेदी थे। गाँधीजी पर केन्द्रित उनका गीत ‘युगावतार’ या उनकी चर्चित कृति ‘भैरवी’ की पंक्ति ‘वन्दना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो, हो जहाँ बलि शीश अगणित एक सिर मेरा मिला लो’ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का सबसे प्रिय गीत था।
सोहनलाल द्विवेदी के काव्य-संग्रह ‘भैरवी’ की प्रथम कविता बहुत लोकप्रिय हुई-
वन्दना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो।
वंदिनी माँ को न भूलो, राग में जब मस्त झूलो॥
अर्चना के रत्नकण में एक कण मेरा मिला लो।
जब हृदय का तार बोले, श्रृंखला के बंद खोले॥
हों जहाँ बलि शीश अगणित, एक शिर मेरा मिला लो।
द्विवेदी जी ने अनेक अभियान गीतों और प्रयाण गीतों का भी सृजन किया। जनता के उद्बोधन में इन प्रयाण गीतों ने महती भूमिका निभाई-
तैयार रहो मेरे वीरो, फिर टोली सजने वाली है।
तैयार रहो मेरे शूरो, रणभेरी बजने वाली है॥
इस बार बढ़ो समरांगण में, लेकर वह मिटने की ज्वाला।
सागर-तट से आ स्वतन्त्रता, पहना दे तुझको जयमाला॥
-Legend News

Dr. Bhanu Pratap Singh