न्यायाधीशों की नियुक्ति पर विवाद बढ़ता लग रहा है। केन्द्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू एवं संसदीय समिति ने जो प्रश्न खड़े किए हैं, वे इसी बात की ओर इशारा है। ऐसी स्थिति में न्यायपालिका और कार्यपालिका दोनों को लीक से हटकर सोचना होगा। यह तभी संभव है जब दोनों इस पर एक मत होकर संवाद कायम करें। बिडंबना है कि संवाद की जगह वाद-विवाद हो रहा है।
भले कॉलेजियम (collegium system) का गठन सुप्रीमकोर्ट ने किया है किन्तु यह व्यवस्था नीर क्षीर है, कोई विसंगति नहीं है, ये नहीं माना जा सकता। मैं तो मानता हूँ कॉलेजियम व्यवस्था लोकतांत्रिक मूल्यों के अनुरूप नहीं है।
उचित होगा कि दोनों पक्ष विचार करें कि ऐसी व्यवस्था बने जो पूरी तरह न्यायपालिका एवं कार्यपालिका के नियंत्रण से मुक्त हो। न्यायिक नियुक्ति आयोग गठित करके इस व्यवस्था को लागू करने का प्रयास हुआ था किन्तु उसकी कमियों को दूर करने की बजाय सिरे से सुप्रीमकोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया।
आज ये अहम सवाल फिर उठा है कि कॉलेजियम व्यवस्था में खामी हैं औरपारदर्शिता का अभाव है? विचित्र सा नहीं लगता कि कोर्ट को नोटबंदी, चुनाव आयोग की नियुक्ति में खामी नजर आ रही है, उनकी पत्रावली ढूँढी जा रही है किंतु कॉलेजियम का विवरण न माँगा जाए, क्या यह तर्क संगत है?
क्या है कॉलेजियम (collegium meaning in hindi)
कॉलेजियम भारत के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम जजों का एक समूह है। ये पाँच लोग मिलकर तय करते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय में कौन न्यायाधीश होगा। ये नियुक्तियाँ उच्च न्यायालय से की जाती हैं और सीधे तौर पर भी किसी अनुभवी वकील को भी उच्च न्यायाल. का जज नियुक्त किया जा सकता है।
प्रोफेसर के.एस. राना, कुलपति
- आगरा में मोदी की सभा 25 अप्रैल को, सांसद नवीन जैन ने आम नागरिकों को दिए वीआईपी पास - April 24, 2024
- ताजमहल को हरा और काला होने से बचाएगी यमुना का डिसिल्टिंग - April 24, 2024
- आगरा के केसी जैन एडवोकेट ने तो अपना काम कर दिया, ये सरकारी शेर कब करेंगे - April 24, 2024