जब रावण शिवजी को कैलाश पर्वत के साथ उठाकर ले जा रहा था

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                लंकापति रावण शिवजी का परम भक्त था। रावण की शिव भक्ति के किस्से हम सुनते ही रहते हैं, उसकी शिव भक्ति के अनेक रोचक किस्से प्रचिलित हैं। इसी कथानक को प्रमाणित करती राजकीय संग्रहालय, मथुरा की मूर्ति रावणानुग्रह
कहा जाता है कि एक बार रावण जब अपने पुष्पक विमान से यात्रा कर रहा था तो रास्ते में एक वन क्षेत्र से गुजर रहा था। उस क्षेत्र के पहाड़ पर शिवजी ध्यानमग्न बैठे हुए थे। शिव के गण नंदी ने रावण को रोकते हुए कहा कि इधर से गुजरना सभी के लिए निषिद्ध कर दिया गया है, क्योंकि भगवान तप में मग्न हैं। रावण को यह सुनकर क्रोध उत्पन्न हो गया। उसने अपना विमान नीचे उतारकर नंदी और वहां उपस्थित गणों का अपमान किया और फिर जिस पर्वत पर शिव जी विराजमान थे, उसे उठाने लगा, यह देख शिव जी ने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत को दबा दिया जिस कारण रावण का हाथ उस पर्वत के नीचे दब गया। जिसके कारण रावण को असहनीय कष्ट होने लगा जिससे वह रोने लगा और शिव से प्रार्थना करने लगा कि मुझे इस कष्ट से मुक्त कर दें। इस घटना के बाद रावण शिव का परम भक्त बन गया।
              यह भी कहा जाता है कि एक बार नारदजी के उकसावे पर रावण अपने प्रभु महादेव को कैलाश पर्वत सहित उठाकर लंका में लाने की सोचने लगा। वह अपने विमान से कैलाश पर्वत गया और वहां जाकर वह पर्वत को उठाने लगा। पर्वत हिलने लगा तो माता पार्वती ने पूछा कि यह पर्वत क्यों हिल रहा है प्रभु। तब शिवजी ने कहा कि मेरा भक्त रावण मुझे पर्वत सहित लंका ले जाना चाहता है। तब भगवान शंकर ने अपना भार बड़ा करके अपने अंगूठे से तनिक-सा दबाया तो कैलाश पर्वत फिर जहां था वहीं अवस्थित हो गया। इससे रावण का हाथ दब गया और वह क्षमा मांगते हुए कहने लगा- ’शंकर शंकर’- अर्थात क्षमा करिए, क्षमा करिए और स्तुति करने लग गया। यह क्षमा याचना और स्तुति ही कालांतर में ’शिव तांडव स्तोत्र’ की रचना हुई।
              इसी घटना को दर्शाती एक दुर्लभ मूर्ति राजकीय संग्रहालय मथुरा की वीथिका में प्रदर्शित है। यह प्राप्त मूर्ति से इस कथानक का पता चलता है कि यह मूर्ति मध्यकाल की मूर्ति है। जिसे रावणानुग्रह – के रूप में प्रदर्शित किया गया है। Ravana Lifting Uma Maheshvara With Kailash Mound gupta Period
यह मूर्ति गुप्तकाल की है और यह मूर्ति (34.2577) में रावण द्वारा कैलाश पर्वत उठाने का प्रयास किया जा रहा है, जिस पर पार्वती और शिव एक साथ बैठे हुए हैं, उस प्रसंग को यहां दर्शाया गया है। कहानी के अनुसार जब रावण कैलाश से गुजर रहा था, तो उनके रथ को शिव के एक सेवक नंदिकेश्वर ने रोका था। पूछताछ करने पर रावण को बताया गया कि यह क्षेत्र निषिद्ध है, क्योंकि शिव और पार्वती एकांतवास में थे। लंकापति को क्रोध आ गया। क्रोधित राक्षस राजा ने उस पर्वत को उठाना शुरू कर दिया। डावांडोल होते कैलाश पर्वत के कारण शिव का ध्यान भंग हुआ और कैलाश पर अशांति का कारण जानकर शिव ने पर्वत को अपने पैर से दबा दिया। उसका भार रावण को असहनीय हो गया और शक्तिशाली राक्षस रोने लगा। उसके रोने के कारण उसे रावण कहा जाने लगा। कई बार प्रार्थनाओं के बाद जब शिव प्रसन्न हुए तो रावण को भारी बोझ से राहत मिली। वर्तमान मूर्तिकला में रावण की शक्ति को उसके मजबूत शरीर, भारी भरकम सिर और भयानक रूप के माध्यम से दिखाया गया है। साथ ही उभरे हुए चेहरे से उनकी चिंता साफ झलक रही है। पार्वती अपने पति से लिपटी हुई हैं जो ऊर्ध्वलिंग रूप (अंग सीधा) में दिखाई दे रहा हैं और अपने दाहिने पैर से रावण को दबा भी रखा हैं।