महाकुम्भनगर। सनातन धर्म और संस्कृति के महापर्व, महाकुम्भ का आयोजन प्रयागराज में संगम तट पर होने जा रहा है। महाकुम्भ के सबसे बड़े आकर्षण साधु-संन्यासियों के अखाड़ों का प्रवेश मेला क्षेत्र में होने लगा है। परम्परा अनुसार धर्म की रक्षा के लिए आदि शंकराचार्य की प्रेरणा से बने 13 अखाड़े अपने-अपने क्रम से छावनी प्रवेश कर रहे हैं। इसी क्रम में शनिवार को श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी का महाकुम्भ में दिव्य भव्य छावनी प्रवेश हुआ। निरंजनी अखाड़े की छावनी प्रवेश यात्रा को देखने हजारों की संख्या में प्रयागराजवासी सड़कों पर मौजूद थे। अखाड़े के साधु-संतों पर जगह-जगह पुष्प वर्षा कर उनका स्वागत और अभिनंदन किया गया।
आदि शंकराचार्य की प्रेरणा से 726 ईस्वी में स्थापित हुए श्री पंचायती निरंजनी अखाड़े की महाकुम्भ में छावनी प्रवेश यात्रा का शुभारंभ प्रयागराज के बाघम्बरी गद्दी मठ से हुआ। छावनी प्रवेश यात्रा में सबसे आगे धर्म ध्वजा, अखाड़े का प्रतिनिधित्व करती हुई चल रही थी। उसके पीछे नागा संन्यासियों की टोली हाथों में चांदी के छत्र, छड़िया, भाले और तलवार लेकर ईष्ट देव भगवान कार्तिकेय की सवारी के साथ अगुवाई कर रही थी। ईष्ट देव की सवारी के पीछे ढोल-ताशे, लाव-लश्कर के साथ हाथी, घोड़ों और ऊंट पर सवार नागा संन्यासियों का जत्था चल रहा था। जो सभी नगरवासियों के लिए दुर्लभ दर्शन और आकर्षण का केंद्र बना।
छावनी प्रवेश यात्रा मठ बाघम्बरी गद्दी से निकल कर भरद्वाजपुरम् के लेबर चौहारे से मटियारा रोड होते हुए अलोपी देवी मंदिर तक पहुंची। यहां पर प्रवेश यात्रा के स्वागत के लिए प्रयागराज नगर निगम की ओर रंगोली बनाई गई थी और पुष्प वर्षा की जा रही थी। नागा संन्यासियों की टोली के साथ ही अखाड़ा परिषद अध्यक्ष श्री रविंद्र पुरी जी साधु-संतों के साथ चल रहे थे।
उन्होंने बताया कि एकता और समरसता निरंजनी अखाड़े का मूल मंत्र है। महाकुम्भ की छावनी साधु-संन्यासियों के लिये शिक्षा-दीक्षा का केंद्र होती है। इस महाकुम्भ के अवसर पर निरंजनी अखाड़ा हजारों की संख्या में नये नागा संन्यासियों को दीक्षा देगा, जो आने वाले वर्षों में सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर देंगे।
निरंजनी अखाड़े की छावनी प्रवेश यात्रा में आनंद अखाड़ा भी परंपरा अनुसार साथ में ही प्रवेश करता है। प्रवेश यात्रा में अखाड़ों के आचार्य, मण्डलेश्वर फिर महामण्डलेश्व इनके बाद आचार्य महामण्डलेश्वर पद क्रमानुसार चल रहे थे। प्रवेश यात्रा में निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामण्डलेश्वर कैलाशानंद गिरी, बाघम्बरी गद्दी के पीठाधीश्वर बलबीर गिरी, साध्वी निरंजना ज्योति और सौकड़ों की संख्या में साधु-संन्यासी पैदल और रथों पर सवार होकर चल रहे थे।
नगर प्रशासन और मेला प्राधिकरण के अधिकारियों ने साधु-संतों का माल्यार्पण और पुष्प वर्षा कर स्वगात किया। इसके पश्चात पांटून पुल से गुजर कर महाकुम्भ के आखाड़ा परिसर में छावनी प्रवेश हुआ। बाजे-गाजे और मंत्रोच्चार-पूजन के साथ ईष्ट देव भगवान कार्तिकेय को छावनी में स्थापित कर, साधु-संन्यासियों ने हर-हर महादेव और गंगा मईय्या की जय का उद्घोष किया।
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