कुमार गंधर्व के नाम से प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक शिवपुत्र सिद्धराम कोमकाली का जन्म 8 अप्रैल 1924 को कर्नाटक राज्य के धारवाड़ में हुआ था।
कुमार गंधर्व ने पुणे में प्रोफेसर देवधर और अंजनी बाई मालपेकर से संगीत की शिक्षा पाई। शिवपुत्र जन्म जात गायक थे इसलिए मात्र दस वर्ष की आयु से ही संगीत समारोहों में गाने लगे थे। उनके चमत्कारी गायन के कारण ही उनका नाम कुमार गंधर्व पड़ा।
कुमार गंधर्व का विवाह अप्रैल 1947 में भानुमती से हुआ, जो स्वयं एक अच्छी गायिका थीं। विवाह के बाद कुमार गंधर्व पत्नी सहित देवास (मध्य प्रदेश) आ गये। यहाँ आने के बाद वे स्वास्थ लाभ करने इंदौर चले गए। उन्हें टीबी थी, जिसका उन दिनों कोई पक्का इलाज़ नहीं था।
कुमार गंधर्व की मृत्यु देवास में ही 12 जनवरी सन् 1992 को हुई।
कुमार से काफी पहले 1961 में ही दूसरे पुत्र को जन्म देते हुए उनकी पत्नी भानुमती का निधन हो चुका था। इसके बाद उन्होंने वसुंधरा से दूसरा विवाह किया।
इस प्रकार भानुमती से हुए मुकुल गंधर्व, और वसुंधरा से हुई कलापिनी। कुमार की ये दोनों संतानें भी गायक-गायिका हैं।
कुमार गंधर्व को सन् 1977 में भारत सरकार द्वारा पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था।
कुमार गंधर्व के बारे में विशेषज्ञता के साथ लिखने-बोलने का दावा तो आज के दौर में शायद चंद लोग भी न कर पाएं लेकिन कुछेक छोटे-छोटे किस्से ज़रूर हैं जो उनके बड़े क़द और उनकी विधा में उनके ‘सर्वशीर्ष’ होने की झलक देते हैं।
ये बताते हैं कि हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के वे ‘गंधर्व’ सिर्फ़ पदवी से ‘कुमार’ थे। बाकी कहीं किसी मामले में ‘सवाई’ (इसका आशय पदवी के बजाय क़द के परिमाण से लगाना चाहिए क्योंकि सवाई गंधर्व की पदवी एक और महान गायक को मिली हुई है.) से कम न थे।
कुमार गंधर्व से जुड़े कई किस्से क़िताबों के सफ़ों (पन्नों) में दर्ज़ हो चुके हैं. ऐसी ही एक प्रामाणिक क़िताब है ख़ुद कुमार जी की लिखी ‘अनूपरागविलास’। यह क़िताब दो खंड में है और इसके पहले खंड में अपने जमाने के ख्यात संगीत समालोचक (क्रिटिक), संगीतशास्त्री (म्यूजिकोलॉजिस्ट) और लेखक वामनराव देशपांडे ने 27 पन्नों की भूमिका लिखी है लेकिन यक़ीन कीजिए जैसे-जैसे आप इस बड़ी सी भूमिका को पढ़ते हुए बढ़ते हैं कुमार का क़द और बड़ा लगता जाता है।
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