आयुर्वेद: पारम्परिक स्वास्थ्यवर्धक हैं सर्पगंधा प्‍लांट, विष पर भी है असरदार – Up18 News

आयुर्वेद: पारम्परिक स्वास्थ्यवर्धक हैं सर्पगंधा प्‍लांट, विष पर भी है असरदार

HEALTH

 

कहते हैं कि साँप अगर काट ले तो जहर से पहले आदमी डर से ही मर जाता है, लेकिन यदि आप सर्पगंधा के उपयोग (sarpagandha uses) के बारे में जानते हों तो आप न तो डर से मरेंगे और न ही जहर से। सर्पगंधा (sarpagandha benefits) की जड़ी साँप के विष को उतारने की एक अच्छी दवा है। सर्पगंधा के बारे में अनेक रोचक कथाएं प्रचलित हैं। उदाहरण के लिए कहा जाता है कि कोबरा से लड़ने से पहले नेवला सर्पगंधा की पत्तियों का रस चूस कर जाता है। पहले इसे पागलों की दवा भी कहा जाता था क्योंकि सर्पगंधा के प्रयोग से पागलपन भी ठीक होता है।

यह कफ और वात को शान्त करता है, पित्त को बढ़ाता है और भोजन में रुचि पैदा करता है। यह दर्द को खत्म करता है, नींद लाता है और कामभावना को शान्त करता है। सर्पगंधा घाव को भरता है और पेट के कीड़े को नष्ट (sarpagandha uses) करता है। यह अनेक प्रकार चूहे, साँप, छिपकिली आदि पशुओं के विष, गरविष (खाए जाने वाले जहर का एक प्रकार जो धीरे-धीरे असर करता है) को खत्म करता है। वात के कारण होने वाले रोग, दर्द, बुखार आदि को समाप्त करता है। इसकी जड़ अत्यंत तीखी तथा कड़वी, हल्की रेचक यानी मल को निकालने वाली और गर्मी पैदा करने वाली होती है।

साधारण नाम: सर्पगंधा /चंद्रभागा (Indian Snakeroot, Insanity herb, Serpentine wood)
वैज्ञानिक नाम: Rauvolfia serpentina

पारम्परिक उपयोग:

सर्पगंधा के जड़ों और पत्तियों का उपयोग किया जाता है।
आयुर्वेद में, इसकी जड़ों को कृमिनाशक, कड़वा, गर्म, और तीखा बताया गया है और इसका उपयोग अल्सर, त्रिदोष और कीड़ों के काटने के जहरीले प्रभाव के इलाज के लिए किया जाता है।
इसकी जड़ों का काढ़ा कृत्रिम निद्रादायक और पीड़ाहर का काम करता है।
गर्भाशय के संकुचन को बढ़ाने के लिए, भ्रूण के निष्कासन और आंतों के विकारों में जड़ों का काढ़ा दिया जाता है।
पौधे की पत्तियों का रस आंखों के कॉर्निया की अपारदर्शिता को हटाने के लिए लगाया जाता है।
इसके सूखे फलों का पाउडर पिपली और अदरक के साथ मासिक धर्म को नियमित करने के लिए लिया जाता है।
जड़ों को कुचल कर सीने में दर्द, यकृत, पेट दर्द और रेबीज में उपयोग किया जाता है।
अमर पोई की पत्तियों के साथ इसकी जड़ों का रस सर्पदंश के लिए दिया जाता है और पेस्ट को काटे हुए अंग पर लगाया जाता है।
जड़ के रस को घावों पर लगाया जाता है और काढ़े को गठिया मे लाभ के लिए लिया जाता है।
यह मानसिक रूप से मंद व्यक्तियों को निद्रा के प्रभाव के लिए दिया जाता है, इसलिए यह ‘पगलों के दवा’ नाम से लोकप्रिय है।

कुक्कुरखाँसी (काली खांसी) में सर्पगंधा का प्रयोग फायदेमंद

कुक्कुर खांसी (Whooping cough) को काली खांसी भी कहते हैं। बच्चों में होने वाली यह एक संक्रामक बीमारी है। ज्यादातर 5 से 15 वर्ष आयु तक के बच्चों को होती है। कुक्कुर खांसी होने पर काफी तेज तथा लगातार खांसी उठती है। लगातार खांसने से रोगी घबरा जाता है। अंत में उसे उलटी हो जाती है।

सर्पगंधा के प्रयोग से इसे ठीक (sarpagandha benefits) किया जा सकता है। 250-500 मि.ग्राम सर्पगंधा चूर्ण को शहद के साथ सेवन कराने से कुक्कुर खाँसी या काली खांसी में लाभ होता है।

Dr. Bhanu Pratap Singh