Agra, Uttar Pradesh, India. आगरा में शाहगंज स्थित कोठी मीना बाजार में रावी ईवेंट्स की ओर से लगाए जा रहे आगरा महोत्सव मिडनाइट बाजार के छठवें दिन कला साधिका समिति एवं संरचना साहित्य पटल के संयुक्त तत्वावधान में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में ‘हिन्दी उपन्यास तब और अब’ एवं ‘हिन्दी के सामाजिक उपन्यासों में युग चेतना एवं जीवन दर्शन’ विषय पर चर्चा की गई। वरिष्ठ पत्रकार डॉ. भानु प्रताप सिंह ने अपने उपन्यास ‘मेरे हसबैंड मुझको प्यार नहीं करते’ के बारे में जानकारी दी। साहित्य प्रदर्शनी में यह उपन्यास सर्वाधिक खरीदा जा रहा है, यहां तक कि साहित्यकारों ने भी उपन्यास खरीदा।
प्रख्यात साहित्यकार डॉ. मधु भारद्वाज ने कहा– समय का प्रभाव हिन्दी उपन्यास पर भी पड़ा है। आजादी के पश्चात उपन्यास यथार्थ पर आधारित हो गया है, क्योंकि समाज की अंदरूनी समस्याएं हैं, जिनका समाधान उपन्यासकार और पाठकों को मिलकर करना है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले कहानी का प्रादुर्भाव हुआ। हम आज भी कहते हैं- एक था राजा एक थी रानी, दोनों मर गए खत्म कहानी। कहानी का विस्तार उपन्यास के रूप में हुआ।
उपन्यासों में जीवन दर्शन की चर्चा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार एवं साहित्यसेवी डॉ. भानु प्रताप सिंह ने अपने उपन्यास ‘मेरे हसबैंड मुझको प्यार नहीं करते’ पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि उपन्यास लिखने से पूर्व लड़की और लड़का की फेसबुक आईडी बनाकर रात्रि में चैटिंग की। यही चैटिंग इस उपन्यास की आत्मा है। उपन्यास में देवर और भाभी की प्रेमकथा चलती है। भाभी इस बात से दुखी है कि उसका पति लड़कियों से फेसबुक पर चैटिंग करता रहता है, उसकी ओर तवज्जो नहीं देता है। वह अपने पति को सुधारने के लिए फेसबुक पर फर्जी नाम से आईडी बनाती है और पति की फेसबुक में घुस जाती है। पति इससे प्यार भरी चैटिंग करता है लेकिन घर पर ध्यान नहीं देता है। उपन्यास में काम की प्रधानता है। भारतीय संस्कृति के साथ-साथ पाश्चात्य सभ्यता के दर्शन होते हैं। आधुनिक और प्राचीन सभ्यता बीच द्वंद्व है। नई पीढ़ी और पुरानी पीढ़ी के बीच का द्वंद्व देखते ही बनता है। उपन्यास में पूरा आगरा समाया हुआ है। कथानक में आगरा के कवि, साहित्यकारों, चिकित्सकों, राजनेताओं, अधिवक्ताओं के नामों का समावेश बड़े ही खूबसूरत ढंग से किया गया है। उपन्यास का अंत अत्यंत रोचक है। जब पत्नी को पता चलता है कि उसका पति फेसबुक पर चैटिंग क्यों करता है तो वह अवाक रह जाती है। प्रेम का इस तरह से प्रदर्शन करती है जैसे सुहागरात मना रही हो। उपन्यास में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की बात है। सीख दी गई है कि अभिभावकों को अपने बच्चों पर निगरानी रखनी चाहिए कि वे रात्रि में फेसबुक या सोशल मीडिया के अन्य साधनों पर क्या कर रहे हैं। अगर उपन्यास बढ़कर एक भी अभिभावक अपने बच्चों को सही राह पर ला पाया तो लिखना सार्थक हो जाएगा।

वरिष्ठ कवयित्री नूतन अग्रवाल ने कहा कि उपन्यास तब और अब का यदि तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो कुछ भी नया नहीं है, सब कुछ पहले ही लिखा जा चुका है। अनेक उपन्यासों में नारी का सशक्त रूप दिखाया गया है। समय के अनुसार शैली और भाव बदले हैं।
आशु कवयित्री अलका अग्रवाल ने चर्चा को आगे बढ़ाते हुए नारी, सास, बहु, पति पर कविता सुनाकर परिचर्चा को नया आयाम दिया।
संचालन करते हुए कवि कुमार ललित ने कहा कि उपन्यास में जीवन की बहुमुखी छवि के साथ-साथ सृजनात्मक कल्पना की भी अपार शक्ति होती है। लेखक की यह खासियत होती है कि वह लघु कथा को उपन्यास बना सकता है और उपन्यास को लघु कथा में परिवर्ति कर सकता है।
कवि परमानन्द शर्मा ने कहा कि लेखन का संबंध संवेदनशीलता से है। संरचना साहित्य पटल के अवनीश अरोड़ा ने कहा कि हमारी संस्था से जुड़ें, यहां किसी से एक पैसा भी नहीं लिया जाना है। व्यंग्यकार हरीश अग्रवाल ‘ढपोरशंख’ ने अपनी पुस्तक ‘मैं साप हूँ’ से व्यंग्य सुनाकर हर किसी के चेहरे पर मुस्कान बिखेर दी।
अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार अशोक बंसल अश्रु ने परिचर्चा की समीक्षा की। उन्होंने प्रत्येक वक्ता के बारे में सटीक टिप्पणी की। यह भी कहा कि समय की जरूरत है कि लेखक को अपनी ब्रांडिंग स्वयं करनी पड़ रही है। संगोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार स्व. बृजेन्द्र पटेल के परिजनों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही। धन्यवाद ज्ञापन प्रदर्शनी संयोजक आदर्श नंदन गुप्त ने किया। वक्ताओं ने एक दूसरे को माला पहनाकर स्वागत किया।
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