Shri Krishna birthplace-Shahi Idgah land dispute

अयोध्या के रामलला के बाद मथुरा के श्रीकृष्ण लला कोर्ट में, मंदिर को dismantle कर मस्जिद बनाने, मूर्तियों को आगरा की जामा मस्जिद में दबाने का प्रमाण औरंगजेब की डायरी मआसिर-ए-आलमगीरी में उपलब्ध

RELIGION/ CULTURE लेख

इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह की याचिका की पोषणीयता पर सुनवाई 22 फरवरी को

टैवर्नियर, कनिंघम, एएसआई की पुस्तकों में भी प्रमाण, मथुरा के डीएम एफ.एस. ग्राउस ने भी लिखा है

शाही ईदगाह के नाम कोई राजस्व रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं, नमाज बंद कराने का आग्रह  किया गया

डॉ. भानु प्रताप सिंह

Live Story Time

Agra, Uttar Pradesh, India सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद अयोध्या के रामलला भव्य और दिव्य मंदिर में विराजमान हो गए। अब मथुरा में कंस के कारागार में प्रकट हुए श्रीकृष्ण लला को मूल स्थान पर विराजित करने की तैयारी चल रही है। रामलला को अपनी जन्मभूमि पर विराजित करने के लिए 77 युद्ध करने पड़े लेकिन श्रीकृष्ण लला के लिए सिर्फ कानूनी लड़ाई लड़ी जा रही है। यह कानूनी लड़ाई अत्यंत सरल है। तत्कालीन दस्तावेजों से सबकुछ प्रमाणित हो रहा है।

इस संबंध में मुकदमा संख्या 7/2023 श्री भगवान श्रीकृष्ण लला विराजमान आदि बनाम उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड आदि के तहत सुनवाई चल रही है। इसमें वादी हैं- श्रीकृष्ण लला विराजमान, योगेश्वर श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ ट्रस्ट द्वारा अजय प्रताप सिंह, क्षत्रिय शक्तिपीठ विकास ट्रस्ट अध्यक्ष अजय प्रताप सिंह, अनंजय कुमार सिंह और अजय प्रताप सिंह। प्रतिवादी हैं- सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड, प्रबंधन कमेटी जामा मस्जिद मथुरा, श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट और श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान। मुकदमे का मूल तथ्य है कि कथित शाही ईदगाह मस्जिद श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर है, इसलिए इसे हटाया जाए।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट वर्ष 1862, 1863, 1864, 1865 के वॉल्यूम 1 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान, कटरा केशव देव का मानचित्र दिया है, जो अष्टभुजीय है। इसे एएसआई ने 1920 में संरक्षित किया है, जिसमें कहा गया है- The portions of Katra Mount that are not in the position of Nuzul tenants were formally studied, including the temple of Keshav Dev, which was dismantled and the site utilized as the Mosque of Aurangzeb. (कटरा पर्वत के जो हिस्से नुज़ूल किरायेदारों के कब्जे में नहीं हैं, उसका औपचारिक रूप से अध्ययन किया गया, जिसमें केशव देव का मंदिर भी शामिल है, जिसे dismantled कर दिया गया और उस स्थान का उपयोग औरंगजेब की मस्जिद के रूप में किया गया।

भारत सरकार की शब्दावली के अनुसार डिसमेंटल का अर्थ है खोल देना, खोल डालना, बाहरी आवरण हटा देना। औरंगजेब ने शाही ईदगाह बनाने के लिए श्रीकृष्ण जन्मस्थान के सजावटी सामान को तोड़ा और मंदिर में स्थापित श्रीकृष्ण विग्रह (रमा वल्लभ की मूर्ति- रुक्मणि – कृष्ण) काले पत्थर की मूर्ति को आगरा की जामा मस्जिद की सीढ़ियों के नीचे पैरों के नीचे कुचलने के लिए 1670 में दबवा दिया। इसका उल्लेख मआसिर-ए- आलमगीरी के चैप्टर 13 में है। इसे साक़ी मुस्तैद खान ने औरंगजेब की डायरी के रूप में लिखा है। सर जदुनाथ सरकार ने इसका अंग्रेजी में अनुवाद किया है। इसके अनुसार, औरंगजेब ने 27 जनवरी, 1670 को 15वें रोजे के दिन मंदिर तोड़ने का आदेश जारी किया और मूर्तियां जामा मस्जिद की सीढ़ियों में दबा दीं।

फ्रेंच यात्री जीन बैप्टिस्ट टैवर्नियर ने 1630-68 के बीच छह बार भारत का दौरा किया। उसने 1650 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान देखा था। उसने अपनी पुस्तक ट्रेवल्स इन इंडिया के वॉल्यूम 2 चैप्टर 12 में पेज संख्या 240 से 243 के बीच श्रीकृष्ण जन्मस्थान मंदिर का आँखों देखा वर्णन लिखा है- मंदिर लाल रंग के पत्थर का बना हुआ है और अष्टभुजीय चबूतरे पर खड़ा हुआ है। मंदिर के ऊपर तीन गुंबद हैं, जिनमें बीच वाला बड़ा और अगल-बगल के अपेक्षाकृत छोटे हैं। मंदिर के अंदर एक मूर्ति है जिसका सिर काले मार्बल का है, जिसकी आँखें माणिक्य की हैं। पूरा शरीर रेड वैलवेट के दस्तकारी कपड़ों से ढका हुआ है, साथ में दो और मूर्तियां हैं। मदिर की दीवारें 15 फीट लम्बी और 9-10 फीट चौड़ी है। मोटाई छह अंगुल है। दीवारें स्लेट्स से बनी हैं। दीवारों पर बहुत सारे जानवर, मंकी बने हुए हैं। चढ़ने के लिए 15-16 सीढ़िया हैं, जिन पर दो व्यक्ति एक साथ नहीं चढ़ सकते हैं। मंदिर के आधार से लेकर टॉप तक जानवरों की अलग-अलग चित्र बने हुए थे, जिनमें बंदर, हाथी, ‘राम्स’ और राक्षस हैं।

टैवर्नियर के 200 वर्ष बाद ब्रिटिश सेना के बंगाल इंजीनियर ग्रुप में इंजीनियर अलैक्जेंडक कनिंघम ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान का मानचित्र बनाया, जो टैवर्नियर की पुस्तक में वर्णित तथ्यों से मेल खाता है। कनिंघम को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का जनक माना जाता है।

शाही ईदगाह के नाम कोई राजस्व रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं है। आज भी राजस्व रिकॉर्ड मुगलों के है। अगर कथित शाही ईदगाह को औरंगबेज ने बनाया है तो रिकॉर्ड क्यों नहीं है और आज तक सर्वे क्यों नहीं हुआ है। वक्फ एक्ट 1995 की धारा 4 के अनुसार गजट नोटिफिकेशन नहीं निकाला गया है। सर्वे कमिश्नर नियुक्त नहीं किए गए हैं। धारा-4 का उद्देश्य वक्फ प्रॉपर्टी का नेचर और ऑब्जेक्ट तय करना है। इसलिए इस मामले में वक्फ एक्ट लागू नहीं होता है। यह स्थल एएसआई के अधीन संरक्षित है, इसलिए उपासना स्थल अधिनियम 1991 भी लागू नहीं होता है।

1882 में मथुरा के डिस्ट्रिक्ट मैमोर में मथुरा के डीएम एफ.एस. ग्राउस ने राजा पाटनीमल की खरीद-फरोख्त के बारे में लिखा है- पाटनीमल मंदिर बनवाना चाहता था। कुछ मुसलमानों ने कब्जा किया हुआ था, उन्होंने इस खरीद का विरोध किया और तत्कालीन कानून ने खरीद के विरोध को सही माना। इसी कारण आज तक मुस्लिम पक्ष का कब्जा है।

मुकदमे का विवरण

12 अप्रैल, 2023 को सिविल कोर्ट मथुरा में प्रस्तुत किया था।

26 मई, 2023 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में ट्रांसफर हो गया।

18 अक्टूबर, 2023 से ट्रायल शुरू हो गया।

22 फरवरी, 2024 को केस की पोषणीयता पर सुनवाई है।

To read Dr Bhanu Pratap Singh books in Hindi and English please Click this link on WhatsApp: 

मुकदमे में कहा गया है कि कथित शाही ईदगाह में कोर्ट्स ऑर्डर 39 रूल 7 सीपीसी के अंतर्गत नमाज बंदकी जाए। इसमें बताया गया है कि यह कथित शाही ईदगाह हिंदू आर्कीटेक्चर है। जब तक केस तय न हो जाए, तब तक नमाज बंद कराई जाए।

अधिवक्ता अजय प्रताप सिंह ने बताया कि फ्रेंच यात्री जीन बैप्टिस्ट टैवर्नियर ने श्रीकृष्ण जन्म स्थान में स्थापित मूर्तियों को ग्रेट राम-राम कहा है। इससे दो बातों का पता चलता है। 1. पुजारी ने टैवर्नियर को राम-राम कहा और उसने इसी बात का उल्लेख अपनी पुस्तक में कर दिया। 2. तब मथुरा में आज की तरह राधे-राधे कहने का प्रचलन नहीं था। टैवर्नियर ने मंदिर में तीन गुंबदों का उल्लेख किया है। तब मंदिरों में तीन गुंबद हुआ करते थे। आर्कीटेक्चर ग्रंथों से प्रमाणित है कि तीन गुंबद मस्जिद का नहीं, मंदिर के अंग हैं। इस बारे में भी माननीय न्यायालय को प्रमाणों के साथ अवगत कराया जाएगा।

उनका कहना है कि श्रीकृष्ण लला मंदिर के संबंध में तर्क अकाट्य हैं। उच्च न्यायालय में सुनवाई शुरू होगी तो पुरातात्विक और ऐतिहासिक तथ्य प्रस्तुत किए जाएंगे।

300 ईसा पूर्व में ग्रीक यात्री मेगास्थनीज ने भगवान श्रीकृष्ण की पूजा का वर्णन किया है। मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक ‘इंडिका’ में ‘हरिकृष्ण’ के लिए ‘हेरिक्लीज़’ संबोधन का इस्तेमाल किया है। बैक्ट्रिया के इंडो-ग्रीक राजाओं ने भी श्रीकृष्ण और बलराम के चित्रों से अंकित मुहरें जारी करवाई थीं।

कई ग्रीक लेखकों जैसे एरियन, डियोडोरस आदि ने भी मेगास्थनीज के हवाले से लिखा है कि “भारत में शूरसेन नामक वंश का शासन था, जो किसी ‘हेराक्लीज’(हरिकृष्ण) की पूजा करता था। इस वंश का शासन दो नगरों ‘मेथोरा’( मथुरा) और ‘क्लेसोबोरा’( कृष्णपुरा) तक फैला था। ये दोनों शहर ‘जोबारस नदी’( यमुना नदी) के तट पर बसे हुए थे।  गौरतलब है कि शूरसेन श्रीकृष्ण के पूर्वज थे।

जहाँगीर के शासनकाल में ओरछा के बुंदेला शासक वीर सिंह देव जी ने 33 लाख रुपये में श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर 250 फीट ऊँचा एक भव्य मंदिर बनवाया जो ‘केशवदेव मंदिर’ के नाम से प्रसिद्ध था । इस मंदिर का वर्णन इसी काल(1650) में आये फ्रेंच यात्री ट्रेवेनियर ने भी किया है।

मुगल दरबार में कार्यरत इटालियन यात्री मनूची ने भी इस मंदिर की भव्यता का वर्णन किया है।  हालांकि शाहजहाँ ने अपने सूबेदार मुर्शिद अली खान को मथुरा से मूर्तिपूजा समाप्त करने और हिंदुओं पर अत्याचार करने के आदेश दिया था, लेकिन शाहजहाँ के उदार बेटे मुगल राजकुमार दारा शिकोह ने केशवदेव मंदिर की चाहरदिवारी बनाने के लिए दान भी दिया था।

1669 में औरंगजेब ने अपने गर्वनर अब्दुल नबी खान को मथुरा के मंदिरों को  तोड़ने का आदेश दिया। अब्दुल नबी खान ने वहाँ कई मंदिरों को तोड़ा और मंदिरों के मलबे से जामा मस्जिद का निर्माण करवाया। 1669 में ही वीर गोकुला जाट के नेतृत्व में किसानों ने विद्रोह कर दिया और अब्दुल नबी खान को मार डाला। क्रोधित औरंगजेब ने खुद 1670 में मथुरा पर हमला कर दिया। गोकुला जाट को 5000 सिपाहियों के साथ बंदी बना लिया। गोकुला जाट की अंग-अंग काटकर हत्या करवा दी।

कहा जाता है कि ‘केशवदेव मंदिर’ का शिखर इतना उँचा था कि इसे वहाँ से 36 मील की दूरी पर स्थित आगरा शहर से भी देखा जा सकता था।  औरंगजेब इस महान मंदिर की प्रसिद्धि और भव्यता से भी चिढ़ गया था और इसी वजह से उसने इस मंदिर पर हमला किया। ईद के त्यौहार के दिन औरंगजेब ने ‘केशवदेव मंदिर’ के टूटे अवशेषों से ‘नवरंग पादशाह मस्जिद’ का निर्माण शुरु किया । इसी ‘नवरंग पादशाह मस्जिद’ को आज ‘शाही ईदगाह मस्जिद’ कहा जाता है।

‘केशवदेव मंदिर’ की मूर्तियों को भी औरंगजेब ने तुड़वा दिया और उन मूर्तियों के अवशेषों को आगरा के ‘जहाँआरा बेगम मस्जिद’ की सीढ़ियों के नीचे दबवा दिया, ताकि मुस्लिम लोग उन मूर्तियों के उपर अपने पांव रख कर जाएं। उस काल की पुस्तक ‘मासीर- ए- आलमगीरी’ में इस घटना का वर्णन किया गया है। औरंगजेब यहीं नहीं रुका उसने मथुरा शहर का नाम भी बदल कर ‘इस्लामाबाद’ कर दिया।

‘मअसिर-ए- आलमगीरी’ में इस घटना के दौरान मंदिर बचाने के क्रम में शहीद होने वाले लोगों के विद्रोह का विस्तार से वर्णन किया गया है। इस मंदिर के मूर्ति को ले जाने के क्रम में मंदिर के पुजारी को भी मार डाला गया। विद्रोह को दबाने में औरंगजेब की सेना को बहुत समय लगा।

मुगल शासन के पतन और मराठाओं के उत्थान के दौर में मथुरा पर मराठों का कब्जा हो गया । मराठों ने ‘केशव कटरा’ के इलाके को बेनामी संपत्ति घोषित कर दिया । इस भूमि के अंतर्गत ही शाही ईदगाह मस्जिद भी आती थी। मराठे भी यहाँ एक शानदार मंदिर का निर्माण कराना चाहते थे, लेकिन किसी कारणवश वो यहाँ मंदिर का निर्माण शुरु नहीं करा पाये।

Dr. Bhanu Pratap Singh