अगर मरीज के Blood Pressure की रीडिंग तीन बार न ली जाए तो इसके गलत होने के चांसेज ज्यादा रहते हैं, यह बात एक भारतीय शोध में सामने आई है।
पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया और AIIMS ने पता लगाया कि अगर दूसरी और तीसरी रीडिंग के मीन के बजाय सिर्फ पहली Blood Pressure रीडिंग को डायग्नोसिस के लिए सही मान लिया तो हायपरटेंशन सामने आने के चांसेज 63 फीसदी ज्यादा रहते हैं।
जर्नल ऑफ ह्यूमन हायपरटेंशन में छपी एक स्टडी के ऑथर के मुताबिक बीपी ठीक से नापा न जाए तो क्लासीफिकेशन सही नहीं हो पाता और रीडिंग गलत हो सकती है जिससे बेवजह का इलाज हो जाता है।
इस वक्त जैसे Blood Pressure नापा जाता है उससे बेवजह का इलाज हो रहा है। 30 से नीचे के युवा का नॉर्मल ब्लड प्रेशर 120/80mmHG होता है। हालांकि ब्लड प्रेशर की रीडिंग खाने, फीवर, मूड और कई वजहों से फ्लक्चुएट करती है। एक और वजह होती है, वाइट कोट सिंड्रोम, जिसमें इंसान का ब्लड प्रेशर डॉक्टर को देखकर ही बड़ जाता है इसलिए जब भी पहली रीडिंग सामान्य न आए तो रीडिंग दोबारा लेनी चाहिए।
वर्तमान स्थिति में बिजी क्लीनिक्स में एक बार ही बीपी की रीडिंग लेकर हायपरटेंशन का इलाज शुरू कर दिया जाता है। इसी वजह से हाई बीपी के कई मरीज सामने आ रहे हैं और उनको भी दवाएं मिल रही हैं जिन्हें जरूरत नहीं है।
मुंबई के जसलोक हॉस्पिटल के डॉक्टर हेमंत ठक्कर बताते हैं कि एक समझदार डॉक्टर जानता है कि जब मरीज पहली बार उनके पास आता है तो अस्पताल का माहौल को देखकर वह वाइट कोट के लक्षण दिखा सकता है, जिससे रीडिंग गलत आ सकती है। उन्होंने कहा कि रीडिंग तभी रिपीट करनी चाहिए जब पहली सामान्य न दिखे।
डॉक्टर ठक्कर कहते हैं कि सही तरीका यह है कि अगर किसी डॉक्टर को बीपी सामान्य नहीं मिलता है तो उसे मरीज को बैठाकर और लिटाकर फिर से रीडिंग लेनी चाहिए। वह कहते हैं, ‘अगर 30 साल के मरीज की रीडिंग 140/90 आती है तो मैं उसे दवाएं देने के बजाए लाइफस्टाइल बदलने की सलाह दूंगा। यही रीडिंग अगर सीनियर सिटीजन की आती है तो उन्हें दवा की जरूरत है।’
-एजेंसियां
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