डॉ. भानु प्रताप सिंह
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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। अनुमान था कि भाजपा 70 प्लस सीटें जीतेगी लेकिन 36 सीटों पर सिमटती नजर आ रही है। खबर लिखने तक भारतीय जनता पार्टी को 31 और समाजवादी पार्टी को 38 और कांग्रेस को 7 सीटें मिल रही हैं। अभी चुनाव आयोग ने परिणाम घोषित नहीं किया है।
2019 में भाजपा को 62, बसपा को 10, सपा को 5 और कांग्रेस के 1 सीट मिली थीं। बहुजन समाज पार्टी को 2014 की तरह 2024 में भी एक भी सीट नहीं मिली है। 2014 में भाजपा को 71 सीटें मिली थीं। 2024 में आधी सीटें कम हो जाने के कारण भाजपा को केंद्र में पूर्ण बहुमत नहीं मिला है, ऐसा जानकारों का कहना है।
हमने इस बारे में भाजपा के कई नेताओं और कार्यकर्ताओं से बातचीत की। कुछ बातें निकलकर आईं, जिन्हें हम यहां बिंदुवार लिख रहे हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है कि
- उत्तर प्रदेश में भाजपा कार्यकर्ताओं को अपनी पार्टी की सरकार होने की सुखानुभूति नहीं होने दी गई।
- सत्तासीन कार्यकर्ताओं के पास आम जनता के लोग अधिकांशतः पुलिस से पीड़ित लोग ही आते हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं को मनाही कर दी गई थी कि पुलिस थानों में न जाएं। इसके बाद भी कार्यकर्ता गए तो उनका अपमान किया गया। यह देख कार्यकर्ता घर बैठ गए।
- भाजपा ने कई कार्यक्रम घर-घर जाने वाले करने की घोषणा की। जमीनी हकीकत यह है कि कोई घर-घर नहीं गया। हां, फोटो के लिए औपचारिकता जरूर की गई।
- सत्तासीन पार्टी कार्यकर्ता चाहता है कि वह भी समृद्ध हो, जो भाजपा सरकार में संभव नहीं हो सका। ठेका आदि के काम वही लोग करते रहे जो पहले से कर रहे हैं।
- पुलिस-प्रशासनिक अधिकारी अपने मन की करने लगे। जनप्रतिनिधियों की बातों को महत्ता नहीं दी।
- जनप्रतिनिधियों के आसपास अन्य दलों के कार्यकर्ता मंडराते रहते हैं।
- भाजपा के जनाधार वाले पुराने कार्यकर्ता घर बैठ गए और चुनाव के समय भी उन्हें किसी ने पूछा नहीं। ऐसे लोग शिखर पर आ गए, जिनका कोई जनाधार नहीं है।
- जिनका आम जनता विरोध कर रही थी, उन्हें टिकट दिया गया। कई सीटों पर चुनाव लड़ने के लिए बाहरी लोग भेज दिए गए।
- बीएसपी अकेले चुनाव लड़ रह रही थी। सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए। ऐसा माहौल बना कि बीएसपी चुनाव नहीं जीत रही है। बीएसपी का कोर सपोर्टर दलित वोटर ने भी साथ छोड़ दिया और गठबंधन प्रत्याशियों की ओर शिफ्ट हो गया। इसका भारी नुकसान बीजेपी को उठाना पड़ रहा है।
- हिंदू वोट तो बँट गया लेकिन मुस्लिमों ने उसी प्रत्याशी को वोट दिया जो भाजपा को टक्कर देने की स्थिति में था। यही कारण है कि आगरा में गठबंधन के प्रत्याशी समाजवादी पार्टी के सुरेश चंद कर्दम को 3,09,892 वोट मिले। बसपा प्रत्याशी पूजा अमरोही 160875 वोटों पर सिमट गईं। आगरा सीट पर बसपा सदैव दूसरे नम्बर पर रही है। इस बार तीसरे नम्बर पर खिसक गई।
- फतेहपुर सीकरी लोकसभा सीट की बात करें यहां भी दलित वोट गठबंधन प्रत्याशी कांग्रेस के रामनाथ सिंह सिकरवार को मिली। उन्हें अब तक 3,95,866 वोट मिल चुके हैं। बसपा प्रत्याशी रामनिवास शर्मा को सिर्फ 1,19,717 वोट मिल सके। यह हाल तब है जबकि फतेहपुर सीकरी से बसपा प्रत्याशी सीमा उपाध्याय लोकसभा चुनाव जीत चुकी हैं। इस समय वे भाजपा की नेता हैं।
आजतक टीवी चैनल पर हुई बहस में हिंदुस्तान अखबार के प्रधान संपादक और राजनीतिक विश्लेषक शशि शेखर ने कहा-
- बीजेपी का गहन आत्ममंथन करना पड़ेगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह हैं यूपी से और योगी जैसा जबर्दस्त मुख्यमंत्री है। भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है। कुछ टिकट ऐसी दी गईं दो मुफीद नहीं हुए। गठबंधन भी मुफीद नहीं हुए।
- अचानक टिकट देना, अचानक गठबंधन में शामिल कर लेना, ये ठीक नहीं था।
- जिन लोगों को टिकट दिया गया उन्होंने पर्याप्त मेहनत नहीं की।
- सिनेमा स्टार और टीवी स्टार की बात को मैं खुद जानता हूँ। वे व्यग्र थे कि उनके रहने-खाने के बिल कौन पे करेगा क्योंकि शूटिंग में वे ऐसा ही करते हैं। वे भूल गए कि यह शूटिंग नहीं थी। ब्रांड मोदी की ये लायबिलिटी बन गए, ये बहुत बड़ा सेटबैक था।
- अखिलेश यादव फिर से उम्मीद बनकर उभरे हैं।
- राहुल गांधी की संविधान बचाओ वाली बात दलितों के दिल तक उतरी।
- बांस गांव में एक सिपाही से मिला। वह दलित था। मैंने बात की तो उसने बहुत सी बातें बताईं जो टीवी पर बताने लायक नहीं हैं। हवाएं उल्टी बहने लगीं।
- दलित-मुस्लिम एकता कांग्रेस के पक्ष में दिखी।
- मायावती के छीजने से दलित केवल कांग्रेस या सपा की ओर नहीं गया, चंद्रशेखर आजाद की ओर भी गया। दलितों में छटपटाहट है। मायावती की राजनीति से उनका दिल टूट गया है।
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