आगरा। घने कोहरे के दौरान शून्य या अत्यंत कम दृश्यता के बावजूद तेज रफ्तार से दौड़ते वाहन यमुना एक्सप्रेसवे को लगातार मौत के गलियारे में बदल रहे हैं। मंगलवार तड़के हुए भयावह हादसे सहित हाल के कई दर्दनाक दुर्घटनाओं ने एक बार फिर सड़क सुरक्षा व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर कर दिया है। इन घटनाओं के बाद मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 115 के तहत एक्सप्रेसवे पर अस्थायी यातायात नियंत्रण लागू करने की मांग तेज हो गई है।
शीतकाल में घने कोहरे के कारण यमुना एक्सप्रेसवे पर दृश्यता कई बार शून्य तक पहुंच जाती है, लेकिन इसके बावजूद भारी वाहन, बसें और ट्रक तेज गति से चलते रहते हैं। यही लापरवाही बड़े हादसों की वजह बन रही है। बीती रात लगभग 3:30 बजे घने कोहरे के बीच कई वाहनों की आपस में टक्कर हो गई, जिसके बाद बसों में आग लगने से कुछ लोगों की मौके पर ही मौत हो गई। कोहरा इतना घना था कि आगे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।
वरिष्ठ अधिवक्ता के.सी. जैन के अनुसार यह कोई एकल घटना नहीं है। वर्ष 2012 से 2023 के बीच केवल कोहरे के कारण यमुना एक्सप्रेसवे पर 338 सड़क दुर्घटनाएं दर्ज की गईं, जिनमें 75 लोगों की जान गई और 665 से अधिक लोग गंभीर रूप से घायल हुए। सर्दियों के मौसम में एक्सप्रेसवे पर हादसों का यह सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है।
मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 115 राज्य सरकार को यह अधिकार देती है कि वह जनहित और सार्वजनिक सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए किसी भी सड़क या उसके हिस्से पर वाहनों के आवागमन को नियंत्रित, विनियमित या अस्थायी रूप से प्रतिबंधित कर सके। विशेषज्ञों का मानना है कि शून्य या बेहद कम दृश्यता की स्थिति में यमुना एक्सप्रेसवे और आगरा–लखनऊ एक्सप्रेसवे जैसे हाई-स्पीड कॉरिडोर को अस्थायी रूप से बंद करना एक प्रभावी कदम हो सकता है।
वरिष्ठ अधिवक्ता और सड़क सुरक्षा एक्टिविस्ट के.सी. जैन ने बताया कि वह इस मुद्दे को लेकर शीघ्र ही सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करेंगे। उनका कहना है कि शून्य दृश्यता की स्थिति में वाहनों के संचालन को लेकर एक समान, वैज्ञानिक और देशव्यापी मानक नीति बनाए जाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि यदि मौसम और परिस्थितियों के अनुसार पूर्व-नियोजित यातायात नियंत्रण व्यवस्था लागू की जाती है, तो न केवल बहुमूल्य मानव जीवन की रक्षा की जा सकती है, बल्कि सड़क उपयोगकर्ताओं में सुरक्षा और विश्वास की भावना भी मजबूत होगी।
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