भारत में उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल में एक गांव है कांदी, इस गांव में 28 मई 1921 को जन्म हुआ कृपाशंकर का। अब आप सोच रहे होंगे कि ये कौन है? ये नाम है उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत अवैद्यनाथ का। वही अवैद्यनाथ जो पहली बार गोरखपुर की मनिराम विधानसभा से विधायक बने तो लगातार 4 बार विधायक चुने गए। गोरखुपर के 3 बार सांसद बने। इसके अलावा उनका एक और परिचय है कि वह गोरखपुर के प्रसिद्ध गोरखनाथ मंदिर के पीठाधीश्वर रहे हैं। आज उन्हीं अवैद्यनाथ की जन्म जयंती पर हम आपको उनके जीवन के हर पहलू से रुबरु कराएंगे।
मां-बाप की मौत से उत्पन्न हुआ वैराग्य
ऐसा कहा जाता है कि महंत अवैद्यनाथ को अपनी मां का नाम याद नहीं रह गया था। क्योंकि जब वह बहुत छोटे थे तभी उनके माता पिता की अकाल मृत्यु हो गई थी। मासूम कृपाशंकर दादी की गोद में पल रहे थे। उच्चतर माध्यमिक स्तर तक शिक्षा पूर्ण होते ही दादी की भी मृत्यु हो गई। उनका मन इस संसार के प्रति उदासीन होता गया और उसमें वैराग्य का भाव भरता गया। उनके पिता जी तीन भाई थे। वह अपने पिता के इकलौते पुत्र थे। उन्होंने अपनी सम्पत्ति दोनों चाचा को बराबर बांट दिया और वैराग्य ले लिया। परिवार में अपनों के निधन और कम उम्र में वैराग्य लेने के बाद वह 4 धाम की यात्रा पर निकल गए।
हैजा हुआ तो साथियों ने साथ छोड़ा
किशोर अवस्था में ही महंत अवैद्यनाथ ने बद्रीनाथ, केदार नाथ गंगोत्री, यमुनोत्री आदि तीर् स्थलों की यात्रा की। कैलाश मानसरोवर की यात्रा से वापस आते समय अल्मोड़ा में उन्हें हैजा हो गया था। जब वे अचेत हो गए तो साथी उन्हें उसी दशा में छोड़ कर आगे बढ़ गए। तबीयत ठीक हुई तो महंत जी अमरता के ज्ञान की खोज में भटकने लगे। इसी दौरान उनकी मुलाकात योगी निवृत्तिनाथ जी से हुई और उनके योग, आध्यात्मिक दर्शन तथा नाथ पंथ के विचारों से महंत जी प्रभावित होते चले गए।
90 के दशक में हुई योगी आदित्यनाथ से मुलाकात
महंत अवैद्यनाथ राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय होने के कारण उत्तराखंड के इलाकों में प्रवचन और मंदिर आंदोलन के प्रचार किया तो उन पर और गोरखनाथ मठ पर सरकार का शिंकजा कसा तो उन्हें समझ आ गया कि अपना आधिपत्य बनाने के लिए सत्ता में बने रहना जरूपी है। इसके बाद वह पहली बार 1962 में गोरखपुर की मनीराम विधानसभा क्षेत्र से विजयी होकर उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुंचे और लगातार 1977 तक विजयी होते रहे। 1980 में महंत अवैद्यनाथ ने मीनाक्षीपुरम में हुए धर्म परिवर्तन से विचलित होकर राजनीति से संन्यास लेने का ऐलान किया और हिंदू समाज की सामाजिक विषमता को दूर करने में लग गए। इस मंडल में वह इकलौते शख्स थे जिन्होंने पांच बार विधानसभा तथा तीन बार लोकसभा का चुनाव जीता। यहां तक कि ‘जनता लहर’ में भी वह अपराजेय रहे।
बनारस में डोमराज के घर खाना खाया
महंत अवैद्यनाथ मीनाक्षीपुरम में हुए धर्म परिवर्तन से विचलित हो गए। इसके बाद 8 मार्च, 1994 को उन्होंने हिंदू समाज की सामाजिक विषमता को दूर करने के लिए काशी के डोमराजा सुजीत चौधरी के घर उनकी मां के हाथों का भोजन खाकर उन्होंने छुआछूत की धारणा पर जोरदार चोट की। पटना के महावीर मंदिर में दलित पुजारी की प्रतिष्ठा का प्रयास किया।
राजनीति से संन्यास लेने के बाद फिर से लड़ा चुनाव
1989 में वी पी सिंह के अगुवाई में लोकसभा का चुनाव लड़ा जा रहा था। उसी समय देश में हिंदुओं की दशा देखकर चुनाव में उतरने का ऐलान किया। 1989 से लेकर 1998 तक वह लगातार सांसद बनते रहे। 1998 में उन्होंने गोरक्षपीठ के साथ-साथ गोरखपुर की सांसदी भी योगी आदित्यनाथ को सौंप दी।
‘जनता लहर’ में भी वह अपराजेय रहे
लोग बताते है कि महात्मा गांधी की हत्या के बाद जिस तरह से उन पर और गोरखनाथ मठ पर सरकार का शिंकजा कसा तो उन्हें समझ आ गया कि अपना आधिपत्य बनाने के लिए सत्ता में बने रहना जरूरी है। इसके बाद वह पहली बार 1962 में गोरखपुर की मनीराम विधानसभा क्षेत्र से विजयी होकर उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहुंचे और लगातार 1977 तक विजयी होते रहे। 1980 में महंत अवैद्यनाथ ने मीनाक्षीपुरम में हुए धम परिवर्तन से विचलित होकर राजनीति से सन्यास लेने का ऐलान किया और हिंदू समाज की सामाजिक विषमता को दूर करने में लग गए। इस मंडल में वह एकलौते शख्स थे जिन्होंने पांच बार विधानसभा तथा तीन बार लोकसभा का चुनाव जीता। यहां तक की ‘जनता लहर’ में भी वह अपराजेय रहे। 12 सितंबर, 2014 को महंत अवैद्यनाथ पंचतत्व में विलीन हो गए।
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डॉ. बीएल आर्य
राष्ट्रीय अध्यक्ष, लोक पहल
पूर्व कुलसचिव, डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा
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