प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के यूक्रेन दौरे से शांति की उम्मीद जगी है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने कहा है कि दूसरा यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन होना ही चाहिए। अच्छा होगा अगर यह ग्लोबल साउथ के देशों में से किसी एक में हो। हम भारत में वैश्विक शांति शिखर सम्मेलन आयोजित कर सकते हैं। भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। इस बारे में सऊदी अरब, कतर, तुर्किये और स्विटजरलैंड के साथ भी बातचीत चल रही है। दरअसल, पहला शांति शिखर सम्मेलन जून में स्विट्जरलैंड में आयोजित किया गया था, जिसमें 90 से अधिक देशों ने हिस्सा लिया था। हालांकि, तब यह शांति सम्मेलन पूरी तरह से विफल हो गया था। इसके फेल होने की एक बड़ी वजह जेलेंस्की की एक गलती भी थी। यह पहली बार है जब युद्ध में फंसे दो देशों में से एक ने शांति की पहल के लिए भारत पर भरोसा जताया है।
आइए- समझते हैं कि आखिर क्या वजह है कि यूक्रेन ने शांति शिखर की मेजबानी के लिए भारत का नाम लिया है। यह भी समझेंगे कि पिछला शांति सम्मेलन क्यों फेल हो गया था?
जब पीएम मोदी ने कहा कि मैं शांति का संदेश लेकर आया हूं, तभी से बढ़ा भरोसा
जेलेंस्की ने मीडिया से कहा है कि उन्होंने पीएम मोदी से भारत की मेजबानी में दूसरे यूक्रेन शिखर सम्मेलन आयोजित किए जाने के बारे में बात की है। जेलेंस्की ने भारत के साथ व्यापार बढ़ाने की इच्छा जताते हुए कहा कि वह चाहते हैं कि भारत के साथ वस्तुओं का कारोबार तीन से पांच गुना बढ़े। यूक्रेनी राष्ट्रपति ने कहा कि उन्होंने शुक्रवार को मोदी के साथ बैठक के दौरान पिछले शांति शिखर सम्मेलन पर चर्चा की थी। वार्ता के दौरान पीएम मोदी ने जेलेंस्की से कहा कि मैं शांति का संदेश लेकर आया हूं। मोदी ने जेलेंस्की को पिछले महीने मॉस्को में रूसी राष्ट्रपति के साथ हुई बैठक की बातें भी बताईं।
क्यों फेल हो गया था पिछला शांति शिखर सम्मेलन
डॉ. धनंजय त्रिपाठी कहते हैं कि इसी साल 15-16 जून को स्विट्जरलैंड में बहुचर्चित यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ। इसका मुख्य मकसद जेलेंस्की के शांति सूत्र के पीछे वैश्विक बहुमत को एकजुट करना था। इसमें यह मांग की गई थी कि यूक्रेन के पूरे क्षेत्र से रूस की वापसी और युद्ध अपराधों के लिए पुतिन की सरकार पर मुकदमा चलाने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण का गठन शामिल। हालांकि, यह शिखर सम्मेलन फेल हो गया क्योंकि इसमें की गई मांगों पर आमराय नहीं बन पाई। वैसे भी ऐसे समझौते केवल युद्ध के मैदान पर जीत के बाद ही किए जा सकते हैं।
रूस को शामिल न करने से समझौता हुआ बेमानी
इस सम्मेलन में रूस को शामिल न करना भी बड़ी गलती थी क्योंकि यूक्रेन के साथ जंग रूस ही कर रहा था। ऐसे में बिना रूस के ऐसा सम्मेलन जेलेंस्की के शांति सूत्र की एक तरह से मौत थी। शिखर सम्मेलन में शामिल 81 देशों को संभावित समझौते की रूपरेखा भी नहीं बताई गई थी। इसमें केवल तीन गौण मुद्दों को शामिल किया गया। यूक्रेन का अनाज निर्यात, परमाणु ऊर्जा स्टेशनों की सुरक्षा और युद्ध क्षेत्र से रूस की ओर से बनाए गए युद्ध बंदियों और यूक्रेनी बच्चों की रूस से वापसी।
भारत, ब्राजील और सऊदी अरब ने नहीं किए थे समझौते पर दस्तखत
उस वक्त ब्राजील, भारत और सऊदी अरब जैसे प्रमुख देशों ने इस शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने से परहेज किया। उनका तर्क था कि रूस के साथ शांति स्थापित करने के उद्देश्य से बनाए गए मंच का रूस की गैर मौजूदगी में कोई मतलब नहीं है। चीन ने भी इससे दूरी बना ली थी। यहां तक कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी इस सम्मेलन को अपना समर्थन नहीं दिया था। उन्होंने तब खुद जाने के बजाय उपराष्ट्रपति कमला हैरिस को भेजा।
जेलेंस्की की एक बदजुबानी से फेल हो गया था सम्मेलन
2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया था तब जेलेंस्की और उनकी सरकार के सदस्यों ने इस हमले को रूस की ओर से छेड़े गए औपनिवेशिक युद्ध के शिकार के रूप में पेश किया था, ताकि ग्लोबल साउथ की सहानुभूति हासिल की जा सके। मगर, उस वक्त दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील और यहां तक कि भारत ने भी यूक्रेन के इस खोखले तर्क को नजरअंदाज कर दिया था। क्योंकि सबको यह याद था कि जून में सिंगापुर में आयोजित एक सुरक्षा सम्मेलन में जेलेंस्की ने खुद को सभ्य दुनिया का देश बताया था। इसी बात पर विकासशील देश भड़क गए थे, क्योंकि ब्रिटेन जैसे यूरोपीय देशों ने खुद को सभ्य ही बताकर दुनिया के कई देशों को गुलाम बनाया था।
पहले मोदी-पुतिन के गले मिलने पर जेलेंस्की ने किया था विरोध
बीते जुलाई में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रूस के दौरे पर गए थे। यूक्रेन में रूसी हमले के बाद पीएम मोदी का यह पहला रूस दौरा था। मॉस्को पहुंचते ही पीएम मोदी और रूसी राष्ट्रपति पुतिन एक दूसरे से गले मिले तो पश्चिम के मीडिया में इसकी जमकर आलोचना हुई। पुतिन और मोदी का गले मिलना यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की को रास नहीं आया था।
जेलेंस्की ने नौ जुलाई 2024 को इस पर आपत्ति जताते हुए कहा था, आज रूस के मिसाइल हमले में 37 लोग मारे गए। इसमें तीन बच्चे भी शामिल थे। रूस ने यूक्रेन में बच्चों के सबसे बड़े अस्पताल पर हमला किया। एक ऐसे दिन दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता का दुनिया के सबसे खूनी अपराधी से मॉस्को में गले लगाना शांति स्थापित करने की कोशिशों के लिए बड़ी निराशा की बात है।
भारत और यूक्रेन के संबंधों में लगातार हो रहा इजाफा
सार्क यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. धनंजय त्रिपाठी के अनुसार, बीते 25 सालों में भारत और यूक्रेन के व्यापारिक संबंध लगातार बढ़ ही रहे हैं। भारत के विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 2021-22 वित्तीय वर्ष में दोनों देशों के बीच 3.3 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था। भारत कृषि के क्षेत्र में यूक्रेन की महारत का भी लाभ उठा सकता है। युद्ध से पहले भारत यूक्रेन से सूरजमुखी तेल का आयात करता था। धनंजय त्रिपाठी बताते हैं कि भारत का तकरीबन 75 फीसदी सूरजमुखी का तेल यूक्रेन से आता है। वहीं, करीब 20 हजार भारतीय स्टूडेंट्स यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे। ऐसे में भारत के लिए जितना जरूरी रूस है, उतना ही जरूरी यूक्रेन भी है। यही वजह है कि मोदी ने कहा-युद्ध और शांति, हम शांति के पक्ष में खड़े हैं।
मोदी ने यूक्रेन को हमेशा दी मानवीय मदद
पीएम मोदी ने कई मंचों से शांति और मानवता की बात की है। भारत यूक्रेन में मानवीय मदद पहुंचाता रहा है। युद्ध के दौरान मदद के तौर पर भारत से करीब 135 टन सामान यूक्रेन भेजे गए, जिनमें दवाएं, कंबल, टेंट, मेडिकल उपकरण से लेकर जनरेटर तक शामिल हैं।
मोदी ने युद्ध के बीच शांति की पहल के लिए बढ़ाया हाथ
जिस वक्त मोदी का यूक्रेन दौरा तब हुआ है, जब कुछ ही समय पहले जुलाई में 32 नाटो देश अमेरिका की अगुवाई में वॉशिंगटन में हुई बैठक में शामिल हुए। मोदी अपने दौरे से यह संदेश दिया है कि भारत भले ही रूस का परंपरागत दोस्त है, मगर इंसानियत के मामले में वह यूक्रेन के साथ है। रूस-यूक्रेन के युद्ध शुरू होने से पहले करीब 20,000 भारतीय छात्र यूक्रेन की यूनिवर्सिटीज में पढ़ रहे थे। फरवरी, 2022 में रूसी आक्रमण के बाद भारत, यूक्रेन और पोलैंड ने ‘ऑपरेशन गंगा’ के तहत वहां फंसे करीब 4 हजार भारतीय छात्रों को मिलकर निकाला था।
जेलेंस्की ने कहा, भारत में बैठक करके होगी खुशी
मीडिया से बातचीत में जेलेंस्की ने कहा, जब आप रणनीतिक साझेदारी या कुछ बातचीत शुरू करते हैं, तो आपको समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। इसलिए मुझे लगता है कि फिर से मुलाकात करना अच्छा रहेगा और अगर हमारी बैठक भारत में होती है तो मुझे खुशी होगी। मुझे काफी जरूरत है कि भारत हमारे पक्ष में रहे।
जेलेंस्की ने भारतीय पत्रकारों से बातचीत में कहा- मैंने आपके बड़े और महान देश के बारे में बहुत कुछ पढ़ा है। यह बहुत दिलचस्प है इसलिए जब आपकी सरकार, प्रधानमंत्री (मोदी) मुझसे मिलना चाहेंगे, तब भारत आने पर मुझे खुशी होगी। जेलेंस्की ने कहा, प्रधानमंत्री मोदी पुतिन के मुकाबले शांति के ज्यादा समर्थक हैं। समस्या यह है कि पुतिन (शांति) नहीं चाहते।
साभार सहित NBT
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