ब्रजराज कौ नाम रटै रसना, बस राधे – राधे गाय रही, सिगरौ ब्रजधाम कन्हैया की मुरली के गीत सुनाय रही

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Mathura (Uttar Pradesh, India) मथुरा। शब्दोत्सव फाउन्डेशन आगरा द्वारा आयोजित ऑनलाइन परिचर्चा संगोष्ठी को सम्बोधित करते हुए अष्टछाप कवि – परम्परा के प्रतिनिधि डा0 भगवान मकरन्द ने अष्टछाप – कवियों के उद्धरण प्रस्तुत कर ब्रज साहित्य की महत्ता का वर्णन किया। कला समीक्षक एवं शास्त्रीय गायक मधुकर चतुर्वेदी ने संगीत प्रस्तुतियों द्वारा ब्रजभूमि का महिमा-गान किया। सुप्रसिद्ध कवि एवं संस्कार भारती के महामंत्री डा0 अनुपम गौतम ने ब्रज की लोक कलाओं के पुनरुत्थान की आवश्यकता पर बल दिया।

ब्रज में अनेक ऐसे स्थान हैं जो संस्कृति एवं पर्यटन विभाग की दृष्टि से उपेक्षित हैं

संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया ने कहा कि ब्रज-पर्यटन आधुनिक शैली में निर्मित विशाल मन्दिरों तक सिमट कर रह गया है। ब्रज में अनेक ऐसे स्थान हैं जो संस्कृति एवं पर्यटन विभाग की दृष्टि से उपेक्षित हैं। इनका समुचित विकास किया जाय तो धार्मिक भावना के अतिरिक्त पर्यटकों के आकर्षण की दृष्टि से भी ब्रज को पर्यटन मानचित्र पर शीर्षस्थ स्थान प्राप्त हो सकेगा।

       संगोष्ठी का संचालन करते हुए सुप्रसिद्ध कवयित्री डा0 रुचि चतुर्वेदी ने किया। उनकी सुमधुर वाणी से निसृत : कविता –

                        ब्रजराज कौ नाम रटै रसना, बस राधे – राधे गाय रही,

                        सिगरौ ब्रजधाम कन्हैया की मुरली के गीत सुनाय रही।

के साथ संगोष्ठी का समापन हुआ।

Dr. Bhanu Pratap Singh