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कुलपति प्रो. के.एस. राना ने भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने के लिए दिया रामबाण सुझाव

साक्षात्कार

दवाई की तरह नोटों पर भी एक्सपायरी डेट लिखी जाए

अफसर सबसे बड़े बेईमान हैं, नेता खामाखाम में बदनाम

 

डॉ. के.एस.राना के माम से प्रसिद्ध कुलपति प्रोफेसर कृष्ण शेखर राना ने भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने के लिए रामबाण उपाय बताया है। उनका कहना है कि दवाई की तरह रुपया पर भी अवसान तिथि (एक्सपायरी डेट) लिख दी जाए। ऐसा करने से व्यक्ति नोटों की जमाखोरी नहीं कर पाएगा। विदेशी बैंकों में भी पैसा जमा नहीं कर पाएगा। प्रो. के.एस. राना आगरा आए तो लाइव स्टोरी टाइम के संपादक डॉ. भानु प्रताप सिं से उन्होंने इस विषय पर बातचीत की। यह भी कहा कि इस सुझाव के बारे में केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को लिखित में भेजेंगे। उन्होंने खुलकर कहा है कि अफसर सबसे बड़े बेईमान हैं, नेता तो खामाखाम में बदनाम है। बता दें कि प्रो. के.एस. राना लगातार पांच बार से कुलपति हैं। देश के सर्वाधिक समर्पित और निष्ठावान कुलपति के रूप में चयनित हुए हैं। वे जाने-माने शिक्षाविद और पर्यावरणविद हैं। प्रो. के.एस. राना के सुझाव पर ही मानव संसाधन विकास मंत्री का नाम शिक्षा मंत्री किया गया है। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश-

 

डॉ. भानु प्रताप सिंहः भ्रष्टाचार के बारे में क्या विचार हैं?

प्रो. के.एस. रानाः सौभाग्य की बात यह है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ डेडली ऑनेस्ट हैं। उन्हें पैसे से किसी भी तरह का कई लगाव नहीं है। लेकिन भ्रष्टाचार हमारे लोगों के खून में रंग गया है। आदमी किसी भी कीमत पर दो नम्बर का पैसा बनाना चाहता है। गैस के सिलेंडर, मिट्टी का तेल, राशन की दुकान सब भ्रष्टाचार में चलती थीं। इस सरकार ने इन सब पर लगाम लगाई है। वास्तविकता यह है कि मोदी जी (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी) ने अथक प्रयास किए हैं भ्रष्टाचार रोकने के। संपत्ति का मामला अभी भी ऐसा है कि अधिकतम पैसा दो नम्बर का निकलता है। इसे आधार से लिंक करने की योजना चल रही है। संभव है कि इससे सुविधाजनक तरीक से भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी। मेरा सोचना यह है कि भ्रष्टाचार पर स्थाई लगाम लगाने का तरीका यह हो सकता है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए आयकर विवरणी भरना अनिवार्य कर दिया जाए। एक पेज का रिटर्न फाइल हो। इससे हर किसी की सपत्ति रिकॉर्ड पर आ जाएगी।

 

डॉ. भानु प्रताप सिंहः इससे क्या होगा, पैसा तो दो नम्बर का खूब चल रहा है?

प्रो. के.एस. रानाः दो नम्बर के पैसे का प्रचलन रोकने के लिए सुझाव है कि नोट पर अवसान तिथि (एक्सपायरी डेट) लिख दी जाए, तो तीन, चार, पांच साल के लिए हो सकती है। इसके बाद यह नोट खाते में जमा हो जाएगा और दूसरा मिल जाएगा। व्यक्ति के सभी संसाधन आधार कार्ड से लिंक हो गए तो नोटों की जमाखोरी नहीं कर पाएगा। आप देख रहे हैं कि प्रवर्तन निदेशालय (ई.डी.) के छापे जहां भी पड़ रहे हैं, चाहे वह कांग्रेस शासित हो या भाजपा शासित, नोटों के भंडार मिल रहे हैं। रिश्वतखोर पैसा जमा करते हैं। सोना और चांदी में निवेश करते हैं। प्रधानमंत्री ने नोटबंदी की। हमें उम्मीद थी कि 13.5 लाख करोड़ नोट मिलेंगे लेकिन 15.5 करोड़ नोट आए। इसके बाद भी पैसा पड़ा रह गया। कुछ नेपाल में चला गया। जैसे दवाइयों पर एक्सपायरी होती है, उसी तरह से नोट पर लिख दी जाए। इसके बाद नोट की जमाखोरी नहीं की जा सकती है। नोट को निर्धारित अवधि तक खर्च करना ही पड़ेगा। किसी विदेशी बैंक में भी जमा नहीं कर सकता है क्योंकि निर्धारित अवधि के बाद नोट कागज का टुकड़ा बनकर रह जाएगा।

 

डॉ. भानु प्रताप सिंहः नोटबंदी से हाहाकार मच गया था। नोट जमा करने के लिए लाइन में लगे लोगों की मौत हो गई थी। हर पांच साल बाद वही स्थिति बन सकती है?

 

प्रो. के.एस. रानाः नोट को पांच साल के बीच में कभी भी बदल सकते हैं। इसके लिए छह माह का समय दे सकते हौं। नोटबंदी के समय थोड़ी जल्दबाजी की गई थी। उस समय कुछ परिस्थितियां थीं, जो मेरे संज्ञान में हैं।

 

डॉ. भानु प्रताप सिंहः क्या किसी देश में नोट पर एक्सपायरी डेट लिखने की परंपरा है?

प्रो. के.एस. रानाः अन्य देशों में हमारे यहां जैसा भ्रष्टाचार नहीं है। हिन्दुस्तान की आबादी 140 करोड़ है। अन्य छोटे देश हैं।

 

डॉ. भानु प्रताप सिंहः ऐसा लगता है कि देश में अफसर अधिक रिश्वतखोरी करते हैं?

प्रो. के.एस. रानाः अफसर तो सबसे बड़ा बेईमान है देश का। नेता कुछ भी नहीं है। नेता को बेईमानी अफसर ही सिखाता है। फाइल तो नीचे से चलती है, ऊपर स्वीकृत होती है। इसी कारण कुछ मुख्यमंत्री साइन ही नहीं करते हैं। सिस्टम नेताओं के हाथ में नहीं है। नेता कहने को बदनाम हैं। चुनाव में पैसा कहां से लाना है, यह अलग बात है। भ्रष्टाचार का पैसा अफसरों के पास है।

 

डॉ. भानु प्रताप सिंहः भ्रष्टाचार का संबंध क्या सदाचार और नैतिकता से नहीं है?

प्रो. के.एस. रानाः सदाचार को आत्मसात कितने लोग कर रहे हैं। यह ठीक है कि पैसा बहुत कुछ है लेकिन पैसा सबकुछ नहीं है, यह मानसकिता अगर बना ली जाए निश्चित रूप से सुधार आएगा। आचरण तब सुधरेगा जब आप पैसे की तरफ से अपना मोह हटा लेंगे। अगर आप पैसे को ही सबकुछ मान लेंगे तब तक सदाचारी नहीं बन सकते हैं।

 

डॉ. भानु प्रताप सिंहः राजनीति में लोग आते ही भ्रष्टाचार करने के लिए हैं?

प्रो. के.एस. रानाः अब राजनीति उद्योग बन गया है। नेता जी चुनाव में भरपूर पैसा खर्च करते हैं और फिर इसे निकालने के लिए काम करते हैं। चुनाव में खर्च किया गया पैसा वास्तव में इनवेस्टमेंट हो गया है। पहले जनसेवा के लिए राजनीति की जाती थी। आगरा से हुकुम सिंह विधायक थे। हुकुम सिंह की पहचान फटा पाजामा थी। मैंने ऐसे नेता देखे हैं जिनके पास तीन जोड़ी से अधिक कपड़े नहीं होते थे। मैंने कर्पूरी ठाकुर, जार्ज फर्नांडीज की जीवन अपनी आंखों से देखा है। दो जोड़ी कपड़े होते थे। एक जोड़ी रात में ही धोते और सुखाते थे। तकिए के नीचे रखकर सोते ताकि प्रेस हो जाए।

 

डॉ. भानु प्रताप सिंहः आपने चौ. चरण सिंह की जीवनी लिखी है, उनका जीवन किस तरह का था?

प्रो. के.एस. रानाः चौ. चरण सिंह जब मंत्री पद की शपथ लेने गए, तब उन्होंने शेरवानी सिलवाई। जब मैं उनकी बायोग्राफी लिख रहा था तो उनके तुगलक रोड, दिल्ली स्थित निवास पर जाता था। उनके यहां मेरठ की निवाड़ से बुने हुए पलंग पड़े हुए थे। लाल बहादुर शास्त्री जी के बारे में भी यही था। उन लोगों का जीवन तो संतों वाला जीवन था।

 

डॉ. भानु प्रताप सिंहः पहले और अब के नेताओं में कोई अंतर आया है क्या?

प्रो. के.एस. रानाः पहले नेता जनता के बीच में रहते थे। जनता की सेवा तपस्या की तरह करते थे। तब सांसद या विधायक बनते थे। अब ऐसे नेता हैं कहां। अब तो ऊपर से थोपे जा रहे हैं। अब नेता कोई नहीं, एम.एल.ए. या एम.पी. हैं। पहले इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर चुनाव होता था और आज मोदी जी के नाम पर चुनाव हो रहा है। मोदी जी अच्छे लोगों को आगे ला रहे हैं लेकिन इसमें बहुत समय लगेगा।

 

Dr. Bhanu Pratap Singh