वंदे मातरम् 150 वर्ष: यूपी विधानसभा में गूंजा राष्ट्रबोध, सीएम योगी ने बताया स्वतंत्रता चेतना का अमर मंत्र

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लखनऊ। राष्ट्रगीत वंदे मातरम् के 150 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर सोमवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा में विशेष चर्चा सत्र आयोजित किया गया। इस दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम की चेतना, क्रांतिकारियों के साहस और राष्ट्र के आत्मसम्मान का जीवंत प्रतीक है।

उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में संभवतः उत्तर प्रदेश पहली विधानसभा है, जहां इस ऐतिहासिक विषय पर इतनी व्यापक और सारगर्भित चर्चा हो रही है। यह आयोजन किसी वर्षगांठ का औपचारिक कार्यक्रम नहीं, बल्कि भारत माता के प्रति राष्ट्रीय कर्तव्यों की पुनर्स्मृति का अवसर है।

स्वाधीनता संघर्ष की चेतना का शाश्वत स्वर

मुख्यमंत्री ने कहा कि वंदे मातरम् का सम्मान मात्र भावनात्मक अभिव्यक्ति नहीं, बल्कि हमारे संवैधानिक मूल्यों और राष्ट्रीय दायित्वों का बोध कराता है। यह राष्ट्र की आत्मा, संघर्ष और संकल्प का प्रतीक है—एक ऐसा मंत्र, जिसने पीढ़ियों को देश के लिए समर्पण की प्रेरणा दी।

औपनिवेशिक दमन के दौर में उम्मीद की लौ

उन्होंने बताया कि जब वंदे मातरम् अपनी रजत और स्वर्ण जयंती मना रहा था, तब देश ब्रिटिश हुकूमत के अधीन था। 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर की विफलता के बाद दमन, काले कानून और अत्याचार चरम पर थे, पर वंदे मातरम् ने देश की सुप्त चेतना को जीवित रखा। कांग्रेस अधिवेशनों में स्वतंत्रता की चेतना को स्वर मिला और वर्ष 1896 में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इसे पहली बार स्वरबद्ध कर देशभर में गूंजाया।

राष्ट्रबोध जगाने वाली अमर रचना

मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि वंदे मातरम् जब शताब्दी के पड़ाव पर था, तब देश ने आपातकाल जैसा कठिन दौर भी देखा—एक ऐसा समय, जिसे इतिहास कभी भुला नहीं सकता। आज 150 वर्ष पूरे होने पर भारत आत्मविश्वास के साथ विकसित भारत की ओर अग्रसर है और राष्ट्रगीत के रचयिता बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय के सपनों को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

1857 के बाद जागी राष्ट्रीय आत्मा

मुख्यमंत्री ने 1857 के प्रथम स्वातंत्र्य समर का उल्लेख करते हुए कहा कि बैरकपुर के मंगल पांडेय, गोरखपुर के शहीद बंधु सिंह, मेरठ के धन सिंह कोतवाल और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जैसे वीरों के संघर्ष के बाद उत्पन्न हताशा के दौर में वंदे मातरम् ने राष्ट्र की सोई आत्मा को जगाया। ब्रिटिश शासन में डिप्टी कलेक्टर रहते हुए बंकिमचंद्र ने जनभावनाओं को शब्द देकर देश को एक सूत्र में बांधा।

औपनिवेशिक मानसिकता के विरुद्ध सांस्कृतिक प्रतिकार

मुख्यमंत्री के अनुसार, वंदे मातरम् औपनिवेशिक मानसिकता के प्रतिकार का सशक्त माध्यम बना। भारत माता केवल भूभाग नहीं, बल्कि हर भारतीय की भावना हैं। ‘सुजलाम, सुफलाम्, मलयज-शीतलाम्, शस्य-श्यामलाम् मातरम्’ जैसी पंक्तियों ने प्रकृति, समृद्धि, सौंदर्य और शक्ति को एक साथ रूपायित कर भारतीय मानस में राष्ट्रबोध का संचार किया।

Dr. Bhanu Pratap Singh