शरद कुमार गुप्ता संग कीजिए 9500 किलोमीटर की चार धाम रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी, द्वारिकाधीश और बद्रीनाथ के साथ 24 तीर्थों की यात्रा

साहित्य

“दिव्य धामः लौकिक से अलौकिक यात्रा” पुस्तक का लोकार्पण

डॉ. भानु प्रताप सिंह

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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. क्या आपने चार धाम यात्रा की है? अगर की है तो आप भाग्यशाली हैं। अगर किसी कारण से नहीं की है तो फिकर नॉट। शरद कुमार गुप्ता के साथ आप 18 दिन की 9500 किलोमीटर लंबी चार धाम यात्रा कर सकते हैं। वह भी सिर्फ 96 पेज पढ़कर। शरद कुमार गुप्ता ने एक दल के साथ चार धाम यात्रा की है। अपना यात्रा वृतांत “दिव्य धामः लौकिक से अलौकिक यात्रा” पुस्तक में लिखा है। इस पुस्तक का लोकार्पण डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय के खंदारी परिसर स्थित सेठ पदमचंद जैन प्रबंध संस्थान में किया गया। आगरा शहर के साहित्यप्रेमी जुटे। सभी ने स्व. रोशनलाल गुप्त करुणेश परिवार की एकता को सराहा।

देश के सबसे बड़े घुमक्कड़ हैं राहुल सांस्कृत्यान। उन्होंने कई दशकों तक यात्रा की और यात्रा वृतांत लिखे हैं। उन्होंने सबको संदेश दिया है-

‘सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ

जिंदगानी गर रही तो नौजवानी फिर कहाँ?’

मुश्किल यह है कि हम भारतीय नौजवानी में धनार्जन में व्यस्त हो जाते हैं और सैर करना भूल जाते हैं। इसलिए अधिकांश लोग रिटायरमेंट के बाद ही सैर करने की सोचते हैं। इस बीच अगर स्वास्थ्य खराब हो गया तो सबकुछ धरा रह जाता है। ईश कृपा से अपने शरद कुमार गुप्ता भले चंगे हैं। उनकी पत्नी गीतिका भी भली चंगी हैं। सो निकल पड़े सैर पर और ट्रेन व बस से चार धाम यात्रा कर डाली। 10 परिजनों का समूह। अनुमान लगा सकते हैं कि यात्रा कितनी रोमांचक और आनंदित रही होगी।

शरद गुप्ता का सम्मान करतीं साहित्य साधिकाएं।

शरद कुमार गुप्ता कहते हैं- पग चले तो जग चले। यही संदेश हमारा मार्गदर्शक बना। चार धाम धरा पर हैं, ये तो जग जाहिर है, किंतु स्वर्ग भी धरा पर ही है, ये भी हमें चारधाम तीर्थाटन से अवगत हो चुका है। प्रभु की अनंत कृपा का फल माता-पिता के रूप में हम अपने घर में ही भगवान स्वरूप पाते हैं, लेकिन सुदूर धामों के प्रभु दर्शन लाभ से हमारे सात जन्म धन्य हो जाते हैं। अपने पूज्य पिताजी से अनुप्रेरित होकर इस यात्रा वृतांत को पुस्तक के रूप में संजोया है। इसमें भारत गौरव चार धाम यात्रा की 14 से 30 सितंबर, 2024 तक की परिक्रमा को क्रमबद्ध तरीके से लिपिबद्ध किया गया है।

वे कहते हैं- भोलेनाथ ने चार धाम यात्रा करवाई है। चारधाम के प्रसाद का बांटने की कोशिश है यह पुस्तक। उन्होंने यह पुस्तक अपने पिता करुणेश जी को समर्पित की है। सभी का आह्वान किया कि जीवन में एक बार चारधाम यात्रा अवश्य करें।

पुस्तक के लोकार्पण समारोह में सभी ने शरद कुमार गुप्ता की लेखन शैली को सराहा। तभी तो कैलाश मंदिर के महंत निर्मल गिरी गोस्वामी ने आशीष संदेश में कहा है-  यह कार्य साहित्य की दृष्टि से तो बेहतर है ही, साथ ही आध्यात्मिक दृष्टि से भी पुण्यकार्य है, कयोंकि इससे तीर्थ के पवित्र दर्शनों का सालों-साल तक पाठक का मन परिक्रमा करता रहेगा।

आभार प्रकट करते चंद्रशेखर गुप्त। साथ में संजय गुप्ता और शरद कुमार गुप्ता। मंचासीन हैं श्रुति सिन्हा, डॉ. गिरधर शर्मा, डॉ. राजेंद्र मिलन, महंत योगेश पुरीस सोम ठाकुर, डॉ. सुषमा सिंह।

श्री बिल्वकेश्वर नाथ मंदिर के मंहत सुनील कांत नागर और कपिल नागर का आशीष संदेश है- श्री विल्वकेश्वर नाथ माहादेव ने कृपा बरसाई और शरद कुमार गुप्ता को भारत के चारों धाम रामेश्वरम, जगन्नाथ पुरी, द्वारिकाधीश और बद्रीनाथ के साथ भगवान के ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

श्री मनकामेश्वर मठ मंदिर के महंतश्री योगेश पुरी महाराज ने लिखा है कि भाई शरद गुप्ता ने यात्रा के आध्यात्मिक स्वरूप को पुस्तक में लिपिबद्ध कर भगवद् प्रेमियों के लिए बड़ा ही सुंदर कार्य किया है। ये सनातनी तीर्थ यात्रा आमजन के लिए सुरक्षित करने का श्रेयस्कर प्रयास है।

कवि कुमार ललित ने काव्यमय भाषा में लिखा है- आप पृष्ठ पढ़ते जाइए और तीर्थस्थलों की सीढ़ी चढ़ते जाइए। भक्ति की धूप निकलेगी.. धीरे-धीरे भगवान आपके हृदय में उतरते जाएंगे।

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शरद कुमार गुप्ता का सम्मान करतीं निखिल प्रकाशन की नीरज शर्मा।

लोकार्पण समारोह में पुस्तक की समीक्षा प्रख्यात शिक्षाविद और साहित्यकार डॉ. सुषमा सिंह ने की। उन्होंने कहा- यात्रा वृतांत को लिपिबद्ध साहित्य सेवी ही कर सकता है। पुस्तक में 24 तीर्थस्थलों का क्रमवार वर्णन है। पाठक अपने आप को भी भ्रमण करता हुआ महसूस करता है। संदर्भित चित्रों से तो सीधे तौर पर यात्रा में ही प्रवेश कर जाता है। तीर्थस्थलों का ऐतिहासिक, भौगोलिक और आध्यात्मिक विश्लेषण करते हुए लेखक ने धार्मिक भावनाओं का आत्मसात कर आस्था को संबल प्रदान किया है। पुस्तक में आधुनिक श्रवण कुमार का दृष्टांत तो अत्यंत प्रेरणादायी है, जो अपने माता-पिता की इच्छा पूर्ति करने का अनुपम संदेश नई पीढ़ी को देता है।

निशिराज जैन ने ऐसा भजन सुनाया कि फिर और कुछ सुनने की इच्छा ही समाप्त हो गई- नाम न जाने धाम न जाने जाने न सेवा पूजा, जाने बस इतना जाने हम एक बिना नहीं दूजा, तुम धरती आकाश हमारे।

श्री मनकामेश्वर मंदिर के महंत योगेश पुरी ने खुशी जताई कि करुणेश परिवार कुछ न कुछ लिखता रहता है। उन्होंने यह भी कहा कि केदारनाथ जाने से पहले घर के बगल में मंदिर है, वहां तो चले जाओ। धर्म में आडंबर बहुत है। धर्म में धर्म के अलावा सब कुछ है। सनातन वह नहीं जो आज का युवा देख रहा है। ये पुस्तक गाइड के रूप में है।

उन्होंने कहा कि ई-स्टोरी से हमारी कल्पनाएं बंद हो जाती हैं। हम वही देख पाते हैं, हम वही सोच पाते हैं जो हमें दिख रहा होता है। आज के समय में बहुत सारे डॉक्टर ने कहा है कि बच्चों को सोशल मीडिया से दूर रखें, क्योंकि हम कुछ भी स्क्रोल करते तो हमारा दिमाग बंधा हुआ होता है। पुस्तक की महती भूमिका यह है कि जब पठन-पाठन करते हैं तो हमारी कल्पना शक्ति को विस्तार स्वरूप एक जगत मिलता है। हम कल्पना शक्ति का निर्माण करते हुए उस परिकल्पना में पहुंचते हैं जहां पर वेद स्वयं कहता है शिवसंकल्पमस्तु। वेद उद्घोष करता है, चलते रहो, चलते रहो, चलते रहो। मेरी यात्रा अनवरत चलती रहेगी। इस यात्रा के अनकहे अनुभव भी होंगे जिनका लेखनीबद्ध किया है शरद जी ने। आज के समय में इस परिवार के सभी लोग एक साथ हैं, यह बहुत बड़ी बात है।

समारोह में उपस्थित साहित्यप्रेमी

कवि अशोक अश्रु ने पुस्तक से संबंधित कई दोहे सुनाए-

  पावन मां की मंजरी सत्संगी संवाद

 गीता का प्रतिरूप सी रामायण अनुवाद

सुशील सरित ने रेल गीत सुनाया

रेल चली भई रेल चली छुक छुक छुक छुक रेल चली

बिछड़े हुए को फिर से मिलने देखो देखो रेल चली

 

रेल का है संसार अनोखा सब कुछ इसमें शामिल है

सबकी है यह सेवा करती इसका बहुत बड़ा दिल है

मौसम का कुछ असर नहीं वह सर्दी गर्मी या बरसात

रुकते कभी ना इसके पहिए चलते रहते हैं दिन रात

सबके लिए जगह है इसमें सब की खिलाती दिल की कली

 रेल चली भई रेल चली

बिछड़े हुए को फिर से मिलाने देखो देखो रेल चली

रेल चली भाई रेल चली

जाने-माने समाजसेवी सुनील विकल ने कहा कि कहा कि आज के सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक युग में साहित्य मिटता जा रहा है। तब यह पुस्तक हमारा मार्गदर्शन करेगी। उन्होंने गर्वपूर्वक कहा कि करुणेश परिवार आज भी एक साथ रहता है। इस किताब में यात्रा का जो विवरण दिया है वह हम सबको इस प्रकार की यात्राओं में जाने के लिए प्रेरित करेगा।

हिंदी विद्वान डॉक्टर मधुरिमा शर्मा राहुल सांकृत्यायन के निबंध अथातो घुमक्कड़ जिज्ञासा का उल्लेख करते हुए यात्रा की महत्ता प्रतिपादित की। उन्होंने कहा कि पूरा करुणेश परिवार लिखने में लगा हुआ है। इस पुस्तक को गाइड के रूप में भी देख सकते हैं। आने वाली पीढ़ी के लिए पुस्तक में बहुत कुछ है।

समारोह में उपस्थित साहित्यप्रेमी

साहित्यवेत्ता डॉक्टर शशि गुप्ता ने कहा कि शरद गुप्ता साहित्यिक क्षेत्र में वह नित नए नवीन आयाम स्थापित कर रहे हैं।

दर्शनों से सिद्धियां किसको मिली है

 जीवन का उद्धार केवल धर्म से है

मुख्य अतिथि राजेंद्र मिलन ने अपने अनुभव सुनाए। उन्होंने कहा कि मैंने प्रकृति का आनंद लेने के लिए यात्राएं कीं, धार्मिक उद्देश्य से नहीं। अशोक अश्रु के साथ मैंने अमरनाथ यात्रा करने का प्रयास किया, जो अधूरी रही। वह इसलिए कि मेरे मन में भक्ति भाव का अभाव था।

प्रसिद्ध गीतकार सोम ठाकुर ने अध्यक्षता करते हुए करुणेश जी को श्रद्धांजलि अर्पित की। उन्होंने दो गीत सुनाए-

दूरियां दूरियां दूरियां

तुम कहां हो बड़ी सर्दियां है

जिंदगी का यही सिलसिला है, जिसकी किस्मत में जो था मिला है

कहीं दूर बांहों में बांहों, उंगलियों में कहीं उंगलियां हैं

और

सागर चरण पखारे गंगा शीश चढ़ावे नीर

मेरे भारत की माटी है चंदन और अबीर

सौ-सौ नमन करूं मैं भैया सौ सौ नमन करूं

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पुस्तक प्रकाशक निखिल पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रीब्यूटर्स आगरा की ओर से नीरज शर्मा ने शरद गुप्ता का अभिनंदन किया। कवि अशोक अश्रु ने पुस्तक पर निर्मित दोहे सुनाए। मंच संचालक में सिद्धहस्त श्रुति सिन्हा ने सरस संचालन करके सबको मोहित कर दिया। मंजुला गुप्ता और गीतिका गुप्ता ने श्रुति सिन्हा का सम्मान किया। अंत में चंद्रशेखर गुप्त ने सभी का आभार प्रकट किया।

इस अवसर पर आचार्य डॉ. गिरधर शर्मा, यादराम सिंह वर्मा कविकिंकर, राज बहादुर सिंह राज, कमलेश नागर, संजय गुप्त, उमाशंकर मिश्र, डॉ. रेखा कक्कड़, डॉ. एपी सिंह, प्रकाश गुप्ता कवि, राजेश अग्रवाल, परमानंद शर्मा, डॉ. विनोद माहेश्वरी, रेखा गुप्ता, निरूपमा, मंजू गुप्ता, इंदल सिंह इंदु, असलम सलीमी, मोहन लाल शर्मा, डॉ. आभा चतुर्वेदी, आशीष शर्मा, सुभाष ढल, शिवम गोस्वामी, राजकुमारी, डॉ. शशि तिवारी, हरीश अग्रवाल ढपोरशंख, डॉ. रमेश आनंद, रेनू अग्रवाल, मुकेश वर्मा, कवि मुकुल कुमार, पवन कुमार गुप्ता, सुधीर कुमार गुप्ता, नंद नंदन गर्ग, योगेश चंद्र शर्मा, डॉ. राजीव शर्मा निसपृह, राजकुमार जैन, अवधेश उपाध्याय, रवींद्र वर्मा, बृजेश शर्मा, अजय शर्मा, डॉ. यशोधरा यादव, डॉ. रामेंद्र शर्मा, डॉ. हरवीर परमार तांतपुरिया, करन चौहान, पद्मावती पदम की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

Dr. Bhanu Pratap Singh