Today's death anniversary of famous Hindi writer Vishnu Prabhakar

हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक विष्णु प्रभाकर की पुण्‍यतिथि आज

साहित्य


हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक विष्णु प्रभाकर की आज पुण्‍यतिथि है। 29 जून 1912 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में जन्‍मे विष्णु प्रभाकर की मृत्‍यु 11 अप्रैल 2009 को दिल्‍ली में हुई।
विष्णु प्रभाकर की आरंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई। बाद में वे अपने मामा के घर हिसार चले गये जो तब पंजाब प्रांत का हिस्सा था।
घर की माली हालत ठीक नहीं होने के चलते वे आगे की पढ़ाई ठीक से नहीं कर पाए और गृहस्थी चलाने के लिए उन्हें चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के तौर पर सरकारी नौकरी करनी पड़ी, जहां उन्हें प्रतिमाह 18 रुपये मिलते थे। लेकिन मेधावी और लगनशील विष्णु ने मौका मिलते ही पढ़ाई शुरू की और हिन्दी में प्रभाकर व हिन्दी भूषण की उपाधि के साथ-साथ संस्कृत में प्रज्ञा और अंग्रेजी में बीए की डिग्री प्राप्त की।
विष्णु प्रभाकर पर महात्मा गाँधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्देश्य बना लिया, जो आजादी के लिए सतत संघर्षरत रही। अपने दौर के लेखकों में वे प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही।
विष्णु प्रभाकर ने पहला नाटक लिखा- हत्या के बाद, हिसार में नाटक मंडली में भी काम किया और बाद के दिनों में लेखन को ही अपनी जीविका बना लिया। आजादी के बाद वे नई दिल्ली आ गये और सितम्बर 1955 में आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक के तौर पर नियुक्त हो गये जहाँ उन्होंने 1957 तक काम किया। वर्ष 2005 में वे तब सुर्खियों में आए जब राष्ट्रपति भवन में कथित दुर्व्यवाहर के विरोध स्वरूप उन्होंने पद्म भूषण की उपाधि लौटाने की घोषणा की। उनका आरंभिक नाम विष्णु दयाल था। एक संपादक ने उन्हें प्रभाकर का उपनाम रखने की सलाह दी। विष्णु प्रभाकर ने अपनी लेखनी से हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया। उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं में अपनी लेखनी चलाई। 1931 में हिन्दी मिलाप में पहली कहानी दीवाली के दिन छपने के साथ ही उनके लेखन का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह आज आठ दशकों तक निरंतर सक्रिय है। नाथूराम शर्मा प्रेम के कहने से वे शरत चन्द्र की जीवनी आवारा मसीहा लिखने के लिए प्रेरित हुए जिसके लिए वे शरत को जानने के लगभग सभी सभी स्रोतों, जगहों तक गए, बांग्ला भी सीखी और जब यह जीवनी छपी तो साहित्य में विष्णु जी की धूम मच गयी। कहानी, उपन्यास, नाटक, एकांकी, संस्मरण, बाल साहित्य सभी विधाओं में प्रचुर साहित्य लिखने के बावजूद आवारा मसीहा उनकी पहचान का पर्याय बन गयी। बाद में अ‌र्द्धनारीश्वर पर उन्हें बेशक साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला हो किन्तु आवारा मसीहा ने साहित्य में उनका मुकाम अलग ही रखा।
-Legend News

Dr. Bhanu Pratap Singh