जापानी काव्य की कई सौ साल पुरानी काव्य शैली को ताँका कहते हैं जिससे हाइकू शैली के कविता लेखन का जन्म हुआ, ताँका -शब्द का अर्थ है लघुगीत। साहित्यिक इतिहास के अनुसार नौवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी के दौरान इसके विषय धार्मिक या दरबारी हुआ करते थे ।
हाइकु की संरचना 5+7+5+7+7=31वर्णों की होती है।
एक कवि प्रथम 5+7+5=17 भाग की रचना करता था तो दूसरा कवि दूसरे भाग 7+7 की पूर्त्ति के साथ शृंखला को पूरी करता था । फिर पूर्ववर्ती 7+7 को आधार बनाकर अगली शृंखला में 5+7+5 यह क्रम चलता;फिर इसके आधार पर अगली शृंखला 7+7 की रचना होती थी ।
इस काव्य शृंखला को रेंगा कहा जाता था । इस प्रकार की शृंखला सूत्रबद्धता के कारण यह संख्या 100 तक भी पहुँच जाती थी ।
ताँका पाँच पंक्तियों और 5+7+5+7+7= 31 वर्णों के लघु कलेवर में भावों को गुम्फित करना सतत अभ्यास और सजग शब्द साधना से ही सम्भव है ।
इसमें यह भ्रम नहीं होना चाहिए कि इसकी पहली तीन पंक्तियाँ कोई स्वतन्त्र हाइकु है । इसका अर्थ पहली से पाँचवीं पंक्ति तक व्याप्त होता है । ताँका -शब्द का अर्थ है लघुगीत । लयविहीन काव्यगुण से शून्य रचना छन्द का शरीर धारण करने मात्र से ताँका नहीं बन सकती । साहित्य का दायित्व बहुत व्यापक है अत: ताँका को किसी विषय विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता।
आइये पढ़ते हैं कविता ब्लॉगर कुसुम कोठारी की ये हाइकू रचनायें—
फाग पर ताँका
फाग पर ‘ ताँका ‘विधा की रचनाएँ ~
१. आओ री सखी
आतुर मधुमास
आयो फागुन
बृज में होरी आज
अबीर भरी फाग।
२. शाम का सूर्य
गगन पर फाग
बादल डोली
लो सजे चांद तारे
चहका मन आज।
३. उड़ी गुलाल
बैर भूलादे मन
खेलो रे खेलो
सुंदर मधुरस
मनभावन फाग ।
कुसुम कोठारी ।
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