Agra, Uttar Pradesh, India. जैन दादाबाड़ी, शाहगंज, आगरा में भगवान महावीर के पारणा का मार्मिक दृश्य जीवंत हो उठा। साध्वी वैराग्यनिधि श्री जी म0सा0 आदि ठाणा-3 भगवान महावीर की भूमिका में चंदनबाला के यहां आते हैं। वे देखते हैं कि चंदनबाला के चेहरे पर मुस्कान तो हो लेकिन आंसू नहीं। वे बिना पारणा लिए लौटने लगते हैं। यह देख रीटा ललवानी ने भजन के माध्यम से करुण पुकार की- द्वार से मत जाओ मेरे महावीर। उनके साथ चंदनबाला की भूमिका निभा रहे उषा वैद, सरला, चंद्रकला, कांता चौरड़िया, प्रीति लोढ़ा, रश्मि, मिलसी ललवानी, पारुल सिंघल, कुसुम सुराना, अंकित पाटनी ने भी भजन गाया। चंदना का आर्तनाद सुनकर हर कोई द्रवित हो गया। आर्तनाद सुन भगवान महावीर लौटे तो चंदनबाला के चेहरे पर प्रसन्नता का भाव भी आ गया। आँखों में आंसू तो थे ही। भगवान का कठोर अभिग्रह पूरा हुआ और पारणा किया। उड़द के बाकुले बोहराए। फिर तो परमात्मा की जय-जयकार होने लगी। हर हृदय भक्ति और श्रद्धा से सराबोर हो गया। भगवान महावीर के कठोर तप के बारे में जान श्रद्धालु नतमस्तक हो गए।
चंदनबाला की भूमिका निभाने वाली श्राविकाओं ने तेला का तप किया यानी तीन दिन से कुछ भी नहीं खाया था। बेड़ियों में जकड़ी हुई थीं। हाथ में सूप। सिर् पर कपड़ा बांधा हुआ था ताकि चंदनबाला की तरह केशरहित लगें। ऐसा लगा जैसे सचमुच की चंदनबाला पृथ्वी पर उतर आई हों ्र। श्राविकाओं ने यह भी दिखा दिया वे रंगकर्मी भी हैं।
इस अवसर पर साध्वी वैराग्य निधि महाराज ने कहा कि 5 महीने और 25 दिन बाद चंपा नरेश दधिवाहन की पुत्री वसुमति (चंदनबाला) ने प्रभु को उसी रूप में पारणा किया जिस रूप का अभिग्रह परमात्मा ने किया था। चंदनबाला भगवान महावीर के 36,000 साध्वी संघ की प्रमुख बनी। चंदन सी शीतलता ही सच्ची धार्मिकता है। भगवान् महावीर की प्रथम शिष्या और साध्वी बनने का सौभाग्य मिला चंदनबाला को। वे सचमुच चंदन सी शीतल
जैन श्वेताम्बर मूर्तिपूजक श्रीसंघ के अध्यक्ष राजुकमार जैन ने बताया कि 1 नवम्बर, 2022 के प्रवचन का विषय है- ‘महासती चंदना: क्या हम भगवान् बन सकते हैं?’ समय है प्रातः 9.15 से 10.15 बजे तक। पारणा एवं स्वल्पाहार लाभार्थी रहे अजय कोठाऱी (छोटू भाई) और बनीता कोठारी। आज का तेला का तप 17 श्रावक-श्राविकाओं ने किया। आयंबिल तप को उषारानी लोढ़ा ने आगे बढ़ाया।
इस अवसर पर विनय वागचर, प्रवीन, पंकज लोढ़ा, विमल जैन, अजय कोठारी, रॉबिन जैन, धीरज ललवानी, दिनेश, संजय चौरड़िया की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।
भगवान महावीर और चंदनबाला की पूरी कहानी
भगवान महावीर की साधना का 12 वां वर्ष चल रहा था। प्रभु ने अपने ज्ञान से जाना कि मेरे कर्मों का विशाल पर्वत अब भी विद्यमान है। समय कम है। ऐसा जानकर प्रभु महावीर ने अपनी जिंदगी का सबसे कठोर अभिग्रह किया। प्रभु महावीर ने प्रतिज्ञा की- मैं उस स्त्री से भोजन भिक्षा स्वरूप लूंगा जिसका सिर मुंडा हुआ हो, पांवों मे बेड़ियां हों, तीन दिन से भूखी हो, दाता का एक पैर देहरी के बाहर हो और एक पैर अंदर हो, भिक्षा देने के लिए उड़द के बाकुले हो, भिक्षा का समय बीत जाने पर द्वार के बीच खड़ी हो, दासी हो, राजकुमारी भी हो,आंखों में आंसु के साथ चेहरे पर मुस्कान भी हो।
प्रतिज्ञा लेने के उपरांत भगवान महावीर रोज भिक्षा के लिए निकलते थे परंतु ऐसा योग मिलना भी तो असंभव था। लोगों में कौतूहल मच गया। प्रभु रोज भिक्षा के लिए जाते हैं , लेकिन खाली हाथ ही वापस लौट आते हैं। ऐसा करते हुए प्रभु को 4 माह बीत गए। प्रभु ने इन 4 महीनों में अन्न का एक दाना तक नहीं खाया ।
उधर, महासाध्वी चंदनबाला (वसुमति) चंपा नरेश दधिवाहन की पुत्री थी। एक बार की बात है कौशांबी नरेश ने चंपा पर आक्रमण कर दिया । काकमुख नामक एक सैनिक ने राज्य नगर को लूटा और महारानी धारणी और वसुमति (चंदनबाला) को बंदी बना लिया। मार्ग मे सैनिक कुदृष्टि से महारानी की तरफ देखता है, महारानी अपने सतीत्व की रक्षा के लिए सैनिक के बुरे भावों को जानकर आत्महत्या कर लेती हैं। महारानी के आत्महत्या करने के पश्चात राजकुमारी वसुमति (चंदनबाला) भी ऐसा ही करने की धमकी देती है। राजकुमारी के मनोभावों को देखकर सैनिक का हृदय पिघल जाता है। सैनिक राजकुमारी वसुमति को अपने घर ले जाता है परंतु उसकी पत्नी के मना करने पर उससे चौराहे (दास-विक्रय स्थल) पर बोली लगाकर बेच देता है और धन प्राप्त कर अपनी पत्नी को प्रसन्न कर देता है।
नीलामी में सबसे अधिक बोली कौशांबी की गणिका लगाती है परंतु राजकुमारी उसके साथ जाने से मना कर देती है। राजकुमारी की सुकुमारिता और सद्गुणों से प्रभावित होकर एक श्रमण उपासक एक धनी व्यापारी द्वारा वेश्या को अधिक धन देकर वसुमति को अपने साथ ले गया।
धनवाह एक धर्मनिष्ठ व्यक्ति था, धनवाह की पत्नी मूला एक शंकालु स्त्री थी। ऐसे ही उसने ऐसी दिव्य कन्या को अपने घर की दहलीज लांघते देखा अपनी शंकालु स्वभाव के कारण वह गलत समझ बैठी। धनवाह और वसुमति में संबंध पिता और पुत्री का था। एक दिन सेठ अपने कारोबार के लिए नगर से बाहर चला गया। इस अवसर का लाभ उठाकर उसकी पत्नी मुला ने अपने सभी नौकरों को छुट्टी दे दी और अवसर पाकर वह और वसुमति अकेले हो गए।
उसने अपनी ईर्ष्या के कारण वसुमति के सुंदर वस्त्र उतरवाकर पुराने वस्त्र डलवा दिए। उसके सुंदर केशो को कटवा दिया गया , उसे एक अंधेरे कमरे में बिठाकर बेडियो से बांध दिया गया। सेठ की पत्नी उसे अंधेरे कमरे में बिठाकर खुद नगर से बाहर चली गई ।
वसुमति 3 दिन से भूखी प्यासी थी। सेठ जब अपना कारोबार का कार्य पूरा कर अपने घर वापस आया तो उसने वसुमति को पुकारा घर के अन्य नौकर चाकर और अपनी पत्नी को भी पुकारा परंतु किसी की आवाज भी नहीं आई। आश्चर्य ! उसे घर के अंदर से अंधेरे कमरे में से हल्की सी आवाज आई उसने उससे दरवाजे को खोला तो उसने वसुमति (चंदनबाला) को वहां पाया । उसने वसुमति की भूखी प्यासी अवस्था देखकर भोजन के लिए इधर-उधर देखा कोई व्यवस्था ने देखकर उसने उड़द के बांकुले वसुमति को आहार के लिए दिए और बेड़ियां कटवाने के लिए लोहार को लाने के लिए बाजार चला गया ।
भगवान महावीर को निराहार रहे 5 महीने और 25 दिन बीत गए थे आज 26 वां दिन था । प्रभु के 6 महीने की प्रतिज्ञा में सिर्फ 5 दिन ही बाकी थे ।
प्रभु महावीर उस घर कि तरफ बढ़े जिस घर में वसुमति कैद थी, भगवान महावीर को अपनी तरफ आता देखकर वसुमति के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गई। उत्साह भरी स्वरों में उसने प्रभु महावीर को भिक्षा के लिए कहा। हथकड़ी पड़े हाथों से उसने दीक्षा को बोहराना चाहा उसका एक पांव देहली के अंदर और एक पांव देहली के बाहर था। प्रभु महावीर ने अपने अभिग्रह कि सभी शर्तें लगभग पूरी हो गई थी, परंतु एक शर्त बाकी रह गई थी, प्रभु ने अपना अभिग्रह अधूरा मानकर मुड़ गए, प्रभु को मुड़ता हुआ देखकर वसुमति भावविह्ल हो गई अपने दुर्भाग्य पर तरस खाकर वसुमति रो पड़ी। प्रभु मेरे द्वार आए और खाली ही लौट गए। चंदनबाला की आंखों में आंसू आ गए। प्रभु महावीर ने मुड़कर देखा और दान के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया। चंदना की आंखों में आंसू थे और चेहरे पर प्रसन्नता का भाव था । चंदनबाला ने प्रभु महावीर को भिक्षा दी और स्वर्ग से देवताओं ने अहो दानम् , अहो दानम् का नाद किया। चंदनबाला के दान देने से प्रभु महावीर का 6 माह का अभिग्रह पूरा हो गया।
यही वसुमति (चंदनबाला) भगवान महावीर के 36,000 साध्वी संघ कि प्रमुख बनी। भगवान महावीर का यह कदम दासता से मुक्ति की ओर पहला कदम था। भगवान महावीर ने उस समय स्त्री को धार्मिक अधिकार प्रदान किए और सबसे प्रथम साक्ष्य इतिहास में यही था। चंदनबाला भगवान महावीर की प्रथम शिष्या बनी। वह जैन धर्म की प्रथम साध्वी थी। भगवान महावीर की तपस्या के प्रभाव से दास वर्ग को जीने का अधिकार मिल गया। चंदनबाला धर्म पर आरूढ़ होकर कठिन तपस्या की और सिद्ध – बुद्ध हो निवार्ण (मोक्ष) की प्राप्ति की।
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