जल की तरह तरल होता है जैन संतों का जीवन : जैनमुनि मणिभद्र

जल की तरह तरल होता है जैन संतों का जीवन : जैनमुनि मणिभद्र

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धर्म और पुण्य में अंतर समझने की जरूरत

जैन स्थानक, राजामंडी में प्रतिदिन हो रहे है प्रवचन

Agra, Uttar Pradesh, India. केसरी और मानव मिलन संगठन के संस्थापक जैन मुनि डा.मणिभद्र महाराज ने कहा है कि जैन संतों को जीवन जल की तरह तरल होता है। वे एक जगह नहीं ठहरते। चातुर्मास में चार महीने एक ही जगह उनका प्रवास होता है। इसके बाद वे एक -एक महीने हीं प्रवास करते हैं।

जैन स्थानक, राजामंडी में प्रवचन देते हुए मुनिवर ने कहा कि जैन मुनियों का जीवन 9 कल्प का कहलाता है। चार महीने का एक कल्प चातुर्मास में। उसके बाद एक-एक महीने का कल्प यानि प्रवास होता है। संतों के प्रवचन सुनने, दर्शन करने के लिए अन्य नगरों के श्रावक इंतजार करते हैं। इसलिए वे नगर-नगर भ्रमण करते हैं।
उन्होंने कहा कि आनंद गाथा पति, जो अब श्रावक बन गया था, उसके शहर में भी भगवान महावीर का आगमन हुआ। आनंद को आत्मा का मंथन का अवसर मिला। भगवान महावीर की वाणी सुनने का लाभ भी मिला।
जैन मुनि ने कहा कि अपने लिए तो तमाम लोग जीवन जीते हैं, लेकिन वही सच्चा साधक है, जो अपने जीवन के आनंद को और लोगों को भी बांटे। अर्थ, संपदा का जो संग्रह किया है, वह समाज को समर्पित कर दें। यह सब आनंद श्रावक करने लगे। क्योंकि वे एक गंभीर श्रावक थे। उनके पास तमाम लोग अपने सुख-दुख बांटने जाते थे। वे कभी किसी की बात को दूसरे तक नहीं पहुंचाते थे।
पुण्य और धर्म की व्याख्या करते हुए जैन मुनि ने कहा कि कुछ लोग दोनों को ही एक समझते हैं, जबकि दोनों ही अलग-अलग हैं। व्यक्ति के अनुकूल परिवार, धन, संपदा मिल सकता है, लेकिन सांसारिक सुख केवल पूर्व जन्मों के पुण्य के आधार पर ही मिलता है, जबकि धर्म से पाप कर्मों का क्षय होता हैं। आनंद श्रावक को पूर्व जन्मों के आधार पर धन, संपदा मिली, लेकिन धर्म के लिए पुरुषार्थ करना पड़ा। जबकि नास्तिकों का मानना है कि पुर्नजन्म नहीं होता। इसलिए ऋण लेकर घी पीने की प्रवृति उनकी रहती है। वे जब तक जीते हैं, सुख से जीते हैं। वे भविष्य की चिंता नहीं करते। जबकि जैन धर्म में पूर्व जन्मों को महत्व दिया जाता है। ज्ञानी वही है जो प्रतिकूल समय में हंसता है, क्योंकि रोने से ये पाप और बढ़ जाता है। जबकि होता यह है कि अनुकूल समय में अंहकार होता है, प्रतिकूल समय में रोने बैठ जाता है। यही विषमता है और समता की साधना बहुत जरूरी है। क्योंकि पूर्व जन्म में जो किया है, वह तो भोगना ही पड़ेगा और अगले जन्म का भविष्य हमारे हाथ में है। हम इस जीवन में जितना अच्छा करेंगे, उतना ही हमारा अगला जीवन सुधरेगा। इससे पूर्व विराग मुनि महाराज ने प्रवचन दिए।
शनिवार की धर्मसभा में डॉक्टर मणिभद्र द्वारा प्रवचन में टीकाराम के 8 उपवास की तपस्या का पारणा हुआ। नीतू जैन दयालबाग की 5 उपवास एवम कमलेश नायन की 4 उपवास की तपस्या चल रही है।जिसकी सभी ने अनुमोदना की ।आयंबिल की तपस्या की लड़ी रचना पारिख ने आगे बढ़ाई। बालकिशन जैन की 9 आयंबिल की तपस्या चल रही है।शनिवार के नवकार मंत्र के जाप का लाभ विमला देवी,मोनिका एवम सुरेंद्र चपलावत परिवार ने लिया।

Dr. Bhanu Pratap Singh