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उत्तर प्रदेश लेखिका मंच के कार्यक्रम में पहुंची केन्द्रीय हिन्दी संस्थान की निदेशक डॉ. बीना शर्मा का अनुभव कुछ ऐसा रहा

लेख

Agra, Uttar Pradesh, India. उत्तर प्रदेश लेखिका मंच ने तो आगरा की रचनाकार बिटिया को बहुत्तेरो मान करो , शाल पिन्हायो, माला डारी गरे में और बाय का कैत हैं सम्मान पत्र हू पढ़ो। हती बिटिया जा लाइक, खूब सी तो किताब लिखी और निरे मेडल जीते। बोलबे ठाढी भई तो जे समझो कि मुंह ते फूल से झर रए, कहानी कविता कैसे लिखी जात है, सब ब्योरेबार बताओ। बोल रई काई तो सबरेन की आंख बाके मोडे पे ही चिपक रई। मन खुश है गयो बा बिटिया ए सुन के तो। अब ऐसे फंक्शन में जाबे को तो खूब मन करे।

देखो भैया जहां मान होय महां तो जरूल ते जानो चहिए। हम तो रहीम बाबा ए याद कर लेत ऐं…… रहिमन रहिला की भली जो परसे चित लाय, परसत मन मैलो करे सो मैदा जरि जाय। खूब प्यार ते मान ते बुलाओगे तो दौड़े चले आंगे नाय तो हमें ना जानो काहू के। चो जाएं, अपने घर भले। मान को तो पान हू भौत होत ए भईया और आज तो गेंहू के संग हम बथुआ ऊ ए पानी लग गयो। नाय झूठ नाय बोलिंगे साब , खूब दिल ते स्वागत करो, हम तो पहले पहल गए आज, काऊ ए जानते ऊ नाय, बस सुन राखी कि उत्तर प्रदेश को कोई लेखिका मंच हते।

का का नाम हते बिनके वो का कैते शशी, प्रीति, अपर्णा, प्रगति, कल्पना, गीता, शिखा, जे नाम तो याद है गए और एक और हती ज्योति। निरी सी हती, सब ऐसी धा पा के मिली कि मन खुश है गयो। बिलकुल बाहेली सी लगी मोय तो। कैसी जेठ भर भर के मिल रई। भाई हू हते थोड़े बहुत से। अब सबने कई तो हमने ऊ एक कविता चैंप दई कि छोरियो, सबन ते पैले अपनी इज्जत करिबो सीखो, खुद ए जानो, अपनो मान पहचानो ता पीछे दूसरे की शिकायत करो। मोय तो ऐसी लग रई कि इन छोरी छापरी ने आधे अधूरे नाटक नाय पढ़ो दीखे मोहन राकेश को। जो पढ़ो और गुनो होतो तो समझती कि कोई पूरम पट्ट नाए होय करे, कोई में एक कमी तो दूसरे में दूसरी। घर गृहस्थी तो ऐसे ई चलो करे। एक ने कई दूसरे ने मानी। जे बात बात पे रूठबो मटकबो ठीक नाय होय करे। दो बिन ने कहीं तो चार तुम कह लेयो, कह कबा के छुट्टी करो। बात ए दिल में फांस सी चुबो के मत बैठ जाओ।

 

हम चाहे कोई बन जाए पर सबसे पहले तो बिटिया ही होय करें, फिर काहू की बहिन, काऊ की पत्नी काहू की बहू काऊ की मईया होए। हमाई मां ने हमें एक कविता रटाई ,शायद से कल्याण में ते बताई होगी, अब सल नाये। हमने बी एड में हू पहले दिना सुनाई। चलो अब बात चली है तो तुम्हें हू सुनाए देत ऐं नाय तो बाद में बात बनाओगे, कछु से तो इतराबे को इल्जाम लगा देंगे तो जाते तो बढ़िया है सुना ही देत हैं, कछु भूल जाए तो किल्ल मत करियो, भली…

मां जब मुझको कहा पुरुष ने तुच्छ हो गए देव सभी,

इतनी ममता इतना आदर इतनी श्रद्धा कहां कभी,

उमड़ा स्नेह सिंधु अंतर में डूब गई आसक्ति अपार,

देह गेह अपमान क्लेश छि विजयी मेरा शाश्वत प्यार।

बहन पुरुष ने मुझे पुकारा कितनी ममता कितना नेह।

बेटी कह कर मुझे पुरुष ने दिया स्नेह अन्तर सर्वस्व,

मेरे सुख सुविधा की चिन्ता उसके सब सुख हृस्व,

अपने को भी विक्रय करके मुझे देख पाए निर्बाध,

मेरे पूज्य पिता की होती एक मात्र यह जीवन साध।

प्रिये पुरुष अर्धांग दे चुका लेकर के हाथों में हाथ,

यही नहीं उस परमेश्वर के निकट हमारा शास्वत साथ।

तन मन जीवन एक हो गए मेरा घर उसका संसार,

दोनों ही उत्सर्ग परस्पर दोनों पर दोनों का भार।

 

ये सारे के सारे रिश्ते बेहद पवित्र और महनीय थे पर जब पण्या दस्यु आज कहता है पुरुष हो गया आज पिशाच, पुत्र पिता भाई स्वामी तुम क्या इतने निरुपाय, स्थिति तो तब बिगड़ी। हम तो सबरे रिश्तन कूं मान देबे पर जब अगलो अपनी सीमा रेखा पार करेगो तो हम काहू ते कमती थोड़े ई हैं, मुंह तोड़ के धर देंगे। ऐसे पोच और दब्बू नाय।

सो भैया मान देयोगे तो खूब पूजिन्गे और जो ऐंठ के मारे पैंठ कू जाओ तो तिहाई मज्जी। हम तो रिश्ता बचाबे की अपनी जान खूब कोशिश करिंगे और जो तिहाई समझ में नाय भर रई तो बैठे रहियो अपनी अटरिया पे अपने घमंड में, हम पे बेटी, बहन, मईया बन के हू रहनो आत है। एक रिश्ता टूटबे ते सारे रिश्ता खत्म थोड़े ही हे जाबे। तुम अपनी गैल हम अपनी गैल। और नेकऊ समझदार भए तो जे नौबत आयेगी ही नाय। सोच लीयो तिहाये घर  में हू बहन बेटी हते, राम जी को न्याय में कोई झोल नाने। तो मान देयोगे, मान पाओगे। मान को तो पान हू भौत होत ए।

डॉ. बीना शर्मा, निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा

Dr. Bhanu Pratap Singh