आगरा में भाजयुमो नेता को चौकी में थर्ड डिग्री, सोशल मीडिया पर पोस्ट हुई वायरल, पुलिस पर गंभीर आरोप

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आगरा में इन दिनों एक अजीब-सी नई नस्ल पैदा हुई नजर आ रही है। इनके बदन पर नई-नवेली वर्दी है और दिमाग पर ऐसी गर्मी चढ़ी है कि सामने कोई भी हो, इन्हें फर्क नहीं पड़ता। ये अंडर ट्रेनिंग हैं, लेकिन इनकी हरकतें किसी एसपी से कम नहीं। पुलिस थानों में जाइए तो दर्जनों ऐसे दरोगा बैठे मिलेंगे, जिनकी ट्रेनिंग कम और तुनकमिजाजी ज़्यादा है।

इनकी भाषा में आप, तुम, जी जैसे शब्द ढूंढना वैसा ही है, जैसे रेगिस्तान में पानी ढूंढना। सीधी बात, सीधी गाली और सीधा तू-तड़ाक। ये किसी भी मामले की गंभीरता को समझने की जहमत नहीं उठाते। शायद इन्हें लगता है कि पुलिस की नौकरी का मतलब सिर्फ़ लाठी और बदतमीजी है। इसीलिए आए दिन किसी के साथ भी मारपीट, गाली-गलौज और बदतमीजी की खबरें आम हो गई हैं।

भाजयुमो नेता को ‘थर्ड डिग्री’ देने का आरोप

इसी कड़ी में एक नया अध्याय जुड़ गया है आगरा के थाना जगदीशपुरा में। यहां भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के एक पदाधिकारी, सचिन प्रधान, ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए हैं। आरोप है कि सेक्टर 4 चौकी के इंचार्ज ने उन्हें थर्ड डिग्री दी। क्या पुलिस अब सत्ताधारी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी थर्ड डिग्री देने लगी है? फिर आम आदमी का क्या ही होगा?

सचिन प्रधान के पूरे शरीर पर नीले निशान इस कहानी को खुद बयां कर रहे हैं। इन निशानों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हैं, मानो ये पूछ रही हों कि ये कैसी पुलिसिंग है?

‘साठ-गांठ’ का आरोप

मामला एक कार के लेन-देन का है। सचिन के परिचित दीपक ने मनोज कुमार से एक कार के लिए 4 लाख रुपये का सौदा किया था। किश्तें पूरी हो गईं, लेकिन मनोज ने बाकी रकम मिलने से पहले ही खेल कर दिया। आरोप है कि मनोज ने आवास विकास कॉलोनी की सेक्टर 4 चौकी इंचार्ज, प्रमोद यादव, से साठ-गांठ कर ली और कार को ‘लावारिस’ बता दिया। वाह! पुलिस के लिए गाड़ी लावारिस भी हो जाती है, क्या बात है!

26 अगस्त को जब मनोज कोर्ट से रिलीज ऑर्डर लेकर चौकी पहुंचा और कार ले जाने लगा, तो दीपक और मनोज के बीच कहासुनी हो गई। इसके बाद मनोज ने दीपक के खिलाफ केस दर्ज करवा दिया।

इस मामले में जब सचिन प्रधान चौकी पहुंचे तो आरोप है कि दरोगा प्रमोद यादव ने उन्हें गालियां दीं। सिर्फ गालियां ही नहीं, बल्कि मारपीट भी की और उन्हें थाने में बंद कर दिया। दूसरे दिन पार्टी के बड़े नेताओं के फोन आने के बाद उन्हें छोड़ा गया।

वर्दी की गर्मी’ लखनऊ तक जाएगी?

क्या पुलिस की यह तानाशाही अब इतनी बढ़ गई है कि वह सत्ताधारी पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी नहीं पहचानती? या फिर यह सिर्फ एक बहाना था अपनी ‘शक्ति’ का प्रदर्शन करने का?

सचिन प्रधान ने मांग की है कि चौकी और उसके आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की जांच होनी चाहिए। उनका कहना है कि अगर ऐसा होता है तो सच्चाई सामने आ जाएगी। लेकिन क्या पुलिस यह जांच होने देगी? या कैमरों में कुछ ‘टेक्निकल फॉल्ट’ आ जाएगा?

भाजयुमो कार्यकर्ता भी शांत नहीं बैठे हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर इस घटना की पोस्ट और तस्वीरें शेयर की हैं। वे इस मामले को लखनऊ तक ले जाने की बात कह रहे हैं और उच्च अधिकारियों से दरोगा की शिकायत करने की तैयारी में हैं।

सवाल यह है कि अगर यह ‘नई नस्ल’ ऐसी ही बढ़ती रही तो आम आदमी का क्या होगा? जब सत्ताधारी दल के कार्यकर्ताओं के साथ ऐसा हो सकता है, तो बाकी लोगों का क्या? क्या पुलिसिंग का मतलब सिर्फ ‘वर्दी की गर्मी’ है? और क्या ये अंडर-ट्रेनिंग दरोगा कभी पुलिसिंग का असली पाठ सीख पाएंगे? या वे हमेशा ‘एसपी से भी बड़े’ बनकर घूमते रहेंगे?

-मोहम्मद शाहिद की कलम से

Dr. Bhanu Pratap Singh