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352 साल पहले वीर गोकुला जाट का हुआ था बलिदान, चौ. उदयभान सिंह ने दिलाया सम्मान

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गोकुल ने औरंगजेब के खिलाफ किसानों को संगठित कर युद्ध किया

हिन्दुओं के रक्षक वीर गोकुल जाट के नाम पर फतेहपुर सीकरी में उद्यान

मंत्री चौ. उदयभान सिंह पिछले चार साल से प्रयास कर रहे थे

Agra, UP, India.  उत्तर प्रदेश सरकार ने उद्यान विभाग के अधीन फतेहपुर सीकरी में तेरामोरी बांध के निकट स्थित राजकीय उद्यान प्रक्षेत्र फतेहपुर तेरामोरी का नाम बदलकर गोकुल जाट उद्यान कर दिया है। यह उद्यान 76 एकड़ में फैला हुआ है। यहां हिन्दुओं के रक्षक और जाटों का आन-बान-शान वीर गोकुला जाट की आदमकद प्रतिमा स्थापित कराई जाएगी। उद्यान को पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनया जाएगा। हर साल एक जनवरी को वीर गोकुला जाट बलिदान दिवस मनाया जाया करेगा। जाटों के कुल गौरव गोकुल सिंह उर्फ गोकुला जाट की कहानी रोमांचित करने वाली है।

उत्तर प्रदेश सरकार के एमएसएमई राज्यमंत्री और फतेहपुर सीकरी से विधायक चौधरी उदयभान सिंह पिछले चार साल से वीरवर गोकुला जाट की प्रतिमा स्थापित कराने का प्रयास कर रहे थे। आखिरकार उद्यान विभाग के विशेष सचिव संदीप कौर ने इस बारे में 6 जनवरी, 2022 को आदेश जारी कर दिया है। आदेश की एक प्रति चौधरी उदयभान सिंह को भी भेजी गई है।

इस संबंध में चौधरी उदयभान सिंह ने बताया कि हमारी सरकार बलिदानी महापुरुषों की स्मृति को स्थाई रूप देने प्रयास कर रही है। इसी कड़ी में आगरा-जयपुर मार्ग पर फतेहपुर सीकरी से आगे तेरामोरी बांध के ठीक सामने गोकुल जाट उद्यान विकसित किया जा रहा है। आने वाली पीढ़ियां उस वीर की बलिदानी कथा से परिचित हो सकेंगी, जिसे इतिहास ने भुला दिया है। वामपंथी इतिहासकारों ने गोकुला जाट के बलिदान का कहीं भी जिक्र नहीं किया है। वीर गोकुल जाट के नाम पर उद्यान का नाम रखकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने जाटों का गौरव बढ़ाया है। मैं मुख्यमंत्री को साधुवाद देता हूँ। जल्दी ही आगरा में उनका नागरिक अभिनंदन किया जाएगा।

उन्होंने बताया कि वीर गोकुला जाट तिलपत के जमींदार थे। अत्याचारी मुगल बादशाह ने जब मथुरा के मंदिरों को तोड़ने और अधिक मालगुजारी वसूलने का आदेश दिया तो कोतवालों ने जुल्म शुरू कर दिए। कोई भी विरोध नहीं कर पा रहा था। ऐसे में वीर गोकुला जाट ने हर वर्ग के किसानों को एकत्रित किया और मालगुजारी न देने का ऐलान किया। मुगल फौज और गोकुला जाट की किसान सेना के बीच संघर्ष शुरू हो गया।10 मई, 1666 को औरंगजेब की सेना और गोकुला जाट के बीच युद्ध हुआ, जिसे तिलपत की लड़ाई के नाम से जाना जाता है। जाटों की जीत हुई। इसके बाद औरंगजेब ने इस्लाम धर्म को बढ़ावा दिया और लगान बढ़ा दिया। गोकुला जाट ने लगान देने से मना कर दिया। औरंगजेब ने अनेक सेनापति भेजे, जाटों ने सबको हरा दिया। अंततः औरंगजेब को 1669 में दिल्ली से चलकर मथुरा आना पड़ा। दिसम्बर 1669 में औरंगजेब और गोकुला जाट के बीच तीन दिन तक भीषण युद्ध हुआ। अंततः गोकुला जाट और उनके साथियों व परिजनों को बंदी बना लिया गया। गोकुला जाट के समक्ष औरंगजेब ने शर्त रखी कि जान की सलामती चाहते हो तो मुसलमान बन जाओ। गोकुला जाट हिन्दू धर्म के रक्षक थे। इनकार किया तो पुरानी कोतवाली (यह जौहरी बाजार में है, जिसमें अब फोस्ट ऑफिस है) के सामने गोकुला जाट को अंग-अंग काटकर मार डाला गया। गोकुल सिंह के चाचा उदय सिंह की खाल खींच ली पर मुस्लिम बनना स्वीकार नहीं किया।

हिन्द की चादर के रूप में प्रसिद्ध सिख गुरु तेगबहादुर ने हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए दिल्ली के चांदनी चौक में 11 नम्बर 1675 को बलिदान दिया। उनसे 6 वर्ष पूर्व एक जनवरी, 1669 को गोकुला जाट ने भी हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान दिया। खानवा की लड़ाई, पानीपत की लड़ाई, हल्दी घाटी का युद्ध, चौसा की लड़ाई एक दिन या कुछ घंटों में समाप्त हो गई, लेकिन तिलपत की लड़ाई तीन दिन तक चली।

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Dr. Bhanu Pratap Singh