सुरेन्द्र सिंह चाहर बने अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य भारती के आगरा जिलाध्यक्ष
संस्था ने की औपचारिक घोषणा
Live Story Time, Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी साहित्य भारती, उत्तर प्रदेश के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष डॉ. देवी सिंह नरवार ने विज्ञप्ति जारी की।
ब्रज प्रान्त के अध्यक्ष डॉ. अनूप शर्मा की संस्तुति और प्रदेश कार्यकारिणी की स्वीकृति के बाद श्री सुरेन्द्र सिंह चाहर को आगरा जिले का जिलाध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
वे प्राथमिक विद्यालय गढ़ी जैतू, विकास खंड-सैंया, आगरा के प्रधानाध्यापक हैं। उनका आवास यूनीफाइ होम्स, शास्त्रीपुरम, आगरा में है।
सरल समारोह में नियुक्ति पत्र
एक सादे समारोह में कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष डॉ. देवी सिंह नरवार तथा ब्रज प्रान्त उपाध्यक्ष डॉ. भानु प्रताप सिंह (वरिष्ठ पत्रकार) ने श्री चाहर को नियुक्ति पत्र सौंपा।
उन्हें दस दिनों के भीतर जिला कार्यकारिणी गठित करने के निर्देश दिए गए हैं।
समर्पण का संकल्प
नवनियुक्त जिलाध्यक्ष श्री सुरेन्द्र सिंह चाहर ने कहा कि वे हिन्दी और सांस्कृतिक उत्थान के लिए समर्पित रहेंगे।
उन्होंने साहित्यिक चेतना और सामाजिक उत्थान को अपना प्राथमिक लक्ष्य बताया।

प्रदेश अध्यक्ष का विश्वास
डॉ. देवी सिंह नरवार ने कहा कि हिन्दी साहित्य भारती आज विश्व के 36 देशों में सक्रिय है।
उन्होंने श्री चाहर की प्रतिबद्धता की प्रशंसा की।

संस्था को मिलेगी नई गति
ब्रज प्रान्त उपाध्यक्ष डॉ. भानु प्रताप सिंह ने बताया कि श्री चाहर के नेतृत्व से आगरा जनपद में संगठन को नई दिशा और ऊर्जा मिलेगी।
वे पहले से जनशक्ति संगठन के संस्थापक सदस्य रहे हैं और समाजोत्थान के कार्यों में सक्रिय रहे हैं।
बधाइयों का तांता
डॉ. अनूप शर्मा (अलीगढ़), जिला मीडिया प्रभारी श्री ओ. पी. गौर, अजय पाल सिंह चाहर (एडवोकेट), नीरेश ठैनुआ, दिनेश कुमार वर्मा, राजवीर सिंह चाहर और अन्य गणमान्य नागरिकों ने श्री चाहर को बधाई दी।
सभी ने आशा जतायी कि उनके नेतृत्व में संस्था नई ऊँचाइयों तक पहुंचेगी।
संपादकीय: हिन्दी और संस्कार — चाहर की नई जिम्मेदारी
हिन्दी केवल भाषा नहीं है। यह हमारी पहचान है।
शिक्षक होने के नाते जब कोई साहित्य के लिए समर्पित होता है, तो वह समाज में विचार और संस्कार दोनों जगाता है।
सुरेन्द्र सिंह चाहर का आगरा जिलाध्यक्ष चुना जाना इसी उम्मीद का प्रतीक है।
आगरा की मिट्टी ने सदैव कला और संस्कृति को पुष्ट किया है। अब वह साहित्यिक नवजागरण के लिए भी उपयुक्त है।
यदि संस्था, शिक्षक और समाज साथ मिलकर काम करें, तो यह केवल शब्दों का उत्सव नहीं रहेगा। यह संस्कारों की परंपरा बनेगा।
डॉ भानु प्रताप सिंह, संपादक
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