भाजपा में हठ …..तो क्या योगी चले जायेंगे मठ?

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लोकसभा चुनाव में बीजेपी की उत्तर प्रदेश में जो फजीहत हुई है, उसका ठीकरा एक-दूसरे के सिर फोड़ने की राजनीति के चलते राज्य में बीजेपी नेताओं के बीच आपसी वैमस्यता और गुटबाजी बढ़ती जा रही है। गुटबाजी का आलम यह है कि यह किसी एक स्तर पर नहीं, नीचे से लेकर ऊपर तक तो दिखाई पड़ ही रही है, इसके अलावा इसकी तपिश से दिल्ली भी नहीं बच पाया है।

लोकसभा चुनाव अभियान जैसे शुरू हुआ था, एक चर्चा चल निकली कि उत्तर प्रदेश में अगर बीजेपी जीती तो योगी आदित्यनाथ को हटा दिया जाएगा। चुनाव अभियान के दौरान बीजेपी के प्रति क्षत्रिय समुदाय के गुस्से की भी खबरें फैली। इससे पहले मोदी-शाह की जोड़ी 2021 में भी योगी को किनारे करने की असफल कोशिश कर चुके हैं पर यूपी विधानसभा 2022 के चुनाव जीतकर योगी ने न केवल अपना कद बड़ा कर लिया था बल्कि एक इतिहास भी रच दिया था। अब फिर 4 जून की मतगणना और यूपी में भाजपा को हुए नुकसान के बाद जो भाजपा के अंदरूनी हालात हैं उससे योगी को किनारे करने की अफवाह सत्य प्रतीत होती दिख रही है, क्योंकि फिर से योगी को यूपी से हटाओ का जिन्न निकल आया है, और लग रहा है योगी आदित्यनाथ की कुर्सी जाएगी! मोदी-शाह किस विकल्प से योगी को मजबूर करेंगे कि मान जाओ या मठ को जाओ! आने वाले समय में मोदी-शाह और योगी के चेहरों के ग्राफ में बहुत उतार-चढ़ाव होना है

उत्तर प्रदेश में चर्चा गर्म है कि योगी आदित्यनाथ की कुर्सी जाएगी। हालात बयां कर रहे हैं यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ पर यूपी में हार का ठीकरा फूट सकता है। योगी इस सबको समझ रहे है इसीलिए चुनाव नतीजों के बाद दोनों तरफ पोजिशनिंग है और बार पलटवार जारी है। योगी को हटाने के भी कई कारण है, एक तात्कालिक बड़ा कारण यह है कि अमित शाह के लिए यदि अभी नहीं तो आंगे योगी आदित्यनाथ को हटाना और मुश्किल होगा। फिर मजबूत पक्ष है कि इस समय नरेंद्र मोदी है क्योंकि आरएसएस की नरेंद्र मोदी परवाह नहीं करते। तो लगता है कि योगी को बचाने वाला कोई नहीं है। पहला कारण जातिय राजनीति का है यानि योगी का ठाकुरबाद है। दूसरा कारण 2029 के चुनाव और अपने भविष्य के लिए बनी अमित शाह की बिसात है।

उत्तर भारत में क्षत्रियों को टिकट देने में कंजूसी तथा उनकी जगह ओबीसी आदिवासी वोटों को अहमियत मोदी-शाह की नई शतरंज के दो टूक संकेत है। तीसरा अहम मुद्दा योगी आदित्यनाथ की हिंदुओं में लोकप्रियता का ग्राफ है। चौथा कारण, योगी का कड़क अक्खड़पन व एकला चलो की आदर है।

सूत्रों का कहना है कि चार जून को मतगणना के दिन जब बाराणसी में पोस्टल वोट और शुरूआती राउंड़ में नरेंद्र मोदी ने अपने को पिछड़ता हुआ देखा तो अमित शाह को बुलाया गया तभी मोदी और शाह के बीच तय हुआ कि अब बहुत हुआ। अब यूपी की कमान किसी ओबीसी चेहरे को दे दी जाय। योगी आदित्यनाथ की दिल्ली में मंत्री बना कर सहयोगी दलों के दर्जे बाले मंत्रालय में बैठा दिया जाए।

जिसका सीधा अर्थ है कि आला मंत्री, नितिन गडकरी, जे पी नड्डा, अश्विनी वैष्णव, शिवराज सिंह, पीयूष गोयल, गिरिराज सिंह, मनोहर खट्टर, धर्मेंद्र प्रधान जैसी अहमियत वाले मंत्रालय योगी के लिए संभव नहीं है। यानि दिल्ली में अमित शाह से योगी नीचे और डाउन होंगे। चौकन्ने योगी आदित्यनाथ को ऐसी परिस्थिति व ऐसी भावी रणनीति का भान है। इसलिए अंदर के सूत्र बताते हैं कि चुनाव के नतीजों के बाद उनसे जब दिल्ली में मंत्री बनने का प्रस्ताव दिया गया तो उनका साफ कहना था कि इससे बेहतर तो वे गोरखपुर के अपने मठ में जा कर धुनी रमाएंगे।

इस बात में भी अब कोई संदेह नहीं है कि चुनाव से पहले भी पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा लखनऊ गए थे और मोदी-शाह का योगी आदित्यनाथ को लोकसभा चुनाव लड़ दिल्ली में मंत्री बनाने का फरमान सुनाया था। गर्म मिजाज के योगी ने न केवल तेवर दिखाएं बल्कि वे अगले दिन गोरखपुर अपने मठ चले भी गए। घबराएं व सहमे जेपी नड्डा भागे-भागे उनके पीछे गोरखपुर गए और योगी को शांत किया। यह भी हकीकत है कि चुनाव में नरेंद्र मोदी, अमित शाह दोनों को मजबूरन उम्मीदवारों की मांग पर योगी आदित्यनाथ की जनसभाएं करानी पड़ी।

लेकिन उत्तर प्रदेश के बाहर भी उनकी खूब मांग रही। योगी जी ने उत्तर प्रदेश से बाहर बारह राज्यों उत्तराखंड, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, जम्मू, पश्चिम बंगाल, राजस्थान, ओडिशा, चंडीगढ़, हरियाणा और दिल्ली जैसे बारह राज्यों में उन्होंने प्रचार किया। यह उनके स्वीकार्यता और बढ़ते कद का संकेत है।

योगी की ईमानदारी पर बाकी राजनेताओं से ज्यादा भरोसा किया जाता है, शायद यही वजह है कि भाजपा में दूसरी पांत के नेताओं में सबसे ज्यादा स्वीकार्य बने संघ की महत्वपूर्ण महत्वाकांक्षी हिंदुत्व के बड़े चेहरे भी है, जो सीधे सीधे न सिर्फ अमित शाह को चुनौती देता है बल्कि उनसे ऊपर भी करता है। बात बीते लोकसभा चुनाव की तो यह भी सच है कि यूपी में किसी को जमीनी हकीकत का भान नहीं था। खुद मोदी को वाराणसी की ग्राउंड रियलिटी मालूम नहीं थी। उन्हें मतदान के दिन ही मालूम हुआ कि वाराणसी के मतदान केंद्रों में कार्यकताओं का टोटा है तो मतदाताओं को घरों से निकालने का प्रबंधन भी नहीं। तभी से भाजपा के भीतर और बाहर यह झगड़ा है कि दोषी कौन? योगी या मोदी शाह?

दोनों तरफ से एक-दूसरे को जिम्मेवार ठहराने का सिलसिला और दांव पेंच जारी है। प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की इस्तीफे की पेशकश भी योगी पर दवाब की एक चाल ही है। योगी की टीम का कहना है कि दिल्ली के कारण यूपी में भाजपा हारी। योगी के कहने या उनकी लिस्ट से एक भी व्यक्ति को टिकट नहीं दिया गया? दिल्ली से ही गलत टिकट बंटे। वाराणसी की जिम्मेवारी पीएमओ और भाजपा मुख्यालय ने खुद संभाली हुई तो फिर उनका क्या कसूर।

वहीं दिल्ली दरबार की दलील है कि योगी पर आरोप है व एकला चलो वाले है। उनका अपना अकेले का बुलडोजर है। उनके राज में प्रदेश सगंठन, पदाधिकारियों, मंत्रियों को न अधिकार है और न जनता के काम करने की छूठ है। योगी एक विशेष जाति के पक्षधर है। वे ब्राह्मण, ओबीसी को तरजीह नहीं देते हैं। हालांकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह तो स्वंय एकला चलो के ब्रांड अम्बेसडर हैं बहुतों के रोल मॉडल भी हैं। योगी अंहकार के यूपी मॉडल है तो नरेंद्र मोदी गुजरात विश्व के अंहकार मॉडल है। वे स्वंय अपने आपमें सर्वसमर्थ और सर्वज्ञ है।

बताया जाता है कि यहां तक तर्क हुआ कि विधायकों में योगी पूछ ले कि ये आपको कितना चाहते है तो प्रतितर्क हुआ तब नरेंद्र मोदी भी सांसदों की बैठक में यह रायशुमारी कराएं कि उन्हें कितने सासंद चाहते है? क्यों नहीं चुनाव के बाद संसदीय दल की बैठक बुलाकर मोदी ने अपना फैसला कराया?

इसी तनातनी के बीच संघ प्रमुख का गोरखपुर दौरा बताता है कि योगी पर किस हद तक का दवाब डालने की पुरजोर कोशिश है। अमित शाह भी इन दिनों शांत दिख रहे है लेकिन उनके दिल- दिमाग में बहुत कुछ बदला हुआ है वे योगी के एंटीडोट सुनील बंसल की पार्टी अध्यक्ष बनवा सकते है। अब संभव नहीं लग रहा है कि मोहन भागवत, दत्तात्रेय व अन्य अपने छोटे-छोटे मैसेजों से नरेंद्र मोदी के मनचाहे पर वीटो करें और अमित शाह मोदी से तनिक भी छिटके।

ताकतबर और जानकारों का मानना है कि योगी को या तो दिल्ली आना है या लौट कर गोरखपुर मठ जाना है। संघ अब योगी को नहीं बचा सकता है। क्योंकि योगी की प्रदेश में तेज कार्यवाही और तेवर को देखकर लगता है कि शायद ही संघ का कोई पदाधिकारी उन्हें फिर से दिल्ली के लिए मनाएगा। यह तो तय है कि भविष्य में शाह के कद को कोई टक्कर न मिले इसके लिए रास्ते के कांटे व हिंदुत्व के बड़े चेहरे योगी को निकालने के लिए देर सबेर कुछ नया तानाबाना सामने आएगा चाहें यूपी का विभाजन ही क्यों न हो योगी ने अपने तेवरों और प्रदेश में हालिया कार्यशैली से जता दिया है कि वो झुकेंगे नहीं।

लेखक- वरिष्ठ पत्रकार श्री अरविंद सिंह

Dr. Bhanu Pratap Singh